कंदरिया महादेव मंदिर- खजुराहो का विश्व धरोहर स्थल
खजुराहो स्थित कंदरिया महादेव मंदिर उत्तर भारतीय मंदिर स्थापत्य शैली का एक उत्कृष्ट प्रतीक है। १०-११वीं सदी में निर्मित यह मणि चंदेल वंश के राजाओं की देन है। चंदेल साम्राज्य को जेजाकभुक्ति कहा जाता था तथा खजुराहो अथवा खर्जुरवाहक उसकी राजधानी थी।
१०- ११वीं सदी में सम्पूर्ण भारत ने उस काल में प्रचलित भारतीय मंदिर स्थापत्य की सभी शैलियों के कुछ सर्वोत्कृष्ट रचनाओं के दर्शन किये हैं। उनके कुछ सर्वोत्तम उदहारण हैं, तंजावुर का बृहदीश्वर मंदिर, कर्नाटक के होयसल मंदिर, मोढेरा का सूर्य मंदिर, भुवनेश्वर का लिंगराज मंदिर आदि।
कंदरिया महादेव मंदिर का इतिहास
मंदिर के मंडप पर लगे शिलालेखों के अनुसार इस मंदिर का निर्माण राजा विद्याधर ने करवाया था। उन्होंने ११वीं सदी के उत्तरार्ध में इस क्षेत्र में अपना अधिपत्य स्थापित किया था। उनकी सर्वोत्तम उपलब्धियों में से एक है, महमूद गजनवी के प्रथम आक्रमण को सफलता पूर्वक कुचल देना। महमूद गजनवी कुछ वर्षों उपरांत पुनः लौटा था। उसका यह आक्रमण भी अनिर्णायक सिद्ध हुआ था। कुछ सूत्रों के अनुसार इस मंदिर का निर्माण महमूद गजनवी की पराजय का उत्सव मनाने के लिए ही किया गया था।
इस मंदिर का निर्माण सन् १०२५-५०ई. के मध्य हुआ था।
संभव है कि इस मंदिर की संकल्पना विश्वनाथ द्वारा की गयी थी जो विद्याधर के पूर्वज थे। यह चंदेल वंश के कुलदेव भगवान शिव का मंदिर है। जिस कालावधि में इस मंदिर का निर्माण हुआ था, वह कालावधि निसंदेह भारतीय मंदिर स्थापत्य कला शैली का स्वर्णिम युग था।
सन् १९८६ से खजुराहो के इस कंदरिया महादेव मंदिर को यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल का मान प्राप्त हुआ है।
कंदरिया शब्द की व्युत्पत्ति
कंदरिया शब्द की व्युत्पत्ति कन्दरा शब्द से हुई है। कन्दरा का अर्थ है, पर्वत अथवा धरती पर स्थित मानव निर्मित अथवा प्राकृतिक गुफा। अतः कंदरिया महादेव का सरल अर्थ है, कन्दराओं के महादेव।
ऐसा कहा जाता है कि मातंगेश्वर मंदिर एवं विश्वनाथ मंदिर के संग कंदरिया महादेव मंदिर खजुराहो के तीन प्रमुख शिव मंदिरों के त्रयी की रचना करता है। इनके अतिरक्त तीन देवी मंदिर भी हैं जो चौसठ योगिनियाँ, छत्री देवी एवं जगदम्बी के लिए हैं। ये तीन मंदिर भी एक अन्य प्रतिच्छेदन त्रिभुज की रचना करते हैं। ये छः मंदिर एकत्र रूप में एक यंत्र की रचना करते हैं। यह यंत्र एक पावन आकृति है जिसका विस्तृत विवरण यहाँ इस शोध पत्र में किया गया है।
कंदरिया महादेव मंदिर का दर्शन
शीत ऋतु की वह शीतल प्रभात मुझे अब भी स्मरण है। मैं मंदिर के समक्ष खड़ी मंदिर को निहार रही थी। सूर्य की किरणें मंदिर की परिरेखा से अठखेलियाँ खेल रहीं थी। उनके प्रातःकालीन वार्तालापों को हम लगभग सुन व समझ पा रहे थे।
सूर्य की प्रथम किरणों के प्रकाश में मंदिर चमचमा रहा था। ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो यह मंदिर उत्कीर्णित शिलाखंडों द्वारा नहीं, अपितु चन्दन के उत्कीर्णित काष्ठों द्वारा निर्मित हो। उनकी सौम्य गुलाबी रंग की विविध छटाएं सूर्य की किरणों के संग लुका-छिपी का खेल खेल रहीं थी।
मंदिर के गठन में मुझे एक लय का अनुभव हो रहा था। वह लय जगती, मंडप एवं शिखर के सही अनुपात में निहित था अथवा कदाचित स्थापत्य विदों ने महादेव के कैलाश पर्वत की यहाँ पुनरावृत्ति करने के लिए सर्वोत्तम सूत्रों का प्रयोग किया है, मुझे ज्ञात नहीं। मुझे केवल इतना स्मरण है कि मेरे नेत्र अश्रु जल से भर गए थे। मुझे अपने एवं मंदिर के मध्य एक अद्भुत संस्पंदन का अनुभव हो रहा था। इस अनुभव ने मेरे एवं मंदिर के मध्य सम्बन्ध को एक नवीन परिभाषा प्रदान कर दी थी।
मैंने इस अद्वितीय अद्भुत अनुभव का उल्लेख अपनी पुस्तक, ‘Lotus In The stone – Sacred Journeys in Eternal India’ में भी किया है।
गत संध्या के समय मैंने एक दृश्य एवं श्रव्य प्रदर्शन में इस मंदिर को जीवंत होते देखा था। मैंने इसकी बाह्य सुन्दरता को नेत्र भर कर निहारा था। किन्तु प्रातः काल मंदिर एवं मेरे मध्य जिस लय की रचना हुई, उसने मेरे अंतर्मन को भेध दिया था। उसने मुझे अंतर्बाह्य मोह लिया था।
मंदिर की स्थापत्य कला
खजुराहो के अन्य मंदिरों के अनुरूप इस मंदिर की संरचना भी बलुआ शिलाओं द्वारा की गयी है। गुलाबी एवं पीतवर्ण की भिन्न भिन्न छटाओं में रंगी बलुआ शिलाएं केन नदी के तट पर स्थित पन्ना की खदानों से लायी गयी हैं।
कंदरिया मंदिर खजुराहो मंदिर संकुल के पश्चिमी भाग पर स्थित मंदिरों में से एक है। यह मंदिर एक उच्च जगती पर स्वतन्त्र रूप से स्थापित है। इसके चारों ओर किसी भी प्रकार का प्राकार उपस्थित नहीं है। इसी कारण मंदिर की परिक्रमा करते हुए आप चारों ओर से इसकी सुन्दरता का अवलोकन कर सकते हैं। दो अन्य मंदिर भी इसी जगती पर स्थापित हैं। उनमें से एक लघु मंदिर भगवान शिव का है तथा एक मंदिर देवी जगदम्बी का है।
खजुराहो का विशालतम मंदिर
कंदरिया महादेव मंदिर इस संकुल का विशालतम मंदिर होते हुए भी एक सघन व सुगठित मंदिर है। पूर्व-पश्चिम अक्षांश पर स्थित इस मंदिर की लम्बाई ३०.५ मीटर व चौड़ाई २० मीटर है। ३१ मीटर ऊँचा मंदिर ४ मीटर ऊँचे जगती पर स्थापित है। इस मंदिर में एक ठेठ हिन्दू मंदिर के सभी तत्व उपस्थित हैं।
एक अर्ध मंडप के मध्य से आप मंदिर में प्रवेश करते हैं। यह प्रवेश द्वार आपको मंदिर के मुख्य मंडप तक ले जाता है। मंडप एवं गर्भगृह के मध्य सम्बन्ध स्थापित करता एक अंतराल है। गर्भगृह के चारों ओर परिक्रमा पथ है।
शिखर का लय
मंदिर का संग्रथित शिखर समूह एक ऐसा तत्व है जो इस मंदिर को एक लय प्रदान करता है। मंदिर का संयुक्त शिखर ८४ स्वतन्त्र शिखरों द्वारा संरचित है। प्रत्येक शिखर दूसरे की प्रतिकृति है। जैसे जैसे ऊपर जाते हैं, समरूप शिखरों के आकार में संवृद्धि होती जाती है। ऐसा प्रतीत होता है मानो शिखरों का उंचा ढेर हो। एक प्रकार से यह कैलाश पर्वत की प्रतिकृति प्रतीत होता है जो भगवान शिव का प्रिय निवास स्थान है। इस संरचना का चुनाव कदाचित इसीलिए किया गया हो ताकि भगवान शिव को यह स्वयं का भवन प्रतीत हो।
