माँ गायत्री कौन है , हिन्दू धर्म में देवी का महत्व और परिचय
स्वर्ण सी आभा वाली माँ गायत्री को वेद माता के नाम से भी जाना जाता है | इन्हे सभी देवी देवताओ की माँ माना जाता है | ऐसा माना जाता है कि देवी गायत्री ब्राह्मण के सभी असाधारण गुणों का अभिव्यक्ति है। यह दया की गंगा है जो संसार के समस्त जीवो को अपनी ममता की छाँव में रखती है |
माँ गायत्री का वाहन श्वेत हंस है | इनके हाथो में वेद सुशोभित है | मान्यता है की इनके द्वारा ही वेदों की उत्पति हुई है | यही वेदों का सार है | साथ ही दुसरे हाथ में कमण्डल है | यह मनुष्य के मन में अच्छे गुणों को जन्म देने वाली है जो उनके मानवता के मार्ग में आगे बढ़ाते है |
इनके पति ब्रह्मा जो को बताया गया है | एक बार ब्रह्मा जी पुष्कर में यज्ञ कर रहे थे | उनकी पत्नी सावत्री उस यज्ञ में भाग नही ले पाई थी | तब ब्रह्मा जी ने गायत्री से विवाह कर यज्ञ को संपन्न किया | इससे नाराज होकर सावित्री ने उन्हें श्राप दिया की उनकी पूजा घर घर में नही होगी |
गायत्री एक पेड़ है जिसकी शाखाओ के रूप में देवी देवता अपना कार्यभार सँभालते है | गायत्री के तीन अक्षर सत, रज, तम, तीन तत्वों के प्रतीक हैं। इन्हीं को स्थिति के अनुसार ब्रह्मा, विष्णु, महेश-सरस्वती, लक्ष्मी, काली कहते हैं। इन्हीं तीन श्रेणियों में विश्व की सभी स्थूल एवं सूक्ष्म शक्तियों की गणना होती हैं। जितनी भी शुभ-अशुभ, उपयोगी अनुपयोगी, शान्ति-अशाँति की प्रक्रियाएं दृष्टिगोचर होती हैं वे इन्हीं सत, रज, तम तत्वों के अंतर्गत हैं और यह तीन तत्व गायत्री के तीन चरण हैं। इस प्रकार समस्त शक्ति तत्वों का मूल आधार गायत्री ही ठहरती है।
गायत्री ज्ञान-विज्ञान की मूर्ति हैं। इन्हें परब्रह्मस्वरूपिणी कहा गया है। वेदों, उपनिषदों और धार्मिक शास्त्रों में इनकी विस्तृत महिमा का वर्णन मिलता है।