इन वैदिक उपायों से आसानी से प्रसन्न हो जाते हैं देवता करते हैं संतान सुख की इच्छा पूरी
अपने प्रकाश से सबकों प्राण देने वाले सूर्य देव सहित सात ग्रहों के नाम पर सप्ताह के सात दिन निर्धारित किए गए हैं, और हर वार का अधिपति किसी एक ग्रह को बनाया गया है, लेकिन ग्रह देवों को भी अन्य प्रधान देवों के साथ ही जोड़ा गया है । ऐसी मान्यता हैं की इसके पीछे विज्ञान, ग्रहों की चाल, ऋतुचर्या, दिनचर्या और स्वस्थ सुखी रहने के तौर-तरीके बड़ी कुशलता के साथ पिरोए गए हैं । जाने वारों का क्रम किस प्रकार निर्धारित है, इसके लिए आसमान में ग्रहों की कक्षाओं के क्रम को समझना बहुत जरूरी होता है- वेदों में बताया गया हैं कि अगर इनकों प्रसन्न किया जाये तो ये हर इच्छा पूरी कर देते हैं ।
आसमान में ग्रहों की कक्षा इस प्रकार हैं-
1- शनि 2- गुरु 3- मंगल 4- रवि 5- शुक्र 6- बुध 7- चंद्रमा ।
इनमें हर चौथा ग्रह अगले वार का मालिक होता है
जैसे, रविवार के बाद उससे चौथे चन्द्रमा का, फिर चन्द्र से चौथे मंगल का क्रमश: वार आता-जाता है ।
ग्रह को मूल रूप से विष्णु या महादेव के अंश से उत्पन्न समझा जाता हैं । सूर्य की पूजा, नमस्कार, अर्घ्य देना तो खास तौर पर विष्णु और शिव ही क्यों, सब तरह की पूजा में अनिवार्य कहा गया है । वारपति ग्रह और अवतारों का संबंध इस तरह से हैं-
1- सूर्य- रामावतार
2- चन्द्र- श्रीकृष्णावतार
3- मंगल- नृसिंह अवतार
4- बुध- बुद्ध अवतार
5- गुरु-वामन अवतार
6- शुक्र- परशुराम अवतार
7- शनि- कर्म अवतार आदि ।
इससे हम आसानी से समझ सकते हैं कि सब ग्रह आदि देव विष्णु या शिव जो भी नाम दें, उसी से निकले हैं । वेदों के अनुसार ऐसी मान्यता हैं कि इन देवताओं की पूजा श्रद्धा पूर्वक की जाये तो प्रसन्न होकर सभी इच्छित मनोकामनाएं पूरी कर देते हैं ।
रविवार का वारपति सूर्य स्वयं जीवन का आधार होने से विष्णु रूप कहा गया है । अत: उपाय के रूप में ’आरोग्यं भास्करादिच्छेत्’ के नियम से रोग के प्रकोप को कम करने, स्वस्थ रहने, दवा का अनुकूल प्रभाव पैदा करने और आयु की रक्षा तथा आत्मबल, तन व मन की ताकत को देने वाला सूर्य है । जन्म का कारण होने से सविता, प्रसविता, प्रसव कराने वाला परिवार वृद्धि का देवता हैं । जो लोग प्रजनन अंगों के विकार के कारण, अज्ञात कमी की वजह से औलाद का सुख नहीं देख पाते हैं, उनके लिए सूर्य की उपासना बहुत मुफीद होती है । सूर्य के लिए गायत्री मंत्र, केवल ओम् नाम या ‘ओम् घृणि: सूर्य आदित्य:’ का जप करना, जल चढ़ाना, माता पिता या बड़ों की सेवा सहायता करने से लाभ मिलता हैं