ईशान कोण को खाली रखना वैदिक भी है और वैज्ञानिक भी
हमारे ऋषि मुनि महान वैज्ञानिक थे. उनका वैज्ञानिक ज्ञान हमारे वैज्ञानिक ज्ञान की तुलना में ब्रह्मांडीय अनुपात रखता था. उन्होंने संभ्रागन सूत्रधार, मायामतम, स्थापत्य वेद, मनसा आदि में जो कुछ कहा है वह सत्य है. आवश्यकता केवल उस सत्य को आज के परिप्रेक्ष्य में ढालने की है.
वैदिक मान्यताएं -
वास्तु शास्त्र के अनुसार किसी भी भवन में उत्तर-पूर्व में खुली जगह होनी चाहिए. शायद यही कारण रहा हो कि हमें बताया गया कि उत्तर-पूर्व में प्रवेश द्वार सर्वोत्तम होता है. प्रवेश द्वार उत्तर में भी अच्छा माना जाता है और पूर्व में भी. वैदिक वास्तु के अनुसार उत्तर की दिशा को कुबेर देवता नियंत्रित करते हैं और पूर्व की दिशा को सूर्य देवता.
वैदिक वास्तु में यह भी बताया गया है कि उत्तर और पूर्व के बीच की दिशा जिसे उत्तर-पूर्व दिशा कहते हैं, अत्यंत लाभकारी है. इस दिशा का वास्तु नाम ईशान कोण है. ईशान कोण का क्षेत्र 45 डिग्री का है. इस दिशा में उत्तर दिशा के गुण भी हैं और पूर्व दिशा के गुण भी. इस दिशा को नियंत्रित करने वाले शिव भगवान है. दरअसल ईशान शिव के नाम का पर्यायवाची है. अतः ईशान कोण को पवित्र माना गया है और शायद इसी कारण हमें बताया गया कि मंदिर ईशान कोण में होना चाहिए और ईशान कोण को खुला भी रखना चाहिए. ईशान कोण को खुला रखने के लिए पुराने समय में प्रवेश द्वार की स्थापना बताई गई.