।। जय ब्रह्मदेव ।।
ब्रह्मा हिन्दू धर्म के त्रिदेवों में से एक हैं। ये सृष्टिकर्ता हैं जो पालनहार नारायण एवं संहारक शिव के साथ त्रिमूर्ति को पूर्ण करते हैं। इन्हे हिरण्यगर्भ कहा जाता है क्यूँकि इनकी उत्पत्ति ब्रम्ह-अण्ड (ब्रम्हांड) से मानी जाती है। समस्त सृष्टि का सृजन करने के लिए इन्हे परमपिता भी कहा जाता है। ये त्रिदेवों में एक हैं ।
वास्तविकता ये है कि वेदों एवं पुराणों में ब्रम्हा का महत्त्व विष्णु एवं शिव से किसी भी मामले में कम नहीं है और इन तीनों को एक दुसरे का पूरक और समकक्ष माना जाता है। हालाँकि इनकी उत्पत्ति निर्विवाद रूप से शिव और विष्णु के बाद मानी गयी है लेकिन कहीं कहीं सदाशिव के साकार रूप रूद्र को ब्रम्हा से उत्पन्न माना गया है। ऐसी मान्यता है कि सदाशिव (परब्रम्ह या शिव का निराकार रूप) ने विष्णु और ब्रम्हा की उत्पत्ति के बाद स्वयं त्रिदेवों को पूर्ण करने के लिए एवं संहार का उत्तरदायित्व सँभालने के लिए रूद्र के रूप में उत्पन्न हुए।
ब्रम्हा को स्वयंभू माना गया है जिसका अर्थ है स्वयं उत्त्पन्न होने वाला। इन्हे ब्रम्ह-अण्ड से उत्पन्न होने के कारण हिरण्यगर्भ भी कहा जाता है। जब जगत में कुछ नहीं था, केवल अंधकार था तो ब्रम्हाण्ड रुपी अंडे को चीर कर एक अनंत प्रकाश रुपी पाँच सर एवं चार भुजाओं वाले ब्रह्मा का जन्म हुआ जो एक कमल पर विराजमान थे। अपने जन्म से आश्चर्यचकित ब्रम्हा ने अपने उत्पत्ति का कारण जानने के लिए उस कमल-दण्ड को पकड़ कर नीचे चलना आरम्भ किया किन्तु १००० वर्षों तक लगातार चलने के बाद भी वे उसके अंत तक नहीं पहुँच सके। अंततः हार कर वे वापस उसी कमल पर अपने जन्म के कारण पर चिंतन करने लगे। तभी उन्हें एक स्वर सुनाई दिया "तपस... तपस...." उस स्वर से प्रभावित हो वे तपस्या में लीन हो गए। इस तपस्या को सृष्टि की पहली तपस्या का सम्मान प्राप्त है और इसे "आदि-तप" भी कहा गया है। अनंत काल तक (कहीं-कहीं १००० वर्षों का वर्णन है) तपस्या करने के पश्चात उन्हें अनंत क्षीरसागर में शेषनाग की शैय्या पर लेटे नारायण के दर्शन हुए।
नारायण ने उनसे कहा कि "हे आदिपुरुष! आपने अनंत तप कर समस्त प्रकार के ज्ञान को प्राप्त किया है। बुद्धि, बल और तेज में आप स्वयं मेरे समान ही हैं। मेरे दर्शन से आपमें सृजन की शक्ति आ गयी है अतः हे देव अब आप अपने मानस शक्ति से इस जगत की रचना करें।" भगवान विष्णु से एक प्रकार की प्रेरणा पाकर ब्रम्हा ने सृष्टि की रचना का संकल्प लिया। अपनी वाक्-शक्ति से उन्होंने सबसे पहले चारों वेदों को उत्पन्न किया और स्वयं उसे धारण किया। उन्होंने इसके बाद कई बार अपने मानस शक्ति से ब्रम्हाण्ड की रचना करने का प्रयास किया किन्तु असफल रहे। ये देख कर उन्होंने एक