जानिए माता बगलामुखी की कथा
देवी बगलामुखी से जुडी एक कथा बहुत प्रचलित है जिसके अनुसार एक बार सतयुग में महाविनाश उत्पन्न करने वाला तूफान आया, जिससे सारी सृष्टि नष्ट होने लगी| इससे चारों ओर हाहाकार मच गया और अनेकों लोक संकट में पड़ गए और संसार की रक्षा करना असंभव सा प्रतीत होने लगा|
यह तूफान सब कुछ नष्ट भ्रष्ट करता हुआ आगे बढ़ता जा रहा था, जिसे देख कर भगवान विष्णु जी चिंतित हो गए| फिर विष्णु जी ने भगवान शिव की आराधना की और उनसे इस विषय का हल जाना| भगवन शिव ने बताया कि इस संकट से केवल शक्ति ही बचा सकती हैं| अतः भगवन विष्णु को उनके पास जाने की सलाह दी|
फिर भगवान विष्णु ने हरिद्रा सरोवर पर तप करना शुरू किया| भगवान विष्णु ने तप करके महात्रिपुरसुंदरी को प्रसन्न किया| देवी शक्ति उनकी साधना से प्रसन्न हुई और सौराष्ट्र क्षेत्र की हरिद्रा झील में जलक्रीडा करती महापीत देवी के हृदय से दिव्य तेज उत्पन्न हुआ।
उस समय चतुर्दशी की रात्रि को देवी बगलामुखी के रूप में प्रकट हुई, त्र्येलोक्य स्तम्भिनी महाविद्या भगवती बगलामुखी नें प्रसन्न हो कर विष्णु जी से वर माँगा और तब सृष्टि का विनाश होने से रूक सका| देवी बगलामुखी को बीर रति भी कहा जाता है क्योंकि देवी स्वम ब्रह्मास्त्र रूपिणी हैं|
इन बातों का रखें विशेष ध्यान
मां बगलामुखी जयंती के दिन साधक को माता बगलामुखी की निमित्त व्रत एवं उपवास करना चाहिए तथा देवी का पूजन करना चाहिए। इन्हें पीला रंग प्रिय है इसलिए इनके पूजन में पीले रंग की सामग्री का उपयोग सबसे ज्यादा होता है।
बगलामुखी आराधना में निम्न बातों का विशेष ध्यान रखना जरूरी होता है:-
साधना में पीले वस्त्र पहनने चाहिए एवं पीले वस्त्र का ही आसन लेना चाहिए। आराधना में पूजा की सभी वस्तुएं पीले रंग की होनी चाहिए। आराधना खुले आकश के नीचे नहीं करनी चाहिए।
आराधना काल में पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए । साधना डरपोक किस्म के लोगों को नहीं करनी चाहिए। बगलामुखी देवी अपने साधक की परीक्षा भी लेती हैं। साधना काल में भयानक अवाजें या आभास हो सकते हैं, इससे घबराना नहीं चाहिए और अपनी साधना जारी रखनी चाहिए।
साधना गुरु की आज्ञा लेकर ही करनी चाहिए और शुरू करने से पहले गुरु का ध्यान और पूजन अवश्य करना चाहिए। साधना उत्तर की ओर मुंह करके करनी चाहिए। मंत्र का जप हल्दी की माला से करना चाहिए। जप के पश्चात् माला अपने गले में धारण करें।
साधना रात्रि में 9 बजे से 12 बजे के बीच प्रारंभ करनी चाहिए। मंत्र के जप की संख्या निर्धारित होनी चाहिए और रोज उसी संख्या से जप करना चाहिए। यह संख्या साधक को स्वयं तय करना चाहिए।
साधना गुप्त रूप से होनी चाहिए। साधना काल में दीप अवश्य जलाया जाना चाहिए। जो साधक इन बातों का पूर्णतः ख्याल रख कर साधना करता है, वह अजय हो जाता है| उसका शत्रु उसका कुछ नहीं बिगड़ सकता|
मंत्र :-