पौष मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को रुक्मिणी अष्टमी मनाई जाती है. ऐसी मान्यता है कि इस दिन देवी रुक्मिणी का जन्म हुआ था, इस कारण इस अष्टमी को रुक्मिणी अष्टमी कहते हैं. कहा जाता है कि इस दिन श्री कृष्ण के साथ देवी रुक्मिणी की पूजा विशेष रूप से की जाती है. ऐसा करने से धन-धान्य की प्राप्ति होती है और घर में किसी चीज की कमी नहीं रहती.
रुक्मिणी अष्टमी का महत्व -
धार्मिक ग्रंथों के मुताबिक, द्वापर युग में पौष मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि पर भगवान श्रीकृष्ण की पत्नी देवी रुक्मिणी का जन्म हुआ था. ग्रंथों में रुक्मिणी को देवी लक्ष्मी का अवतार बताया गया है. मान्यता है कि इस दिन सुबह स्नान आदि करने के बाद व्रत का संकल्प लिया जाता है. ऐसे करने वालों पर देवी लक्ष्मी की विशेष कृपा रहती है.
देवी रूक्मिणी का जन्म अष्टमी तिथि को कृष्ण पक्ष में हुआ था और श्री कृष्ण का जन्म भी कृष्ण पक्ष में अष्टमी तिथि को हुआ था व देवी राधा वह भी अष्टमी तिथि को अवतरित हुई थी. राधा जी के जन्म में और देवी रूक्मिणी के जन्म में एक अन्तर यह है कि देवी रूक्मिणी का जन्म कृष्ण पक्ष में हुआ था और राधा जी का शुक्ल पक्ष में. राधा जी को नारद जी के श्राप के कारण विरह सहना पड़ा और देवी रूक्मिणी से कृष्ण जी की शादी हुई. राधा और रूक्मिणी यूं तो दो हैं परंतु दोनों ही माता लक्ष्मी के ही अंश हैं.
वास्तव में देवी राधा और रूक्मिणी एक ही हैं अत: रूक्मिणी अष्टमी का महत्व वही है जो राधाष्टमी का. जो इनकी उपासना करता है उन्हें देवी लक्ष्मी की उपासना का फल प्राप्त होता है. श्री कृष्ण ने देवी रूक्मिणी के प्रेम और पतिव्रत को देखते हुए उन्हें वरदान दिया कि जो व्यक्ति पूरे वर्ष कृष्ण पक्ष की अष्टमी के दिन आपका व्रत और पूजन करेगा और पौष मास की कृष्ण अष्टमी को व्रत कर के उसका उद्यापन यानी समापन करेगा उसे कभी धनाभाव का सामना नहीं करना होगा. जो आपका भक्त होगा उसे देवी लक्ष्मी की कृपा भी प्राप्त होगी.
देवी रूक्मणी की कृपा से आपके घर में लक्ष्मी का वास होगा और सुख शांति बनी रहेगी.