ज्योतिष के मूल सिद्धांत
ज्योतिष के संबंध में कई तरह की भ्रांतियां हैं । कुछ लोग इसे अंधविश्वास कहते हैं और कुछ लोग इसे भाग्यवादी कहते हैं । जो लोग ज्योतिष के संबंध में कुछ भी नहीं जानते, वे भी ज्योतिष पर नकारात्मक टिप्पणियां करते हैं । यह बात अलग है कि भारतीय संस्कृति और समाज में ज्योतिष के पैर इतने गहरे गड़े हुए हैं कि आधुनिक समय में कट्टरपंथी विचारधारा वाले लोग भी ज्योतिष के सिद्धांतों को नकार नहीं पाते । आजकल जिस प्रकार मानव जीवन के दैनिक कार्यों में ज्योतिष समाया हुआ है, इसकी जानकारी हमने पूर्व लेख में दी थी । ज्योतिष एक विज्ञान है और यह सौरमंडल के ग्रह और नक्षत्रों की स्थिति की गणना पर आधारित है । इसका जीता जागता प्रमाण सूर्य ग्रहण, चंद्र ग्रहण और समुद्र में आने वाले ज्वार-भाटा आदि की गणना है, जो बिल्कुल सटीक बैठती है। आश्चर्य की बात यह है कि यह गणना, आजकल के आधुनिक वैज्ञानिक उपकरणों की सहायता से की गई गणना से बिल्कुल मेल खाती है । सौरमंडल में ग्रह-नक्षत्रों की स्थिति की गणना करना, ज्योतिष का सिद्धांत पक्ष है, लेकिन इन ग्रहों के मनुष्य जीवन पर व्यक्तिगत प्रभाव की जानकारी ज्योतिष के फलित पक्ष से होती है । जब तक हम ज्योतिष के सिद्धांत और फलित पक्ष को नहीं समझेंगे तब तक ज्योतिष के बारे में कोई टिप्पणी करना बेकार है । ज्योतिष में तीसरा पक्ष संहिता है, जिससे किसी देश, महाद्वीप अथवा संसार में होने वाले विभिन्न प्राकृतिक आपदाओं, वर्षा, अकाल और बड़ी राजनीतिक, आर्थिक या सामाजिक क्रांतियों आदि के बारे में समष्टीगत प्रभाव को जाना जाता है । उस विषय पर हम अभी चर्चा नहीं करेंगे । लेकिन सिद्धांत और फलित पक्ष के सम्बंध में हमारे विचार से निम्नलिखित 5 मूल सिद्धांत महत्वपूर्ण है, जिन्हें समझना आवश्यक है । अगर हम ईमानदारी से इन सिद्धांतों को समझेंगे तो ज्योतिष पर अंगुली नहीं उठा पाएंगे।
मनुष्य अपने भाग्य का निर्माता स्वयं है ।
जन्मकुंडली के आधार पर ग्रह-गोचर और ग्रह-दशाओं का प्रभाव व्यक्ति के जीवन में अवश्य पड़ता है, लेकिन जन्म कुंडली पूर्व जन्मों के कर्मों के आधार पर जन्म समय पर ग्रहों के आकाशीय स्थिति के अनुसार बनायी जाती है, जबकि व्यक्ति का जीवन वर्तमान जीवन में उसके द्वारा सही दिशा में किए गए प्रयाश और कर्मों के आधार पर भी निश्चित होता है । अखिल विश्व गायत्री परिवार के संस्थापक आचार्य श्रीरामजी शर्मा अपने प्रवचनों में कहते थे कि “नजरें बदली तो नजारे बदल गए, किस्ती ने नाव पलटी तो किनारे बदल गए” । अर्थात् मनुष्य अपना दृष्टिकोण, चिंतन और पुरुषार्थ की दिशा बदलता है तो उससे पर्याप्त परिणाम में भी वांछित परिवर्तन हो जाता है । जो मनुष्य हवा की दिशा या पानी की दिशा में नाव चलाते हैं, उनकी नाव, भाग्य के सहारे चलती है, लेकिन जो पानी के बहाव या हवा के दिशा के विरुद्ध नाव चलाते हैं, वे अपना लक्ष्य या किनारा अर्थात् अपना भाग्य स्वयं निश्चित