बार फिर नारायण का ध्यान किया और उनसे सहायता माँगी। ब्रम्हदेव की व्यथा सुन कर भगवान विष्णु ने उन्हें मैथुनी सृष्टि बनाने का सुझाव दिया। इस प्रकार उन्होंने फिर से संकल्प कर अपने मानस पुत्रों जिनमे सनत्कुमार और नारद भी थे, को उत्पन्न किया और उन्हें सृष्टि के विस्तार की आज्ञा दी किन्तु नारद ने सनत्कुमारों और उनके अन्य मानस पुत्रों को वैराग्य की शिक्षा देकर विरक्त कर दिया। इससे क्रोधित हो ब्रह्मा ने नारद को सदैव भटकते रहने का श्राप दे दिया।
उन्होंने फिर से सृष्टि के निर्माण आरम्भ किया। वे ये समझ गए कि पुरुष और नारी के संयोग से ही सृष्टि का विस्तार हो सकता है। इसी कारण उन्होंने अपने दाहिने अंग से मनु एवं वाम अंग से शतरूपा की उत्पत्ति हुई और इन्ही दोनों के संयोग से मैथुनी मानवी सृष्टि का आरम्भ हुआ। मनु की संतान होने के कारण ही हम मानव कहलाते हैं। इसके अतिरिक्त उन्होंने दस मानस पुत्रों को भी प्रकट किया जो प्रजापति कहलाये। ये दस प्रजापति हैं - मरीचि, अत्रि, अंगिरा, पुलत्स्य, पुलह, कृतु, भृगु, वशिष्ठ, कर्दम एवं दक्ष जिनके पुत्र-पौत्रों से संसार का अनंत विस्तार हुआ। दक्ष ने अपनी पुत्रिओं के समस्त जगत के महान ऋषिओं एवं देवताओं को दिया जिनसे सभी प्रकार के जीवों का कुल चला। विशेषकर महर्षि कश्यप के द्वारा देव, दैत्य, दानव, असुर, राक्षस, गरुड़, नाग, कीट, पतंग, वनस्पति एवं अन्य कुल चले।
ब्रह्मा पूरे जगत के पितामह होने के कारण सभी के लिए सम्माननीय माने जाते हैं। इसी कारण देव-दैत्य आदि अपनी समस्याओं के निदान हेतु ब्रह्मदेव के पास आते हैं। वेदों में कहा गया है कि जो कोई और नहीं दे सकता वो केवल त्रिदेवों से प्राप्त हो सकता है। ब्रह्मा, भगवान विष्णु एवं रूद्र के सामान हर प्रकार वरदान देने में सक्षम हैं यही कारण है कि कई दैत्य भी इनसे अमरता का वरदान पाने को लालायित रहते हैं किन्तु इसकी महत्ता को समझने के कारण वे अमरता का वरदान किसी को नहीं देते। इनकी पत्नी सावित्री एवं पुत्री सरस्वती को माना गया है। हालाँकि बाद में अपनी ही पुत्री सरस्वती पर आसक्त होने के कारण उन्हें भी इनकी पत्नी माना जाता है। कहीं-कहीं गायत्री को भी ब्रह्मा की पत्नी कहा गया है। उनका वाहन हंस है। ब्रह्मा ही समय-समय पर भगवान विष्णु को पृथ्वी के उद्धार के लिए अवतार लेने के लिया प्रेरित करते हैं। ऐसा भी माना जाता है कि ब्रह्मा ने ही गौतम बुद्ध को तप करने की प्रेरणा दी।
ब्रह्मा के अवतार -
ब्रह्मा के अवतार के बारे में लोगों को अधिक जानकारी नहीं है पर इनके सात मुख्य अवतार हैं जिन्हे सप्तवतार या ब्रह्मवातार भी कहते हैं। यहाँ केवल उनका नाम दिया जा रहा है। उनके बारे में विस्तार से अलग लेख प्रकाशित किया जायेगा।
