जाने हवन में क्या है स्वाहा का मतलब, भगवान कृष्ण ने दिया था वरदान
कोई भी हवन या यज्ञ तब तक सफल नहीं माना जा सकता है जब तक कि हवन में दी जाने वाली आहुतियों को देवता न ग्रहण करें।
जब भी आप किसी धर्मिक अनुष्ठान में शामिल होते हैं तो हवन के समय जब आहुतियां (हविष्य) दी जाती हैं तो मंत्र पाठ करते हुए स्वाहा कहकर ही हवन सामग्री भगवान को अर्पित करते हैं। क्या आपको पता है कि स्वाहा क्यों बोला जाता है और इसका क्या महत्व है। हम आपको ऐसा करने के पीछे के कारण के बारे में बता रहे हैं।
क्या है स्वाहा का अर्थ
- स्वाहा का अर्थ है सही रीति से पहुंचाना। दूसरे शब्दों में इसका अर्थ होता है भौगिक पदार्थ को उसके प्रिय तक पहुंचाना।
- वेदों के अनुसार कोई भी हवन या यज्ञ तब तक सफल नहीं माना जा सकता है जब तक कि हवन में दी जाने वाली आहुतियों को देवता न ग्रहण करें।
- लेकिन, देवता ऐसा ग्रहण तभी कर सकते हैं, जबकि अग्नि के द्वारा स्वाहा के माध्यम से अर्पण किया जाए। स्वाहा की उत्पत्ति से रोचक कहानी भी जुड़ी हुई है।
अग्नि देव की पत्नी है स्वाहा
- पौराणिक कथा के अनुसार, स्वाहा दक्ष प्रजापति की पुत्री थीं जिनका विवाह अग्निदेव के साथ हुआ था। अग्निदेव को हविष्यवाहक भी कहा जाता है।
- अग्निदेव अपनी पत्नी स्वाहा के माध्यम से ही हविष्य ग्रहण करते हैं और ये आहुतियां देवताओं प्राप्त होती हैं।
कृष्ण भगवान ने दिया था वरदान
- एक अन्य कथा के अनुसार, स्वाहा प्रकृति की ही एक कला थी, जिसका विवाह अग्नि के साथ हुआ था।
- भगवान श्रीकृष्ण ने स्वाहा को ये वरदान दिया था कि केवल उन्ही के माध्यम से देवता हवन में अर्पित की जाने वाली समाग्री को ग्रहण कर पाएंगे।
श्रीमद्भागवत और शिव पुराण में भी बताया है महत्व
- अग्नि और स्वाहा से संबंधित पौराणिक आख्यान के अलावा श्रीमद्भागवत और शिव पुराण में स्वाहा से संबंधित वर्णन आए हैं।
- इसके अलावा ऋग्वेद, यजुर्वेद आदि वैदिक ग्रंथों में अग्नि की महत्व पर अनेक सूक्तों की रचनाएं हुई हैं।