मंडप को महामंडप कहा जाता है क्योंकि इसमें अनेक गलियारे हैं जिनके झरोखे बाहर की ओर खुलते हैं। मंदिर के दोनों पार्श्वभागों पर एवं पृष्ठभाग पर प्रलंबन हैं जिन पर ये झरोखे निर्मित हैं। इन झरोखों के आतंरिक भागों पर बैठकों की सुविधाएं प्रदान की गयी हैं। ये बैठकें इतनी विशाल हैं कि हम असमंजस में पड़ जाते हैं कि ये ध्यान साधना के लिए हैं अथवा किसी अनुष्ठान के लिए हैं।
बाह्य भित्तियाँ
बाह्य भित्तियों पर अप्रतिम आकृतियाँ उत्कीर्णित हैं जिनमें प्रमुख हैं, गजाकृतियाँ, अश्वाकृतियाँ, संगीतज्ञ, नर्तक, वाद्य यंत्र, दैनन्दिनी जीवन के विभिन्न आयाम जिनमें प्रेमशास्त्र भी सम्मिलित है।
झरोखों के स्तर पर स्थित तीन पट्टिकाओं पर अधिक विस्तृत एवं सुस्पष्ट शिल्प हैं। इन पट्टिकाओं पर देवी-देवताओं के शिल्प हैं। एक शिव मंदिर होने के नाते उन शिल्पों में प्रमुख रूप से शिव की प्रतिमाएं हैं। कहीं कहीं वे अपनी शक्ति के संग भी विराजमान हैं। उन शिल्पों में सप्तमातृकाओं की भी प्रतिमाएं हैं। अन्य शिल्प हैं, सुर सुंदरियाँ, प्रेमशास्त्र संबंधी शिल्प जो विशेषतः गर्भगृह एवं मंडप के संगम पर प्रदर्शित हैं, नाग एवं व्याल आकृतियाँ आदि।
मंदिर की बाह्य भित्तियों पर रचित स्त्रियों के शिल्प सभी मापदंडों में सर्वोत्तम हैं। उनके शरीर के विभिन्न अंगों को सही अनुपात में उकेरा गया है। उनके शरीर के उभारों को विभिन्न मुद्राओं की सहायता से विशिष्टता प्रदान की गयी है। जैसे खड़े होने की त्रिभंगी मुद्रा जिसमें उनकी शारीरिक मुद्रा तीन स्थानों पर वक्र होती है। उनके आभूषणों एवं उनके उत्तम महीन वस्त्रों की परतों के शिल्प आपको मंत्रमुग्ध कर देंगे।
मंदिर के भीतर प्रवेश
मंदिर के प्रवेश द्वार पर एक आकर्षक मकर तोरण है जिसके छोरों पर मगर के मुख की आकृतियाँ हैं। यह तोरण एकल शिलाखंड को उत्कीर्णित कर निर्मित किया गया है। कंदरिया महादेव मंदिर खजुराहो का इकलौता मंदिर है जिसमें दो मकर तोरण हैं।
मंदिर की छत शिलाखंड द्वारा निर्मित है जिस पर संकेन्द्रीय वृत्त के आकार में प्रचुर मात्रा में उत्कीर्णन किया गया है। अद्भुत, असाधारण, विलक्षण, अद्वितीय, आश्चर्य चकित कर देने वाले, सूक्षमता एवं सौंदर्य का अद्भुत सम्मिश्रण! मैं इस स्तर तक सम्मोहित हो गयी थी कि उनके लिए जितने विशेषणों का प्रयोग करूँ, मेरे लिए वे कम ही होंगे।
स्तंभों पर पुष्प की बेलें उत्कीर्णित हैं।
प्रसिद्ध इतिहासकार एवं भारतीय मंदिर वास्तुकला के विशेषज्ञ जॉर्ज मिचेल के अनुसार मंदिर की बाह्य भित्तियों पर ६४६ प्रतिमाएं उत्कीर्णित हैं। वहीं आतंरिक भित्तियों पर २२६ प्रतिमाएं उत्कीर्णित हैं।
क्या कंदरिया महादेव मंदिर को अनुष्ठानिक मंदिर बनाया जा सकता है?
