जानें, क्यों साधारण सा बालक बना ध्रुव तारा और क्या है इसकी कथा
नारद जी ने उन्हें ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः मंत्र जाप करने की विधि बताई। इसके बाद ध्रुव ने 6 महीने तक कठिन तपस्या की।
ब्रह्मांड में असंख्य तारे टिमटिमा रहे हैं। इन तारों में एक है ध्रुव तारा, जो कि उत्तरी ध्रुव में स्थित है। पौराणिक ग्रंथों में ध्रुव की भक्ति गाथा का विस्तार से वर्णन है। अगर आपको ध्रुव तारा के बारे में नहीं पता है तो आइए जानते हैं कि कैसे एक साधारण सा बालक ध्रुव तारा बना-
ध्रुव तारा की कथा
विष्णु पुराण के अनुसार, चिरकाल में बालक ध्रुव ब्रह्मा जी के पुत्र मनु के पोते थे। इनके पिता का नाम राजा उतान्पाद था। राजा उतान्पाद ने दो शादियां की थीं। एक पत्नी का नाम सुनीति और दूसरे का नाम सुरुचि था। बालक ध्रुव सुनीति की संतान था। सुरुचि चाहती थी कि उसका पुत्र उत्तम उत्तराधिकारी बने। एक दिन जब ध्रुव अपने पिता की गोद में जाकर बैठ गया तो सुरुचि ने यह कहकर उसे गोद से उतार दिया कि तुम इसके लायक नहीं हो! इससे ध्रुव अत्यंत दुखी हो उठे। इसके बाद वह अपनी मां के पास जाकर बोले- हे माते! मुझे पिता की गोद में बैठने क्यों नहीं दिया गया? तब सुनीति ने कहा कि बेटे अगर गोद में ही बैठना है तो प्रभु की गोद में बैठो। वे सबके पिता हैं। इसके लिए तुम्हें कठिन तप करना होगा। यह सुन ध्रुव वन की ओर गमन कर गए। यह जान नारद जी ने उन्हें वन में रोका और लौट जाने की बात कही, लेकिन ध्रुव नहीं माने।
ध्रुव ने 6 महीने तक कठिन तपस्या की
अंत में नारद जी ने उन्हें ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः मंत्र जाप करने की विधि बताई। इसके बाद ध्रुव ने 6 महीने तक कठिन तपस्या की। तब भगवान श्रीहरि विष्णु जी प्रकट होकर बोले-हे वत्स! मैं तुम्हारी भक्ति से बहुत प्रसन्न हूं। मांगो क्या मांगना चाहते हो। तब ध्रुव ने प्रभु की गोद में बैठने की इच्छा प्रकट की। इसके बाद श्रीहरि विष्णु ने उन्हें अपने गोद में बिठाया और मरणोपरांत ध्रुव तारा बनने का वरदान दिया।