करते हैं । हम वैज्ञानिक दृष्टिकोण रखते हैं, अतः हमारा मत यही है कि मनुष्य अपने स्वयं के कर्मो और मेहनत के आधार पर अपना भाग्य बनाता है, और किसी सीमा तक पुरुषार्थ से भाग्य को बदला जा सकता है । कठिन मेहनत और उचित पुरुषार्थ करने के बावजूद कभी-कभी उसका वांछित फल मनुष्य को इच्छित समय पर नहीं मिलता । ज्योतिष के अनुसार इसका कारण ग्रहों की अशुभ दशा, अन्तर्दशा अथवा गोचर आदि माना जाता है । लेकिन हमें यह भी समझना चाहिए कि ऐसे कठिन समय में सफलता पाने के लिए अधिक लगन और मेहनत करनी पड़ती है। बस, हमें इसी फर्क को समझना है । इसीलिए कहा गया है कि “मनुष्य अपने भाग्य का निर्माता स्वयं है”
ज्योतिषी किसी का भाग्य नहीं बनाता है ।
जब कोई जातक किसी ज्योतिषी के पास अपनी समस्या लेकर जाते हैं, तो ज्योतिषी हस्तरेखा, जन्म कुंडली या प्रश्न कुंडली के आधार पर जातक के अच्छे या बुरे समय का आंकलन और विश्लेषण करके उसकी समस्या का कारण और उपाय बताता है। ज्योतिषी की बातों पर विश्वास करके उसके द्वारा सुझाए गए उपाय का जो पालन करते हैं, उनको बुरे समय में राहत मिल सकती है। यहां पर यह बात समझने की है कि ज्योतिषी कोई उपाय नहीं कर सकता। अगर हम इस अपेक्षा के साथ ज्योतिषी के पास जाते हैं कि ज्योतिषी महाराज खुद ही कोई उपाय करके हमारा भाग्य बदल दें, तो यह असंभव है। व्यक्ति को खुद को ही मेहनत करनी पड़ेगी और उपाय करने पड़ेंगे और सकारात्मक सोच के साथ आगे बढ़ना पड़ेगा। भारतीय ज्योतिष में पीड़ित या कमजोर ग्रह को बलवान बनाने के लिए विभिन्न उपाय बताए जाते हैं, क्योंकि हमारे यहां मंत्र- जप और पूजा -पाठ की परंपरा है। कुछ लोग पण्डितजी को दान- दक्षिणा देकर मंत्र, पाठ आदि उनसे करवा लेते हैं। यहां पर हमारा कहना यह है कि जहां तक संभव हो सके उपाय स्वयं को ही करना चाहिए। भारतीय ज्योतिष के अनुसार हमें बताये गए उपाय करने के साथ-साथ स्वयं का दृष्टिकोण बदलना चाहिए और बुरे समय में परिस्थितियों से लड़ने के लिए अपने आप को समर्थ बनाने का प्रयास करना चाहिए। इसीलिए कहा गया है कि “भगवान उन्हीं की सहायता करते हैं जो अपनी सहायता खुद करते हैं” ।
आकाशीय ग्रह-नक्षत्र जातक के कर्मों के आधार पर ही अच्छा या बुरा फल देते हैं ।
ज्योतिष के मामले में सामान्य लोगों का विचार है कि आकाश में स्थित शनि, मंगल, राहु या केतु, आदि पाप ग्रह मनुष्य का बुरा करते हैं और उन ग्रहों को खुश करने के लिए लोग ज्योतिषी द्वारा बताए गए उपाय करते हैं। यहां पर हमारा यह कहना है कि आकाश में स्थित ग्रह- नक्षत्र किसी का अच्छा या बुरा नहीं करते, बल्कि मनुष्य के जीवन में अच्छा या बुरा उसके स्वयं के द्वारा पूर्व जन्म अथवा वर्तमान जीवन में किए गए कर्मों का परिणाम होता है। कर्म-फल के सिद्धांत के अनुसार, पूर्व जन्म के संचित कर्म तीन प्रकार के होते हैं: दृढ़, अदृढ़ और दृढादृढ़ । दृढ कर्मों का फल बदला नहीं जा सकता है और उनका फल ग्रहों की