जैसा कि नाम से विदित होता है, कंदरिया मंदिर एक शिव मंदिर है। वर्तमान में यह अनुष्ठानिक मंदिर नहीं है, अर्थात् यहाँ किसी भी प्रकार की पूजा-अर्चना अथवा अनुष्ठान का आयोजन नहीं किया जाता है। मेरी हार्दिक अभिलाषा है कि इस मंदिर में भगवान की प्राण प्रतिष्ठा की जाए तथा यह मंदिर पुनः एक जीवंत अनुष्ठानिक शिव मंदिर बने।
यह मंदिर इतना मनमोहक व अप्रतिम है कि इसकी अविस्मरणीय सुन्दरता पर अनेक साहित्य लिखे जा सकते हैं। इसके चित्र एवं चलचित्र हमें मंत्रमुग्ध कर देते हैं। इसके विलक्षण सौंदर्य पर यदि दिव्य उर्जा का तिलक लग जाए तो इसे आध्यात्मिक रूप से भी जीवंत किया जा सकता है। इससे सभी प्रकार के दर्शनार्थियों को लाभ प्राप्त हो सकेगा।
जैसा कि स्थापति पोन्नी सेल्वनाथ ने बताया, हमारे शास्त्रों में भी परित्यक्त मंदिरों के जीर्णोद्धार के विषय में विस्तृत रूप से उल्लेख किया गया है।
यह मंदिर हमारे लिए ना केवल वास्तुकला के दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, अपितु खजुराहो के पवित्र भौगोलिक महत्ता के संरक्षण के लिए भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह भारतीय मंदिर वास्तुशैली व स्थापत्यकला के स्वर्णिम युग से प्राप्त एक विलक्षण मणि है। इसे जीवंत रखना ना केवल हमारा उत्तरदायित्व है, अपितु हमारे लिए आवश्यक भी है।
यात्रा सुझाव
यह मंदिर दर्शनार्थियों के लिए सूर्योदय से सूर्यास्त तक सप्ताह के सातों दिवस खुला रहता है।
खजुराहो में स्वयं का विमानतल है। यह रेल मार्ग द्वारा भी देश के अन्य नगरों से सुगम रूप से सम्बद्ध है। झांसी से खजुराहो तक उत्तम सड़क मार्ग उपलब्ध है।
कंदरिया महादेव मंदिर खजुराहो के मंदिरों के पश्चिमी समूह का एक भाग है। खजुराहो पहुँचते ही, लगभग सभी मार्ग आपको इस मंदिर तक ले जायेंगे।
खजुराहो में सभी स्तर के अनेक विश्रामगृह उपलब्ध हैं। हम मध्य प्रदेश पर्यटन विभाग द्वारा संचालित विश्रामगृह में ठहरे थे जो इन मंदिरों के अत्यंत निकट स्थित है। यहाँ से आप पदभ्रमण करते हुए सुगमता से मंदिर तक जा सकते हैं। प्रातः शीघ्र दर्शन करना उत्तम होगा।
यह एक लोकप्रिय पर्यटन स्थल है। यहाँ देशी पर्यटकों के साथ साथ बड़ी संख्या में विदेशी पर्यटक भी आते हैं। अतः खजुराहो की गलियों में विविध प्रकार के स्वादिष्ट देशी एवं विदेशी व्यंजन उपलब्ध होते हैं।
खजुराहो के मंदिर समूह का दर्शन करने के लिए १-२ दिवसों का समय पर्याप्त है। मेरा सुझाव है कि इस मंदिर के दर्शन के लिए कम से कम एक घंटे का समय अवश्य रखें।
यह यूनेस्को द्वारा घोषित एक विश्व धरोहर स्थल है। यहाँ पर्यटन परिदर्शक या गाइड तथा श्रव्य परिदर्शन की सुविधाएं आसानी से उपलब्ध हैं। मेरा सुझाव है कि आप भारतीय सर्वेक्षण विभाग द्वारा अनुमोदित परिदर्शकों की ही सेवायें लें। आपको जिस गति से भ्रमण करना हो, उसकी सूचना देते हुए सुगमता से मंदिरों का अवलोकन करें।
अधिकाँश मंदिरों में छायाचित्रीकरण निषिद्ध नहीं है।
संध्या के समय दृश्य एवं श्रव्य प्रदर्शन किया जाता है जिसे देखना ना भूलें।
खजुराहो भ्रमण के साथ आप पन्ना राष्ट्रीय उद्यान, ओरछा एवं झांसी के दर्शनीय स्थलों का भ्रमण भी नियोजित कर सकते हैं।