उपांग ललिता पंचमी
ललिता पंचमी को ही उपांग ललिता पंचमी व्रत भी कहते हैं। इस दिन ललिता देवी की पूजा करने का विधान है। ज्ञात हो कि ललिता देवी को ही त्रिपुर सुंदरी या षोडशी के नाम से भी जाना जाता है। यह 10 महाविद्याओं में से एक है।
ललिता पंचमी का व्रत वैसे तो गुजरात और महाराष्ट्र के कुछ हिस्सों में प्रचलित है। इस दिन विधिपूर्वक त्रिपुर सुंदरी का पूजन होता है और व्रत रखा जाता है।
आखिर कौन है त्रिपुर सुंदरी -
ललिता पंचमी व्रत में त्रिपुर सुंदरी की पूजा का विधान है। तो यहां सहज ही सवाल उठता है कि आखिर यह त्रिपुर सुंदरी है कौन। क्यों की जाती है इनकी पूजा।
तो हमें जानना चाहिए कि देवी त्रिपुरसुंदरी को मां काली का रक्तवर्णा स्वरूप माना जाता है। उनकी आराधना करने से व्यक्ति को धन, ऐश्वर्य, भोग और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
मां त्रिपुर सुंदरी की कथा ...
पुराणों के अनुसार जब माता सती अपने पिता दक्ष द्वारा अपमान किए जाने पर यज्ञ अग्नि में अपने प्राण त्याग देती हैं तब भगवान शिव उनके शरीर को उठाए घूमने लगते हैं, ऐसे में पूरी धरती पर हाहाकार मच जाता है।
जब विष्णु भगवान अपने सुदर्शन चक्र से माता सती की देह को विभाजित करते हैं, तब भगवान शंकर को हृदय में धारण करने पर इन्हें 'ललिता' के नाम से पुकारा जाने लगा।
कालिका पुराण के अनुसार देवी ललिता की दो भुजाएं हैं। यह माता गौर वर्ण होकर रक्तिम कमल पर विराजित हैं। दक्षिणमार्गी शाक्तों के मतानुसार देवी ललिता को 'चण्डी' का स्थान प्राप्त है। इनकी पूजा पद्धति देवी चण्डी के समान ही है।
ललिता माता का मंत्र :
'ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं सौ: ॐ ह्रीं श्रीं क ए ई ल ह्रीं ह स क ह ल ह्रीं सकल ह्रीं सौ: ऐं क्लीं ह्रीं श्रीं नमः।'
पंचमी के दिन इस ध्यान मंत्र से मां को लाल रंग के पुष्प, लाल वस्त्र आदि भेंट कर इस मंत्र का अधिकाधिक जाप करने से जीवन की आर्थिक समस्याएं दूर होकर धन की प्राप्ति के सुगम मार्ग मिलता है।