कहां से आया रुद्राक्ष, पढ़ें कथा और हर रुद्राक्ष का महत्व
भगवान शिव ने रुद्राक्ष उत्पत्ति की कथा पार्वती को कही है। एक समय भगवान शिवजी ने एक हजार वर्ष तक समाधि लगाई। समाधि में से जाग्रत होने पर जब उनका मन बाहरी जगत में आया, तब जगत के कल्याण की कामना वाले महादेव ने अपनी आंखें बंद कीं। तब उनके नेत्र में से जल के बिंदु पृथ्वी पर गिरे। उन्हीं से रुद्राक्ष के वृक्ष उत्पन्न हुए और वे शिव की इच्छा से भक्तों के हित के लिए समग्र देश में फैल गए। उन वृक्षों पर जो फल लगे वे ही रुद्राक्ष हैं।
रुद्राक्ष की माला धारण करने से पाप और रोग नष्ट होते हैं। साथ ही सिद्धि मिलती है। भिन्न-भिन्न अंगों में भिन्न-भिन्न संख्यावाले रुद्राक्ष धारण करने से लाभ होता है। शिव पुराण में इसका विस्तृत विवेचन है। भस्म, रुद्राक्ष धारण करके 'नमः शिवाय' मंत्र का जप करने वाला मनुष्य शिव रूप हो जाता है। भस्म रुद्राक्षधारी मनुष्य हो देखकर भूत प्रेत भाग जाते हैं, देवता पास में दौड़ आते हैं, उसके यहां लक्ष्मी और सरस्वती दोनों स्थायी निवास करती हैं, विष्णु आदि सब देवता प्रसन्न होते हैं। अतः सब शैव वैष्णवों को नियम से रुद्राक्ष धारण करना चाहिए।
रुद्राक्ष के मुखः-
- रुद्राक्ष गोल, चिकने, दृढ़ कांटेदार तथा एक छिद्र से दूसरी तरफ छिद्र तक सीधी बारीक रेखा वाला उत्तम गिना जाता है। जिसमें अपने आप छिद्र उत्पन्न हुआ हो वह उत्तम है। एक तरफ के छिद्र से दूसरे छिद्र तक जितनी सीधी रेखा जाती हों वह उतने ही मुख वाला माना जाता है।
- एक रेखा वाला रुद्राक्ष एक मुखी है जो शिवरूप है। वह मुक्ति देता है।
- दो मुखी शिव पार्वती रूप है, जो इच्छित फल देता है।
- तीन मुखवाला रुद्राक्ष त्रिदेवरूप है जो विद्या देता है।
- चार मुखी ब्रह्मरूप है, जो चतुर्विध फल देता है।
- पंचमुखी रुद्राक्ष पंचमुख शिवरूप है, जो सब पापों को नष्ट करता है।
- छः मुखी रुद्राक्ष स्वामिकार्तिक रूप है, जो शत्रुओं का नाश करता है, पापनाशक है।
- सात मुखी कामदेवरूप है, जो धन प्रदान करता है।
- नौ मुखी कपिल मुनि रूप तथा नव दुर्गारूप है, जो मनुष्य को सर्वेश्वर बनाता है।
- दशमुखी विष्णु रूप है, जो कामना पूर्ति करता है। ग्यारह मुखी एकादश रुद्ररूप है, जो विजयी बनाता है।
- बारह मुखी द्वादश आदित्य रूप है, जो प्रकाशित करता है।
- तेरह मुखी रुद्राक्ष विश्वरूप है, जो सौभाग्य मंगल देता हैं।