गोदरेज ग्रुप का कारोबार दुनिया के लगभग 90 देशों में फैला है. कारोबार अब दो हिस्सों में बंट गया. केवल ताला-चाबी, तिजोरी अलमारी ही नहीं इस ग्रुप ने साबुन से लेकर रियल एस्टेट सेक्टर में भी अपना कारोबार बढ़ाया.
Godrej Success Story :अंग्रेजों को भी था गोदरेज पर भरोसा, ब्लेड, ताला-चाबी बनाने से चांद तक पहुंचने का दिलचस्प है सफर
गोदरेज (Godrej Group) का नाम लेते ही मन में अलमारी याद आ जाती है. आज भी कई घरों में अलमारी को गोदरेज ही बोला जाता है. ऐसा इसलिए क्योंकि गोदरेज ग्रुप ने लोगों के मन में ऐसी छाप छोड़ी ही है. कारोबार की शुरुआत ब्लेड, ताला-चाबी बनाने से करने के बाद अंग्रेजों के लिए तिजोरी बनानी शुरू की. जिसके बाद अलमारी बनाते-बनाते ये ग्रुप चांद तक भी पहुंच गया. जानते हैं 127 साल पुराने कारोबारी गोदरेज घराने की सफलता की कहानी.
चर्चा में है गोदरेज ग्रुप
आज गोदरेज ग्रुप बंटवारे को लेकर चर्चा में है. जिसमें बंटवारा भी बिना किसी लड़ाई के आपसी सहमती और शांति से पूरा हो रहा है. इस ग्रुप का कारोबार दुनिया के लगभग 90 देशों में फैला है. जो कारोबार अब दो हिस्सों में बंट गया. केवल ताला-चाबी, तिजोरी अलमारी ही नहीं इस ग्रुप ने साबुन से लेकर रियल एस्टेट सेक्टर में भी अपना कारोबार बढ़ाया.
कब हुई थी गोदरेज के कारोबारी सफर की शुरुआत
साल 1897 में जब भारत पर अंग्रेजों की हुकूमत थी उस समय गोदरेज ग्रुप की नींव रखी गई. आर्देशर गोदरेज और उनके भाई पिरोजशाह गोदरेज ने सबसे पहले सर्जरी में इस्तेमाल किये जाने वाले ब्लेड बनाने से अपने कारोबार की शुरुआत की. ये काम ज्यादा चल नहीं सका.
ताला-चाबी बनाने की शुरुआत
जब ब्लेड बनाने का काम ज्यादा नहीं चल सका तो दोनों भाइयों ने बढ़ती चोरी की घटनाओं को देखते हुए ताला-चाबी बनाने का कारोबार शुरू किया. बाजार में उपलब्ध अन्य कंपनियों के ताले की तुलना में उन्होंने और ज्यादा मजबूत ताले बनाए. इस व्यवसाय में उन्हें काफी सफलता मिली. जिसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा.
गोदरेज पर था भरोसा
ताला-चाबी बनाने के दौरान ही उन्होंने तिजोरियां बनानी भी शुरू कर दी. उनकी बनाई तिजोरियों पर अंग्रेज भी भरोसा करते थे. इसके बाद आर्देशर गोदरेज ने स्वदेशी आन्दोलन में भी भाग लिया और भारत को आजाद करने में योगदान दिया.
बनाया था पहला बैलेट बॉक्स
जब देश आजाद हुआ, उसके बाद साल 1951 में हुए पहले लोकसभा चुनाव के दौरान इस्तेमाल किये गए बैलेट बॉक्स का निर्माण गोदरेज ने ही किया था. साल 1955 पहला भारतीय टाइपराइटर भी गोदरेज ने ही बनाया था. साल 1958 में गोदरेज ऐसी पहली भारतीय कंपनी बनी, जिसने फ्रिज का निर्माण किया था.
आदि गोदरेज ने कारोबार को लगाए फंख
साल 1963 में आदि गोदरेज ने एंट्री ली और उन्होंने अपने कारोबार को पंख लगा दिए. अमेरिका के एमआईटी से बिजनेस मैनेजमेंट की पढ़ाई की. व्यापार की बागडोर संभालने के दौरान उन्होंने कई फैसले लिए और लोगों के साथ इमोशनली जुड़े. जिससे गोदरेज समूह सफलता की बुलंदियों पर पहुंच गया. आज भी लोगों की जुबान पर गोदरेज का नाम बैठा है.
चंद्रयान 3 से भी जुड़ा है गोदरेज का नाम
भारत के मून मिशन से भी गोदरेज का नाम जुड़ा हुआ है. उन्होंने साल 2008 में चंद्रयान 1 के लिए लूनर ऑर्बिट और लॉन्च व्हीकल बनाया था. इसके बाद चंद्रयान 2 के लिए उपकरण का निर्माण किया था. साल 2023 में चंद्रयान 3 को सफलता हासिल हुई थी. जिसके कई जरूरी पार्ट्स गोदरेज ने तैयार किये थे.
बंटवारे में किसे क्या मिला ?
गोदरेज समूह की पांच लिस्टेड कंपनियां हैं, जो आदि और नादिर गोदरेज के हिस्से में आई है. इसके अलावा नॉन लिस्टेड कंपनियां और लैंड बैंक वाला हिस्सा जमशेद गोदरेज और उनकी बहन स्मिता को मिला.