रतन टाटा की जगुआर लैंड रोवर से डील की दिलचस्प कहानी कड़ी मेहनत और संकल्प की है मिसाल
Ratan Tata Buying Jaguar Land Rover Deal: रतन टाटा से जुड़ीं हजारों कहानियां लोगों को इंस्पायर करती है, लेकिन इंडियन ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री के लिए साल 2008 ऐतिहासिक रहा, जब टाटा ग्रुप के चेयरमैन ने जगुआर लैंड रोवर को खरीद लिया और उसके बाद कुछ ऐसा हुआ, जिसके बारे में जानकर आप भी हैरान रह जाएंगे।
बात उन दिनों की है, जब फोर्ड मोटर कंपनी आर्थिक संकट से गुजर रही थी। जगुआर और लैंड रोवर जैसे ब्रैंड्स को चलाना उनके लिए मुश्किल हो रहा था। इसी बीच टाटा मोटर्स ने इन लग्जरी कार ब्रैंड्स को खरीदने का फैसला किया। यह एक बड़ा जोखिम था, क्योंकि भारतीय बाजार में टाटा मुख्य रूप से सस्ती कारों के लिए जानी जाती थी।
टाटा ने क्यों लिया इतना बड़ा फैसला?
दरअसल, जगुआर और लैंड रोवर दुनिया भर में लग्जरी और ऑफ-रोडिंग कार बनाने के लिए जाने जाते हैं। टाटा को उम्मीद थी कि इन ब्रैंड्स के साथ उनकी वैश्विक पहुंच बढ़ेगी। टाटा भारतीय बाजार से बाहर निकलकर ग्लोबल स्तर पर एक प्रमुख खिलाड़ी बनने की कोशिश में थी। टाटा को पता था कि इन ब्रैंड्स को मजबूत बनाने में समय लगेगा, लेकिन वह लंबी अवधि के लिए निवेश करने को तैयार था।टाटा ने जेएलआर की किस्मत ही बदल दी
टाटा के अधीन आने के बाद जगुआर और लैंड रोवर ने नई ऊंचाइयां हासिल कीं। कंपनी ने इन ब्रैंड्स में भारी निवेश किया और नए मॉडल लॉन्च किए। इन कारों को न केवल भारत में, बल्कि दुनिया भर में पसंद किया गया। जेएलआर को खरीदने के बाद टाटा एक ग्लोबल ऑटोमोबाइल कंपनी बन गई। जगुआर और लैंड रोवर के साथ टाटा को कई नई टेक्नॉलजी मिलीं, जिससे वह अपनी अन्य कारों में सुधार कर सकी।कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि टाटा का जगुआर और लैंड रोवर को खरीदना भारतीय उद्योग जगत के लिए एक ऐतिहासिक पल था। इस सौदे ने साबित किया कि भारतीय कंपनियां भी वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धा कर सकती हैं। यह कहानी हमें सिखाती है कि टाटा ने मुश्किल समय में बड़ा फैसला लिया, लेकिन वह सफल रही। सफलता रातों-रात तो नहीं मिली, लेकिन टाटा के धैर्य ने बाद के वर्षों में इसे काफी प्रॉफिटेबल बना दिया।