महामृत्युंजय मंत्र जप से होते हैं यह लाभ, बरते ये सावधानियां
महामृत्युंजय मंत्र की उत्पत्ति का वर्णन ऋग्वेद में मिलता है और इस अमोघ मंत्र की उत्पत्ति की कथा मार्कंडेय पुराण में वर्णित है। महामृत्युंजय मंत्र,' ऊँ त्र्यंबकम् यजामहे सुगन्धिम् पुष्टिवर्द्धनम्, ऊर्वारुकमिव बन्धनात, मृत्योर्मुक्षियमामृतात्।।' के जप से मानव को अनेकों कष्ट से मुक्ति मिल जाती है और पापों से छुटकारे मिलने के साथ मृत्यु के बाद शिवलोक में निवास मिलता है।
कब करें महामृत्युंजय मंत्र
यदि कुंडली में ग्रह दोष है या ग्रहों से संबंधित कोई ऐसी पीड़ा है जिसका निवारण मुश्किल लग रहा है जैसे ग्रह गोचर, ग्रहों के नीच, शत्रु राशि या किसी पाप ग्रह से पीड़ित होने पर इस मंत्र का जाप फायदेमंद है। गंभीर रोग हो और मृत्युतुल्य कष्ट होने की दशा में महामृत्युंजय मंत्र संजीवनी बूटी जैसा काम करता है। जमीन संबंधी विवाद में इस मंत्र का जाप करने से फायदा मिलता है। किसी महामारी के फैलने की दशा में यह मंत्र कवच की भांति कार्य करता है। राजकाज संबंधी मामले के बिगड़ने और धन-हानि होने की दशा में महामृत्युंजय मंत्र का जाप करने से दिक्कत दूर होती है। मेलापक में नाड़ीदोष और षडाष्टक की तकलीफ से भी इस मंत्र से लाभ होता है। धर्म-कर्म में मन न लगने पर महामृत्युंजय मंत्र का जाप करना चाहिए। किसी भी तरह के कलह-क्लेश में महामृत्युंजय मंत्र रामबाण औषधि के समान है।
महामृत्युंजय मंत्र जाप में रखें ये सावधानियां
महामृत्युंजय मंत्र जाप करते समय विशेष सावधानियां जरूरी है। इन नियमों का पालन कर आप महामृत्युंजय मंत्र जाप का पूरा लाभ उठा सकते हैं और किसी भी तरह के अनिष्ट की आशंका भी समाप्त हो जाती है।
महामृत्युंजय मंत्र का जाप पूरी स्वच्छता और समर्पित भाव से करना चाहिए। मंत्र जाप से पहले संकल्प लेना चाहिए। मंत्र जाप में मंत्र के उच्चारण की शुद्धता आवश्यक है। मंत्र जप से पहले मंत्रों की एक निश्चित संख्या का निर्धारण कर लेना चाहिए। जितने मंत्रों का संकल्प लिया है उतनी संख्या पूर्ण होना चाहिए। मंत्र जान मानसिक यानी मन ही मन में या बहुत धीमे स्वर में करना श्रेष्ठ रहेगा। जप के समय दीपक जलता रहना चाहिए।
महामृत्युंजय मंत्र का जाप रुद्राक्ष की माला से करना अति उत्तम रहेगा। जपमाला को गौमुखी में रखकर जाप करना चाहिए जिससे किसी की नजर उसके ऊपर न पड़े। जप के समय शिवलिंग, शिव प्रतिमा, शिवजी की तस्वीर या महामृत्युंजय यंत्र सम्मुख होना चाहिए। जप करते समय कुश के आसन पर बैठना चाहिए। जपकाल में दूध मिले जल से शिवाभिषेक करते रहना चाहिए। जपकाल में पूर्व दिशा की और मुख होना चाहिए। जप का स्थान और समय निश्चित होना चाहिए। जप जितने दिनों तक चलता है उन दिनों में ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए। सात्विक आहार को ग्रहण करना चाहिए। किसी की भी बुराई से बचना चाहिए।