शिव से जुडी इस कथा के बारे में जानिये
भगवान् शिव के बारे में अनेकों कथाएं प्रचलित है इन में से एक कथा उनके विवाह के बारे में भी है| बात उस समय की है जब ब्रम्हा जी के मानस पुत्र दक्ष प्रजापति और स्वयंभू मनु की तीसरी पुत्री प्रसूति के घर 16 कन्याओं ने जन्म लिया था| इन 16 कन्याओं में से 13 का विवाह धर्म के साथ हुआ था जिनके नाम श्रद्धा, मैत्री, दया, शान्ति, तुष्टि, पुष्टि, क्रिया, उन्नति, बुद्धि, मेधा, तितिक्षा, द्वी और मूर्ति थे|अग्नि देव के साथ स्वाहा नामक पुत्री का विवाह हुआ था और पितृगण ने सुधा नामक पुत्री का वरण पत्नी के रूप में किया था|
प्रजापति दक्ष की पुत्री सती बचपन से ही बड़े ही धार्मिक स्वभाव की थी और धार्मिक कार्यों में रूचि होने की वजह से सती ने मन ही मन भगवान् शिव को अपने पति के रूप में स्वीकार कर लिया था| और भगवान् शिव को पति के रूप में पाने के लिए घोर तपस्या भी की थी| सती की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान् शिव ने उनसे मन्वानक्षित वर मांगने को कहा ये सुन कर देवी सती ने भगवान् शिव से स्वयं को पत्नी के रूप में स्वीकार करने को कहा|
भगवान् शिव ने पहले तो मन किया परन्तु देवी सती के बार बार अनुरोध करने पर उनका आग्रह स्वीकार कर लिया| परन्तु उन्होंने साथ ही साथ ये भी स्पष्ट कर दिया की मैं शमशान निवासी हूँ और योगियों की तरह रहता हूँ अतः तुम्हे सारे सांसारिक सुख और वैभव का त्याग कर मेरे साथ कैलाश पर सात्विक तरीके से रहना होगा| अगर तुम्हे ये स्वीकार हो तो मुझे कोई आपत्ति नहीं है वैसे भी तुम प्रजापति दक्ष की पुत्री हो तुमने अपना सारा जीवन ऐश्वर्य और वैभव में राजमहलों में ही बिताया है अतः तुम पुनः विचार कर लो| इस पर देवी सती ने कहा की जब मैंने आपको अपना पति मान लिया है तो आप जहा भी रखेंगे और जैसे भी रखेंगे मैं ख़ुशी ख़ुशी आपके साथ रह लूंगी चाहे वो शमशान हो या कैलाश पर्वत अब तो वही मेरा घर है| वैसे भी विवाह के उपरान्त एक स्त्री के लिए उसके पति का घर ही अपना होता है न की पिता का|