कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की षष्ठी को सूर्य षष्ठी का व्रत करने का विधान है|
सूर्य षष्ठी व्रत विधि-
सूर्य षष्ठी के दिन सूर्योदय पूर्व दैनिक कर्म से निवृत होकर घर या घर के समीप बने किसी जलाशय, नदी, नहर में स्नान करना चाहिए। स्नान करने के पश्चात उगते हुए सूर्य की आराधना करनी चाहिए।भगवान सूर्य को जलाशय, नदी अथवा नहर के समीप खडे़ होकर अर्ध्य देना चाहिए।शुद्ध घी से दीपक जलाना चाहिए। कपूर, धूप, लाल पुष्प आदि से भगवान सूर्य का पूजन करना चाहिए।
उसके बाद दिन भर भगवान सूर्य का मनन करना चाहिए। इस दिन अपाहिजों, गरीबों तथा ब्राह्मणों को अपनी सामर्थ्य के अनुसार दान देना चाहिए। दान के तौर पर वस्त्र, खाना तथा अन्य उपयोगी वस्तुएं जरुरतमंद व्यक्तियों को दें सकते हैं। भाद्रपद शुक्ल पक्ष की षष्ठी के दिन भगवान सूर्य के निमित्त रखे जाने वाले व्रत में सुबह सूर्योदय से पूर्व उठकर बहते हुए जल में स्नान करना चाहिए।
स्नान करने के पश्चात सात प्रकार के फलों, चावल, तिल, दूर्वा, चंदन आदि को जल में मिलाकर उगते हुए भगवान सूर्य को जल देना चाहिए। सूर्य को भक्ति तथा विश्वास के साथ प्रणाम करना चाहिए। उसके पश्चात सूर्य मंत्र का जाप 108 बार करना चाहिए. सूर्य मंत्र है :- "ऊँ घृणि सूर्याय नम:" अथवा "ऊँ सूर्याय नम:" इसके अतिरिक्त "आदित्य हृदय स्तोत्र" का पाठ भी किया जाना चाहिए।
विधि:
यह व्रत बड़े नियम व निष्ठा से किया जाता है| इसमें तीन दिन के कठोर उपवास का विधान है| इस व्रत को करने वाली स्त्रियों को पंचमी को एक बार नमक रहित भोजन करना पड़ता है| षष्ठी को निर्जल रहकर व्रत करना पड़ता है| षष्ठी को अस्त होते हुए सूरज को विधिपूर्वक पूजा करके अर्ध्य देते है| सप्तमी के दिन प्रातकाल नदी या तालाब पर जाकर स्नान करना होता है| सूर्य उदय होते ही अर्ध्य देकर जाल ग्रहण करके व्रत को खोलना होता है|