गणगौर त्यौहार
भारत रंगों भरा देश है. उसमे रंग भरते है उसके , भिन्न-भिन्न राज्य और उनकी संस्कृति. हर राज्य की संस्कृति झलकती है उसकी, वेश-भूषा से वहा के रित-रिवाजों से और वहा के त्यौहारों से. हर राज्य की अपनी, एक खासियत होती है जिनमे, त्यौहार की महत्वपूर्ण भूमिका होती है. भारत का एक राज्य राजस्थान, जो मारवाड़ीयों की नगरी है और, गणगौर मारवाड़ीयों का बहुत बड़ा त्यौहार है जो, बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता है ना केवल, राजस्थान बल्कि हर वो प्रदेश जहा मारवाड़ी रहते है, इस त्यौहार को पूरे रीतिरिवाजों से मनाते है. गणगौर दो तरह से मनाया जाता है. जिस तरह मारवाड़ी लोग इसे मनाते है ठीक, उसी तरह मध्यप्रदेश मे, निमाड़ी लोग भी इसे उतने ही उत्साह से मनाते है. त्यौहार एक है परन्तु, दोनों के पूजा के तरीके अलग-अलग है. जहा मारवाड़ी लोग सोलह दिन की पूजा करते है वही, निमाड़ी लोग मुख्य रूप से तीन दिन की गणगौर मनाते है.
व्रत कथा
राजा का बोया जो-चना, माली ने बोई दुब. राजा का जो-चना बढ़ता जाये पर, माली की दुब घटती जाये. एक दिन, माली हरी-हरी घास मे, कंबल ओढ़ के छुप गया. छोरिया आई दुब लेने, दुब तोड़ कर ले जाने लगी तो, उनका हार खोसे उनका डोर खोसे. छोरिया बोली, क्यों म्हारा हार खोसे, क्यों म्हारा डोर खोसे , सोलह दिन गणगौर के पूरे हो जायेंगे तो, हम पुजापा दे जायेंगे. सोलह दिन पूरे हुए तो, छोरिया आई पुजापा देने माँ से बोली, तेरा बेटा कहा गया. माँ बोली वो तो गाय चराने गयों है, छोरियों ने कहा ये, पुजापा कहा रखे तो माँ ने कहा, ओबरी गली मे रख दो. बेटो आयो गाय चरा कर, और माँ से बोल्यो माँ छोरिया आई थी , माँ बोली आई थी, पुजापा लाई थी हा बेटा लाई थी, कहा रखा ओबरी मे. ओबरी ने एक लात मारी, दो लात मारी ओबरी नही खुली , बेटे ने माँ को आवाज लगाई और बोल्यो कि, माँ-माँ ओबरी तो नही खुले तो, पराई जाई कैसे ढाबेगा. माँ पराई जाई तो ढाब लूँगा, पर ओबरी नी खुले. माँ आई आख मे से काजल निकाला, मांग मे से सिंदुर निकाला, चिटी आंगली मे से मेहन्दी निकाली, और छीटो दियो, ओबरी खुल गई. उसमे, ईश्वर गणगौर बैठे है, सारी चीजों से भण्डार भरिया पड़िया है. है गणगौर माता, जैसे माली के बेटे को टूटी वैसे, सबको टूटना. कहता ने, सुनता ने, सारे परिवार ने.