चंपा षष्ठी /बैंगन छठ
चंपा षष्ठी मार्गशीर्ष मास की शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाई जाती है। यह त्योहार भगवान शिव के अवतार खंडोबा या खंडेराव को समर्पित है। खंडोबा को किसानों, चरवाहों और शिकारियों आदि का मुख्य देवता माना जाता है। यह त्योहार कर्नाटक और महाराष्ट्र जैसे राज्यों का प्रमुख त्यौहार है। मान्यता है कि चंपा षष्ठी व्रत करने से जीवन में खुशियां बनी रहती है। ऐसी मान्यता है कि यह व्रत करने से पिछले जन्म के सारे पाप धुल जाते हैं और आगे का जीवन सुखमय हो जाता है।
होलकर राजवंश के कुल देवता मल्हारी मार्तण्ड की चंपा षष्ठी की रात्रि बैंगन छठ का आयोजन होता है। खंडोबा को ही मल्हारी मार्तण्ड भी कहा गया। चौंसठ भैरवों में मार्तण्ड भैरव भी एक हैं। वैसे सूर्य को भी मार्तण्ड कहा गया है। जैसे बिहार में छठ पूजा, सूर्य पूजा का महत्व है, उसी तरह महाराष्ट्र में बैंगन छठ का।
महाराष्ट्र और सुदूर मालवा में बसे मराठी भाषियों में मल्हारी मार्तण्ड की नवरात्रि का आयोजन मार्गशीर्ष प्रतिपदा से मार्गशीर्ष शुद्ध षष्ठी तक पाँच दिन के उपवास के उपरांत मल्हारी मार्तण्ड की 'षडरात्रि' 'बोल सदानंदाचा येळकोट येळकोट' के साथ संपन्न होती है।
महाराष्ट्र में जैजूरी खंडोबा का मुख्य स्थान है, जो होळ गाँव के पास है। इंदौर के शासक इसी होळ गाँव के होने से होलकर कहलाए और खंडोबा उनके कुल देवता। इस अवसर पर बाजरे की रोटी एवं बैंगन के भुरते का प्रसाद वितरित किया जाएगा।