क्या थी कर्ण, घटोत्कच, विदुर और संजय कि अंतिम इच्छा
1. दानवीर कर्ण की अंतिम इच्छा
जब कर्ण मृत्युशैया पर थे तब कृष्ण उनके पास उनके दानवीर होने की परीक्षा लेने के लिए आए। कर्ण ने कृष्ण को कहा कि उसके पास देने के लिए कुछ भी नहीं है। ऐसे में कृष्ण ने उनसे उनका सोने का दांत मांग लिया। कर्ण ने अपने समीप पड़े पत्थर को उठाया और उससे अपना दांत तोड़कर कृष्ण को दे दिया। कर्ण ने एक बार फिर अपने दानवीर होने का प्रमाण दिया जिससे कृष्ण काफी प्रभावित हुए। कृष्ण ने कर्ण से कहा कि वह उनसे कोई भी वरदान मांग़ सकते हैं। कर्ण ने कृष्ण से कहा कि एक निर्धन सूत पुत्र होने की वजह से उनके साथ बहुत छल हुए हैं। कर्ण ने दो वरदान मांगे। पहले वरदान के रूप में कर्ण ने यह मांगा कि अगले जन्म में कृष्ण उन्हीं के राज्य में जन्म लें और दूसरे वरदान में उन्होंने कृष्ण से कहा कि उनका अंतिम संस्कार ऐसे स्थान पर होना चाहिए जहां कोई पाप ना हो। पूरी पृथ्वी पर ऐसा कोई स्थान नहीं मिला।कर्नाटक में करनाली नदी के तट पर एक बालिस्त भूमि मिली। उसी भूमि पर कृष्ण ने अपने हाथ की कोहनी टिकाकर कृष्ण ने कर्ण का अंतिम संस्कार अपने ही हाथों पर किया। इस तरह दानवीर कर्ण मृत्यु के पश्चात साक्षात वैकुण्ठ धाम को प्राप्त हुए। 2. भीमपुत्र घटोत्कच की अंतिम इच्छा युद्ध भूमि में श्री कृष्ण ने घटोत्कच से कहा– पुत्र तुम मुझको बहुत प्रिय हो युद्ध मे जाने से पहले तुम मुझसे कोई वरदान माँग लो । घटोत्कच ने कहा प्रभु युद्ध में मेरी मृत्यु भी हो सकती है। हे प्रभु यदि मैं वीरगति को प्राप्त करूँ, तो मेरे मरे हुए शरीर को ना भूमि को समर्पित करना, ना जल में प्रवाहित करना, ना अग्नि दाह करना मेरे इस तन के मांस, त्वचा, आँखे, ह्रदय आदि को वायु रूप में परिवर्तित करके अपनी एक फूँक से आकाश में उडा देना। प्रभु आप का एक नाम घन श्याम—है। मुझे उसी घन श्याम- में मिला देना। और मेरे शरीर के कंकाल को पृथ्वी पे स्थापित कर देना। आने वाले समय में मेरा यह कंकाल महाभारत युद्ध का साक्षी बनेगा । 3. विदुर जी की अंतिम इच्छा महाभारत युद्ध समाप्त होने के 15 वर्षों बाद धृतराष्ट्र, गांधारी, कुन्ती,विदुर, तथा संजय ने सन्यास ले लिया, वन में कठोर तप करने लगे । कुछ समय बीतने के बाद युधिष्ठिर आदि पाँचों पांडव धृतराष्ट्र से मिलने आये । युधिष्ठिर विदुर जी से मिलने के लिए उनके पास आये युधिष्ठिर को देखते ही विदुर जी के प्राण शरीर छोडकर युधिष्ठिर में समाहित हो गये। युधिष्ठिर ने सोंचा ये क्या हो गया। मन ही मन श्री कृष्ण को याद किय। श्री कृष्ण प्रकट हुए और युधिष्ठिर से बोले– विदुर जी धर्मराज के अवतार थे और तुम स्वयं धर्मराज हो इस लिए विदुर के प्राण तुममें समाहित हो गये । लेकिन अब मै विदुर जी को दिया हुआ बरदान उनकी अंतिम इच्छा पूरी करूँगा। युधिष्ठिर बोले प्रभु पहले विदुर काका का अंतिम संस्कार आप अपने हाथों से करदो । श्री कृष्ण बोले इनकी अंतिम इच्छा थी कि मेरे मरने के बाद मेरे शव को ना जलाना, ना गाडना, ना जल में प्रवाहित करना। मेरे शव को सुदर्शन चक्र का रूप प्रदान करके धरा पे स्थापित कर देना। हे युधिष्ठर आज मै उनकी अंतिम इच्छा पूरी करके विदुर जी को सुदर्शन का रूप दे कर यहीं स्थापित करूँगा । श्री कृष्ण ने विदुर को सुदर्शन का रूप देके वहीं स्थापित कर दिया । 4. संजय की अंतिम इच्छा महाभारत युद्ध के पश्चात अनेक वर्षों तक संजय युधिष्ठिर के राज्य में रहे। इसके पश्चात धृतराष्ट्र, गांधारी और कुंती के साथ उन्होंने भी संन्यास ले लिया था। बाद में धृतराष्ट्र की मृत्यु के बाद वे हिमालय चले गए, जहां से वे फिर कभी नहीं लौटे। हिमालय पर संजय ने भगवान कृष्ण का कठिन तप किया । तप से प्रसन्न होकर कृष्ण भगवान प्रकट हुए और संजय से बोले- ये संजय! तुम्हारी तपस्या से मैं बहुत खुश हूँ आज जो चाहे वो मुझसे माँग लो । संजय श्री कृष्ण से बोले- प्रभु महाभारत युद्ध मे मैने अधर्म का साथ दिया है। इस लिए मुझे आप पाहन (पत्थर) बना दो और जब तक आप का पुन: धरती पे अवतार ना हो तब तक इसी हिमालय पर पाहन रूप में आप की भक्ति करता रहूँ। भगवान श्री कृष्ण ने संजय को अपने शालग्राम रूप में परिवर्तित करके हिमालय पर स्थापित कर दिया । |