- वाल्मीकि अवतार
- कश्यप अवतार
- दत्तात्रेय अवतार
- लक्ष्मण अवतार
- व्यास अवतार
- बलराम अवतार
- कालिदास अवतार
ब्रह्मा का पाँचवा मस्तक और पूजा अधिकार से बहिष्कार -
वैसे तो ब्रह्मा के पाँच सर का वर्णन आता है किन्तु उनका चार सर वाला स्वरुप ही प्रसिद्ध है। इसके अतिरिक्त विष्णु एवं शिव की अपेक्षा उनकी पूजा बहुत कम की जाती है। ना ही वैष्णव अथवा शैव की तरह उनका कोई अपना समुदाय है। हालाँकि ब्रह्मा जी की उपासना का भी एक विशिष्ट सम्प्रदाय है, जो वैखानस सम्प्रदाय के नाम से प्रसिद्ध है। इस वैखानस सम्प्रदाय की सभी सम्प्रदायों में मान्यता है। पुराणादि सभी शास्त्रों के ये ही आदि वक्ता माने गये हैं। भारत में उनका एकमात्र मंदिर राजस्थान के पुष्कर में है। इसके पीछे कई कथा का वर्णन आता है:
कहा जाता है कि मनु की उत्पत्ति के बाद जब उन्होंने उसकी पत्नी के रूप में शतरूपा की रचना की तो उसकी सुंदरता पर मुग्ध हो गए। शतरूपा उनकी दृष्टि से बचने के इधर-उधर भागने लगी किन्तु वे जहाँ भी जाती ब्रह्मा अपने चारों सिरों से उसे देखते रहते। तब शतरूपा आकाश की ओर चली गयी जिस कारण ब्रह्मा ने आकाश की ओर अपना एक और सर उत्पन्न कर लिया जिस कारण शतरूपा का छिपा रहना असंभव हो गया। जब महादेव ने ब्रह्मा को अपनी पुत्री पर कुदृष्टि डालते देखा तो उन्होंने दण्ड-स्वरुप उनका पाँचवा सर काट दिया।
एक और वर्णन के अनुसार ब्रह्मा के पाँच सरों में से चार महादेव की स्तुति करते थे किन्तु एक सर उनकी निंदा करता था जिस कारण महादेव ने वो सर काट दिया। इस कारण ब्रह्मा का पुत्र दक्ष महादेव का घोर विरोधी हो गया और उसके द्वेष के कारण सती को अपने प्राण त्यागने पड़े।
एक कथा के अनुसार एक बार ब्रह्मा एवं विष्णु में उनकी महानता को लेकर विवाद हो गया। तभी उनके बीच एक ज्योतिर्लिंग प्रकट हुआ और आकाशवाणी हुई की जो भी इसका छोर ढूढ़ लेगा वो महान कहलायेगा। ब्रह्मा हंस के रूप में ऊपर तथा विष्णु वराह के रूप में नीचे गए किन्तु हजारों वर्षों के बाद भी उन्हें उस शिवलिंग का छोर ना मिला। हारकर विष्णु ने कहा कि मैं छोर ढून्ढ नहीं पाया किन्तु ब्रह्मा ने झूठ कह दिया कि उन्हें ऊपरी छोर मिल गया। उन्हें अपने मुख से असत्य कहते लज्जा आई इसी कारण उन्होंने अपना पाँचवा सर, जो गधे का था उससे झूठ बोला। तब महादेव ने असत्य वचन बोलने के कारण उनका वह मस्तक काट दिया और पूजित ना होने का श्राप दिया।
एक बार कामदेव ने ब्रह्मा द्वारा दिए काम-बाण उन्ही पर चला दिए जिससे वे अपनी पुत्री सरस्वती पर ही मुग्ध हो गए। तब शिव ने इस कृत्य के लिए उन्हें पूजित ना होने का श्राप दिया। चेतन होने पर ब्रह्मा ने भी कामदेव को महादेव के द्वारा भस्म होने का श्राप दे दिया।