दशा- महादशाओं में भोगना ही पड़ता है। अदृढ़ कर्मों का फल ग्रहों के गोचर समय में मिलता है, जो जातक के वर्तमान कर्मों के परिणाम स्वरूप बदल सकता है। दृढादृढ़ कर्मों का फल जन्मकुण्डली में स्थित ग्रह -योगों पर निर्भर करता है, वे वर्तमान कर्मों के कारण परिवर्तित हो सकते हैं और नहीं भी हो सकते। अतः दृढ़ कर्मों के फल को भोगने के लिए हमें अपने आपको मानसिक रूप से तैयार रखना चाहिए और ईश्वरीय विधान को मानते हुए उन्हें स्वीकार कर लेना चाहिए। फिर भी वर्तमान जीवन में किए गए कार्य भावी जीवन या अगले जन्म के लिए हमारे लिए लाभदायक हो सकते हैं। यह नियम, इसी प्रकार है जैसे हम पूर्वजों के संचित धन का उपयोग करते हैं और हमारे द्वारा संचित धन का उपयोग हमारी आने वाली पीढ़ियां करती हैं। यद्यपि संचित धन का सदुपयोग या दुरूपयोग करना हमारे ऊपर या अगली पीढ़ी पर ही निर्भर करता है।
ज्योतिषी का विश्लेषण जातक के देश, काल और परिस्थिति के आधार पर निर्भर करता है।
यह सन्देह पैदा होता है कि किसी एक ही अस्पताल में एक ही समय पर जन्मे बच्चों की जन्मकुंडलियां एक ही होने के बावजूद उनका भाग्य अलग -अलग क्यों होता है ? कुछ बच्चे अमीर होते हैं और अपने जीवन में खूब प्रगति करते हैं, जबकि दूसरे बच्चे अपने जीवन निर्वाह करने के लिए भी संघर्ष करते रहते हैं। अब प्रश्न यह है कि अगर जन्मकुंडली के आधार पर ही किसी जातक का विश्लेषण करें तो, उनका भविष्य एक जैसा ही होना चाहिए। भारतीय ज्योतिष में ज्योतिर्विदों का कहना है कि जातक की जन्मकुंडली का फल देश, काल और परिस्थिति के अनुसार होता है। अस्पताल में एक ही स्थान पर एक ही समय एक बच्चा अमीर या सम्पन्न घर का पैदा होता है और दूसरा बच्चा गरीब घर का । गरीब बच्चे को अपने जीवन में प्रगति करने के लिए अधिक परिश्रम करना पड़ता है, फिर भी जरूरी नहीं है कि वह अमीर घर के बच्चे के बराबर स्थान प्राप्त कर सकें। इस नियम को हम ऐसे समझ सकते हैं कि प्रचंड सर्दी के मौसम में एक गरीब का बच्चा सड़क पर सोकर कपड़ों और उचित चिकित्सा के अभाव में बीमार पड़ सकता है, जबकि उसी मौसम में एक संपन्न व्यक्ति अपने घर में उचित कपड़ों की व्यवस्था और उचित परवरिश या चिकित्सा के कारण सर्दी के प्रभाव को निष्फल कर देता है। यहां पर सर्दी के मौसम का एक होने के बावजूद भी हमें उसके परिणाम अलग-अलग मिलते हैं। इसका कारण उन बच्चों के परिवार की परिस्थिति पर निर्भर करता है। यहां यह बात भी महत्वपूर्ण है कि एक ही परिवार में जन्मे बच्चे एक समान योग्यता, बुद्धि कौशल और सम्पन्न नहीं होते। स्वर्गीय श्री धीरूभाई अंबानी के 2 पुत्रों, श्री अनिल अंबानी और मुकेश अंबानी में यह अंतर स्पष्ट देखा जा सकता है । इस अंतर का कारण उनके जन्म के समय की जन्म कुंडलियों का अंतर हो सकता है । इस विषय पर कभी अलग से विचार किया जाएगा ।
पूर्व जन्म के कर्मों के अनुसार, जन्म के समय ग्रहों की आकाशीय स्थिति के आधार पर ही भावी जीवन का ज्योतिषीय विश्लेषण होता है ।
