15 अप्रैल 2021 , चैत्र शुक्ल 3 गणगौर तीज |
हिन्दू पंचांग के अनुसार गणगौर का यह व्रत चैत्र शुक्ल तृतीया को किया जाता है। होली के दूसरे दिन (चैत्र कृष्ण प्रतिपदा) से जो नवविवाहिताएं प्रतिदिन गणगौर पूजती हैं,
वे चैत्र शुक्ल द्वितीया के दिन किसी नदी, तालाब या सरोवर पर जाकर अपनी पूजी हुई गणगौरों को पानी पिलाती हैं और दूसरे दिन सायंकाल के समय उनका विसर्जन कर देती हैं।
यह व्रत विवाहिता लड़कियों के लिए पति का अनुराग उत्पन्न कराने वाला और कुमारियों को उत्तम पति देने वाला है। इससे सुहागिनों का सुहाग अखंड रहता है।
![]() इस दिन भगवान शिव ने पार्वतीजी को तथा पार्वतीजी ने समस्त स्त्री समाज को सौभाग्य का वरदान दिया था। सुहागिनें व्रत धारण से पूर्व ही रेणुका की गौरी की स्थापना करती है एवं उनका पूजन किया जाता है। पश्चात गौरीजी की कथा कही जाती है। कथा के बाद गौरीजी पर चढ़ाए हुए सिंदूर से स्त्रियां अपनी मांग भरती हैं। इसके पश्चात केवल एक बार भोजन करके व्रत का पारण किया जाता है। गणगौर का प्रसाद पुरुषों के लिए वर्जित है। गणगौर [ गौरी पूजा ] सोभाग्यवती स्त्रियों और कन्याओ का प्रमुख त्यौहार हैं | कन्याये पुरे सौलह दिन गणगौर पूजन कर माँ पार्वती को प्रसन्न करती हैं | जिन कन्याओं का विवाह होता हैं उन्हें भी प्रथम वर्ष सौलह दिन गणगौर पूजन अत्यंत आवश्यक माना गया हैं।अखंड सौभाग्य, उत्तम गुणवान पति एवं एश्वर्य तथा भगवान शिव और माँ पार्वती के आशीर्वाद प्राप्ति के लिए ईश्वर – गणगौर की बड़े उत्साह व उल्लास एवं समारोह के रूप में मनाया जाने वाला त्यौहार हैं। अविवाहित कन्याएं भी मनोवांछित वर पाने के लिये गणगौर पूजा करती हैं। हालांकि गणगौर का पर्व चैत्र मास की कृष्ण तृतीया से ही आरंभ हो जाता है लेकिन इस पर्व की मुख्य पूजा चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को ही की जाती है। गणगौर व्रत व पूजा विधि - इस पर्व के ईष्ट महादेव व पार्वती हैं। जो पूजा व उपवास करने पर सौभाग्य का वरदान देते हैं। सुहागिनें इस दिन दोपहर तक व्रत रखती हैं व कथा सुनती हैं, नाचते गाते खुशी से पूजा-पाठ कर इस पर्व को मनाती हैं।
गणगौर के पावन पर्व पर आप सबको माता पार्वती व महादेव की कृपा मिले। गणगौर की पौराणिक कथा - एक बार की बात है कि भगवान शिव शंकर और माता पार्वती भ्रमण के लिये निकल पड़े, उनके साथ में नारद मुनि भी थे। चलते-चलते एक गांव में पंहुच गये उनके आने की खबर पाकर सभी उनकी आवभगत की तैयारियों में जुट गये। कुलीन घरों से स्वादिष्ट भोजन पकने की खुशबू गांव से आने लगी। लेकिन कुलीन स्त्रियां स्वादिष्ट भोजन लेकर पंहुचती उससे पहले ही गरीब परिवारों की महिलाएं अपने श्रद्धा सुमन लेकर अर्पित करने पंहुच गयी। माता पार्वती ने उनकी श्रद्धा व भक्ति को देखते हुए सुहाग रस उन पर छिड़क दिया। जब उच्च घरों स्त्रियां तरह-तरह के मिष्ठान, पकवान लेकर हाज़िर हुई तो माता के पास उन्हें देने के लिये कुछ नहीं बचा तब भगवान शंकर ने पार्वती जी कहा, अपना सारा आशीर्वाद तो उन गरीब स्त्रियों को दे दिया अब इन्हें आप क्या देंगी? माता ने कहा इनमें से जो भी सच्ची श्रद्धा लेकर यहां आयी है उस पर ही इस विशेष सुहागरस के छींटे पड़ेंगे और वह सौभाग्यशालिनी होगी। तब माता पार्वती ने अपने रक्त के छींटे बिखेरे जो उचित पात्रों पर पड़े और वे धन्य हो गई। लोभ-लालच और अपने ऐश्वर्य का प्रदर्शन करने पंहुची महिलाओं को निराश लौटना पड़ा। मान्यता है कि यह दिन चैत्र मास की शुक्ल तृतीया का दिन था तब से लेकर आज तक स्त्रियां इस दिन गण यानि की भगवान शिव और गौर यानि की माता पार्वती की पूजा करती हैं। |