05 अप्रैल 2021 , चैत्र कृष्ण 8/9 शीतला अष्टमी व्रत |
चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को बसौड़ा मनाया जाता है। इसे बासड़े और शीतला अष्टमी के नाम से भी जाना जाता है। बसोड़ा मुख्य रूप से राजस्थान में मनाया जाता है। ![]() इस दिन माता शीतला की पूजा की जाती है। बसौड़ा से एक दिन पहले खाना बनाया जाता है। जिसमें कच्चा और पक्का दोनों प्रकार का भोजन होता है। इसके बाद बसौड़ा के दिन जहां पर होलिका दहन किया गया हो उस जगह जाकर माता शीतला की पूजा की जाती है। माता शीतला को रोगों की देवी माना जाता है। इस दिन मां अपने बच्चों के लिए माता शीतला की पूजा करती हैं। माना जाता है कि माता शीतला की पूजा करने से बच्चों को किसी भी प्रकार का कोई रोग नहीं होता। माता शीतला का पूजन बासी भोजन से किया जाता है। शीतला माता को शीतलता की देवी कहा जाता है। इसलिए माता शीतला का पूजन ठंडे खाने के साथ किया जाता है। राजस्थान में तो बसौड़ा पूजन के बाद तीन दिनों तक बासी भोजन करने का ही विधान भी है। बसौड़ा की पूजा विधि -
बसौड़ा की कथा - बसौड़ा की कथा के अनुसार एक बार एक बुढ़िया और उसकी दो बहुओं ने बसोड़े का व्रत रखा। जिसमें उन्होंने माता शीतला की पूजा करके उन्हें बासी चावल चढ़ाए और खाए। लेकिन उन्होंने बसोड़े के दिन ताजा खाना बना लिया था। उन दोनों बहुओं को हाल ही में संतान हुई थी। जिसक वजह से उन्हें डर था कि बासा भोजन उन्हें नुकसान करेगा। जब उन दोनों की सास को इसके बारे में पता तो चला तो वह बहुत ही ज्यादा गुस्सा हुई। जिसके थोड़ी देर बाद ही उन दोनों की संतान मृत्यु को प्राप्त हो गई। सास को जब इस बारे में पता चला तो उसने अपनी बहुओं को घर से निकाल दिया जिसके बाद वह दोनों घर से निकलकर चल दी रास्ते में वह आराम करने के लिए रूकीं जहां उन्हें ओरी और शीतला मिली वे दोनों अपनी जुओं से बहुत परेशान थीं। जिसके बाद उन दोनों को ओरी और शीतला की यह दशा देखकर दया आ गई और दोनों ने मिलकर उन दोनों का सिर साफ कर दिया। इसके बाद दोनों ने आशीर्वाद दिया कि जल्द ही तुम दोनों की कोख हरी हो जाए। जिसे सुनकर वह दोनों रोने लगी। दोनों ने अपने- अपने बच्चों के शव दिखाए। यह देखकर शीतला ने कहा कि तुमने बसौड़ा के दिन ताजा भोजन बनाया था। इसी कारण से यह सब हुआ है। जिसके बाद दोनों ने क्षमा याचना की और उनके बच्चे जिंदा हो गए। |