एक ही स्थान और एक ही दिन अलग-अलग समय में पैदा हुए बच्चों का भाग्य अलग -अलग क्यों होता है ? ज्योतिष के सिद्धांत के अनुसार जन्म कुंडली में लग्न और इससे संबन्धित षोडश वर्ग हर समय बदलते रहते हैं। मोटे तौर पर किसी समय अंतराल में लग्न अथवा ग्रहों द्वारा राशि के बदलने पर जन्म कुंडली का प्रभाव बदल जाता है। भारतीय ज्योतिष का सिद्धांत है कि जिस समय जो बच्चा पैदा होता है, उस समय आकाश में चलते हुए (गोचर करते हुए) ग्रह और नक्षत्रों की जो स्थिति होती है, इसके आधार पर ही जन्मकुंडली का निर्माण और जातक के जीवन का विश्लेषण होता है। अलग-अलग समय में जन्मे हुए बच्चों में कोई बच्चा भाग्यवान होता है और दूसरा बच्चा भाग्यहीन। ज्योतिष के सिद्धांत के अनुसार किसी बच्चे के पूर्व -जन्म के कर्मों के परिणाम स्वरूप जन्म समय पर आकाश में ग्रहों की जो स्थिति होती है, उसी के अनुसार उसका जन्म निर्धारित होता है। आजकल कुछ बच्चों के जन्म ऑपरेशन से होते हैं। कुछ लोग ज्योतिषी की सलाह के अनुसार डॉक्टर से मिलकर बच्चे का उचित जन्म समय चुनने का प्रयास करते हैं। यह प्रयास कभी सफल हो जाता है, लेकिन जरूरी नहीं है कि निर्धारित समय में बच्चे का जन्म संपन्न कराया जा सके। यहां पर हमारा विचार है कि ईश्वरीय विधान में खलन पैदा करके किसी बच्चे का भाग्य निर्धारित करना अच्छी बात नहीं है। फिर भी अगर ऐसा होता है, तो इसको भी ईश्वरीय विधान ही समझना चाहिए, न कि ज्योतिषी या डॉक्टर का विधान। हम पूर्व लेख में यह पहले ही बता चुके हैं कि एक ही समय में जन्मे बच्चों का भाग्य उन बच्चों के परिवार की परिस्थितियों पर निर्भर करता है। इस प्रकार ज्योतिष पर टीका-टिप्पणी करने से पूर्व उपरोक्त सिद्धांतों को समझना आवश्यक है । जो ज्योतिष के विद्यार्थी अथवा विद्वान हैं, उनको भी जातक को उपरोक्त सिद्धांतों के बारे में स्पष्ट कर देना चाहिए । उसके बाद ही उसकी जन्म कुंडली का विश्लेषण और भावी जीवन की संभावित घटनाओं का आंकलन करना चाहिए । यहां यह बात भी स्पष्ट करना भी आवश्यक है कि कोई भी ज्योतिषी किसी भी विधि से ग्रह शांति करके, किसी जातक के भाग्य अथवा प्रारब्ध को बदलने का यदि दावा करता है, तो स्वस्वार्थवश वह जातक को बेवकूफ बनाता है । इस बात को समझने के लिए हमें रामायण और महाभारत के बहुत से प्रसंग मिल जाएंगे जिनमें विश्वामित्र, वशिष्ठ, वेदव्यास, विदुर जैसे महान ज्योतिषी और त्रिकालदर्शी तत्कालीन राजपरिवार के मार्गदर्शक होने के बावजूद भावी बुरी घटनाओं को नहीं टाल सके । यहां तक कि श्री कृष्णजी भी महाभारत में कौरव वंश के विनाश और गांधारी के श्राप से अपने यदुवंश के विनाश को नहीं टाल सके । फिर भी हमें इस बात को भी ध्यान रखना चाहिए कि किसी लक्ष्य की प्राप्ति के लिए सकारात्मक दृष्टिकोण के साथ, सही समय पर सही प्रयास और पुरुषार्थ करना भी आवश्यक है । ज्योतिष का सिद्धांत यही है ।