योगिनी दशा फल - भ्रामरी
आठ प्रकार की होती हैं योगिनी दशा, जीवन को करती हैं प्रभावित
तंत्र शास्त्र में 64 योगिनियों का उल्लेख मिलता है। इनमें से प्रमुख अष्ट योगिनियों का तंत्र शास्त्र में विशेष महत्व बताया गया है जिनकी उपासना अष्ट भैरवों के साथ की जाती है। ज्योतिष में जिस तरह 120 वर्ष की विंशोत्तरी दशा होती है, उसी तरह 36 वर्ष की योगिनी दशा भी मही गई है। विंशोत्तरी दशा की तरह ही योगिनी दशाएं भी मनुष्य के जीवन को व्यापक रूप से प्रभावित करती हैं। अष्ट योगिनी दशा को भी 27 नक्षत्रों के आधार पर बांटा गया है जो अपने समयकाल में जातक को उसके कर्मानुसार सुख-दुख प्रदान करती है। ये अष्ट योगिनी दशाएं हैं मंगला, पिंगला, धान्या, भ्रामरी, भद्रिका, उल्का, सिद्धा और संकटा। इनकी समयावधि क्रमश: 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8 वर्ष होती है। इन सबका कुल योग 36 वर्ष होता है। अर्थात् पहली मंगला दशा 1 वर्ष, दूसरी 2 वर्ष इसी तरह आठवीं संकटा दशा 8 वर्ष की होती है।
आइए जानते हैं इनका फल -
भ्रामरी :
चौथी योगिनी दशा भ्रामरी होती है और यह चार वर्ष की होती है। इसके स्वामी मंगल हैं। जिनका जन्म अश्विनी, अश्लेषा, अनुराधा, पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र में होता है उनकी जन्मकालिक योगिनी दशा भ्रामरी होती है। इस दशा के दौरान व्यक्ति क्रोधी हो जाता है। कई प्रकार के संकट आने लगते हैं। आर्थिक और संपत्ति का नुकसान होता है। व्यक्ति भ्रमित हो जाता है।
योगिनी दशा को अनुकूल कैसे बनाएं -
योगिनी दशा जातक के कर्मो के अनुसार फल देती है। बुरी दशा भी कभी-कभी अच्छा फल देती है और अच्छी दशाओं के समय भी संकट आ सकते हैं। योगिनी दशाओं को अनुकूल बनाने के लिए किसी भी शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि से प्रारंभ करके पूर्णिमा तक प्रत्येक योगिनी दशा के कारक ग्रह के दिन से संबंधित योगिनी के पांच हजार मंत्रों का जाप करें। संकटा दशा के कारक ग्रह राहू के लिए रविवार तथा केतु के लिए मंगलवार चुनें। संकटा दशा दरअसल राहू-केतु दोनों के लिए मानी जाती है।
ये हैं मंत्र -
भ्रामरी :
ऊं नमो भ्रामरी जगतानामधीश्वरी भ्रामर्ये नम: