हिन्दी पंचांग कैलेंडर
वट सावित्री

पूर्णिमानता कैलेंडर के अनुसार वट सावित्री व्रत ज्येष्ठ माह की अमावस्या को मनाया जाता है. पूर्णिमानता कैलेंडर को उत्तरी भारत के प्रदेशों जैसे उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार, पंजाब व हरियाणा आदि में फॉलो किया जाता है, इसलिए यह त्यौहार मुख्य रूप से इन जगहों पर ज्येष्ठ माह की अमावस्या को मनाया जाता है. शादीशुदा महिलाएं अपने पति की भलाई और उनकी लम्बी उम्र के लिए इस व्रत को रखती हैं..
वट पूर्णिमा व्रत से जुड़ी कथा
अश्वपति नाम का सच्चा, ईमानदार राजा हुआ करता था. उसके जीवन में सभी तरह का ऐशोआराम सुख शांति थी. बस एक ही कष्ट था, उसका कोई बच्चा नहीं था. वह एक बच्चा चाहता था, जिसके लिए उसे सबने कहा कि वो देवी सावित्री की आराधना करे, वो उसकी मनोकामना पूरी करेंगी. बच्चे की चाह में वह पुरे 18 वर्ष तक कठिन तपस्या करता रहा. उसके कठिन ताप को देख देवी सावित्री खुद उसके पास आई, और उसे एक बेटी का वरदान दिया, जिसका नाम सावित्री रखा गया. जब ये लड़की बड़ी हुई और युवावस्था में पहुंची तो खुद अपने लिए अच्छे जीवनसाथी तलाशने लगी. जिसके बाद उसे सत्यभामा मिले. लेकिन सत्यभामा की कुंडली के अनुसार उसका जीवन अधिक नहीं था, उसकी 1 साल में म्रत्यु लिखी थी.
सावित्री अपने पति सत्यभामा के साथ एक बार बरगद पेड़ के नीचे बैठी थी. सावित्री की गोद में सर रखकर सत्यभामा लेटे हुए थे, तभी उनके प्राण लेने के लिए यमलोक के राजा यमराज अपने दूत को भेजते है. लेकिन सावित्री अपने प्रिय पति के प्राण देने से इंकार कर देती है. यमराज कई लोगो को भेजते है, लेकिन सावित्री किसी को भी अपने पति के प्राण नहीं देती है. तब खुद यमराज उसके पास जाते है, और सत्यभामा के प्राण मांगते है.
सावित्री के मना करने पर वे उसे इसके बदले में वरदान मांगने को कहते है. सावित्री अपने सास-ससुर की सुख शांति मांगती है, जो यमराज उसे दे देते है. लेकिन इसके बाद भी सावित्री अपने पति को नहीं छोडती, और साथ में जाने को बोलती है| जिसके बाद अपने माता पिता की सुख समर्धि मांगती है. यमराज वो भी मान जाते है, लेकिन सावित्री फिर भी उनके पीछे पीछे उनके आवास में जाने लगती है. तब यमराज आखरी इच्छा उससे पूछते है, तब वो उनसे एक बेटा मांगती है. यमराज ये भी मान जाते है. लेकिन सावित्री इस वरदान के द्वारा यमराज से चालाकी करती है. वो बोलती है, बिना पति के उसे बेटा कैसे मिल सकता है. यमराज कुछ नहीं बोल पाते, लेकिन सावित्री के सच्चे प्यार को वो समझ जाते है. यमराज सावित्री के प्रयास को देख खुश होते है, और सत्यभामा की आत्मा उसके शरीर में वापस भेज देते है. इसके साथ ही दुनिया इन्हें सती सावित्री के नाम ने जानने लगती है. और यहाँ से वट सावित्री का त्यौहार मनाया जाने लगा.