किस तरह से करें पितरों का तर्पण
इस समय पितरों का तर्पण करने से उनकी आत्मा को शांति मिलती है, और मोक्ष प्राप्त होता है। जिन लोगों को पितृ दोष लगता है उन्हें कई तरह की परेशानियां होने लगती हैं। पितृदोष एक बहुत जटिल दोष माना गया है। कहा जाता है कि पितृ पक्ष में पूर्वज पृथ्वीलोक पर होते हैं इस समय तर्पण, पिंडदान करने से यह सीधे पितरों तक पहुंचता है। इस समय पितरों का तर्पण करने से पितर तृप्त होते हैं और आशीर्वाद प्रदान करते हैं। माता-पिता या किसी की मृत्यु हो जाने पर किए जाने वाले कर्मकांड को श्राद्ध कहा जाता है।जानते हैं पितृपक्ष के जुड़ी बातें,
किन स्थानों पर करते हैं लोग श्राद्ध कर्म या पिंडदान
पितृपक्ष में लोग धार्मिक स्थानों पर जाकर पिंडदान करते हैं इसमें बिहार के “गया” का महत्वपूर्ण स्थान है। श्राद्ध करने के लिए लोग हरिद्वार, गंगासागर, जगन्नाथपुरी, बद्रीनाथ, उज्जैन के गया कोटा, वाराणसी के पिशाचमोचन कुंड आदि स्थानों पर जाते हैं।
कैसे करते हैं पिंडदान या श्राद्ध
पितरों का तर्पण करने के लिए दूध, तिल, कुशा, पुष्प, गंध आदि चीजों के जल में मिलाकर पितरों को तृप्त करने के लिए अर्पित किया जाता है। पिण्डदान करके और ब्राह्मणों को भोजन कराके पितरों को भोजन दिया जाता है, ब्राह्मणों को वस्त्रदान किया जाता है मान्यता है कि इससे पितरों को भी वस्त्र की प्राप्ति होती है। उसके बाद दक्षिणा दी जाती है क्योंकि बिना दक्षिणा के श्राद्ध को अधूरा माना जाता है। दक्षिणा देने पर श्राद्ध के पूर्ण फल की प्राप्ति होती है। पितृपक्ष में कम से कम अपने पितरों का जल से तर्पण अवश्य करना चाहिए, इससे पितरों को पानी प्राप्त होता है और प्यास बुझती है।
कौन कर सकता है श्राद्ध
सनातन धर्म में पिता का श्राद्ध पुत्र करता है, इससे उनकी आत्मा को मुक्ति मिलती है और मोक्ष की प्राप्ति होती है। पुत्र के न होने पर पत्नी श्राद्ध कर सकती है। अगर किसी के एक से अधिक पुत्र हैं तो सबसे बड़े पुत्र को श्राद्धकर्म करना चाहिए।