कौन थे राजा कुरु, कैसे आगे बढ़ा कुरुवंश
राजा कुरु महाभारत में बताए गए कुरु वंश के प्रथम पुरुष थे। वे बड़े प्रतापी और तेजस्वी राजा थे। पांडवों और कौरवों ने भी कुरु वंश में ही जन्म लिया था। विश्व प्रसिद्ध महाभारत का युद्ध भी कुरुवंशियों में ही लड़ा गया।
महाभारत के अनुसार, हस्तिनापुर में एक प्रतापी राजा थे, जिनका नाम संवरण था। इनका विवाह सूर्यदेव की पुत्री ताप्ती से हुआ था। ताप्ती और संवरण से ही कुरु का जन्म हुआ था। राजा कुरु के नाम से ही कुरु महाजनपद का नाम प्रसिद्ध हुआ, जो प्राचीन भारत के सोलह महाजनपदों में से एक था। भगवान श्रीकृष्ण ने कुरुक्षेत्र में ही अर्जुन को गीता का उपदेश दिया था।
ऐसे आगे बड़ा कुरुवंश
राजा कुरु का विवाह शुभांगी से हुए, जिनसे उनके पुत्र विदुरथ हुए, विदुरथ के संप्रिया से अनाश्वा, अनाश्वा के अमृता से परीक्षित, परीक्षित के सुयशा से भीमसेन, भीमसेन के कुमारी से प्रतिश्रावा, प्रतिश्रावा से प्रतीप, प्रतीप के सुनंदा से तीन पुत्र देवापि, बाह्लीक एवं शांतनु का जन्म हुआ। देवापि किशोरावस्था में ही संन्यासी हो गए एवं बाह्लीक युवावस्था में अपने राज्य की सीमाओं को बढ़ाने में लग गए। इसलिए सबसे छोटे पुत्र शांतनु को गद्दी मिली।
शांतनु के गंगा से देवव्रत हुए, जो आगे चलकर भीष्म के नाम से प्रसिद्ध हुए। भीष्म का वंश आगे नहीं बढ़ा, क्योंकि उन्होंने आजीवन ब्रह्मचारी रहने की प्रतिज्ञा की थी। शांतनु की दूसरी पत्नी सत्यवती से चित्रांगद और विचित्रवीर्य हुए। चित्रांगद की मृत्यु के बाद विचित्रवीर्य का विवाह काशी की राजकुमारी अंबिका व अंबालिका से हुआ। इनसे धृतराष्ट्र व पांडु हुए। धृतराष्ट्र के पुत्र कौरव कहलाएं और पांडु के पुत्र पांडव।
इंद्र ने दिया राजा कुरु को वरदान
महाभारत के अनुसार, कुरु ने जिस क्षेत्र को बार-बार जोता था, उसका नाम कुरुक्षेत्र पड़ा। कहते हैं कि जब कुरु इस क्षेत्र की जुताई कर रहे थे तब इन्द्र ने उनसे जाकर इसका कारण पूछा। कुरु ने कहा कि जो भी व्यक्ति इस स्थान पर मारा जाए, वह पुण्य लोक में जाए, ऐसी मेरी इच्छा है। इन्द्र उनकी बात को हंसी में उड़ाते हुए स्वर्गलोक चले गए। ऐसा अनेक बार हुआ। इन्द्र ने अन्य देवताओं को भी ये बात बताई।
देवताओं ने इन्द्र से कहा कि यदि संभव हो तो कुरु को अपने पक्ष में कर लो। तब इन्द्र ने कुरु के पास जाकर कहा कि राजा कुरु तुम व्यर्थ ही कष्ट कर रहे हो। यदि कोई भी पशु, पक्षी या मनुष्य निराहार रहकर या युद्ध करके यहां मारा जायेगा तो वह स्वर्ग का भागी होगा। कुरु ने यह बात मान ली। ये बात भीष्म, कृष्ण आदि सभी जानते थे, इसलिए महाभारत का युद्ध कुरुक्षेत्र में लड़ा गया।