एक कथा के अनुसार भगवान शिव और पार्वती के विवाह में ब्रह्मा ही ब्राम्हण रूप में विवाह करवा रहे थे। पार्वती ने अपना मुख घूँघट में ढका हुआ था किन्तु ब्रह्मा उनका मुख देखना चाहते थे। इस कारण उन्होंने हवनकुण्ड में गीली लकड़ी डाल दी जिससे धुआँ हुआ और देवी पार्वती ने अपना घूँघट उठा दिया। ब्रह्मा उनके सौंदर्य को देखते ही रह गए। जब शिव ने ऐसा देखा तो उन्होंने ब्रह्मदेव की पूजा ना होने का श्राप दे दिया।
एक बार ब्रह्मा पुष्कर में एक यज्ञ कर रहे थे जिसमे सरस्वती समय पर नहीं पहुँच पायी। बिना पत्नी के यज्ञ पूर्ण नहीं हो सकता था इसीलिए ब्रह्मा ने गायत्री की रचना की और उनसे विवाह किया। जब सरस्वती यज्ञ-स्थल पहुँची और वहाँ गायत्री को बैठे देखा तो क्रोध में उन्होंने ब्रह्मा को श्राप दे दिया कि इस स्थान के अतिरिक्त आपकी पूजा और कही नहीं होगी।
ऐसा माना जाता है कि पूरे विश्व में केवल पुष्कर में ब्रह्मा का मंदिर है किन्तु ये सत्य नहीं है। पुष्कर निश्चित रूप से ब्रह्मा का सर्वाधिक प्रसिद्ध एवं महत्वपूर्ण मंदिर है किन्तु इसके अतिरिक्त भी राजस्थान में ही बारमेर जिले के आसोतरा गांव में ब्रह्मा का एक मंदिर है जिसे खेतेश्वर ब्रह्मधाम तीर्थ कहते हैं। केरला के उथमार कोवली नमक जगह में ब्रह्मा, विष्णु एवं शिव के साथ त्रिमूर्ति रूप में पूजे जाते हैं जिसे थ्रिपया त्रिमूर्ति मंदिर कहते हैं। तमिलनाडु के कुंबकोणम गांव में ब्रह्मा का ब्रह्मापुरीईश्वर मंदिर है। आंध्र प्रदेश के श्रीकालाहस्ती नामक स्थान पर ब्रह्ममंदिर है। इसके अतिरिक्त आंध्रप्रदेश के ही चेब्रोलू नमक जगह पर ब्रह्मा का चतुर्मुख मंदिर है। गोवा के करम्बोलिम नामक स्थान पर ब्रह्मा का एक तीर्थ है। महाराष्ट्र के सोलापुर जिले के मंगलवेढा गांव में तथा मुंबई के निकट नाला सुपारा में भी ब्रह्मा की मूर्ति स्थापित है।
इसके अतिरिक्त गुजरात के खेड़ब्रह्म, कानपुर में ब्रह्म कुटीर मंदिर, हिमाचल प्रदेश के खोखन, आँध्रप्रदेश के अनंतपुर एवं तमिलनाडु के होसुर में भी ब्रह्मदेव के उल्लेखनीय मंदिर हैं। यही नहीं विदेश में भी ब्रह्मा के मंदिर हैं। संसार के सबसे बड़े मंदिर कम्बोडिया के अंगकोरवाट मंदिर में ब्रह्मा की प्रतिमाएं हैं। इंडोनेशिया का प्रम्बानन मंदिर ब्रह्मा के सबसे प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है। बैंकाक (थाईलैंड) के इरावन तीर्थ में ब्रह्मा का भव्य मंदिर है। थाईलैंड में ब्रह्मा को "फ्रा-फ्रॉम" के नाम से बुलाया जाता है। म्यानमार जिसका पुराना नाम बर्मा था वो ब्रह्मा के नाम पर ही रखा गया था जिसका प्राचीन नाम ब्रह्मदेश था। यही नहीं चीन के लोक-कथाओं में भी ब्रह्मा का वर्णन आता है जहाँ उन्हें "सिमीएनसेन" कहा जाता है और उनके कई मंदिर हैं।