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06 जनवरी 2021 , माघ कृष्ण 8
रुक्मिणी अष्टमी
पौष मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को रुक्मिणी अष्टमी मनाई जाती है. ऐसी मान्यता है कि इस दिन देवी रुक्मिणी का जन्म हुआ था, इस कारण इस अष्टमी को रुक्मिणी अष्टमी कहते हैं. कहा जाता है कि इस दिन श्री कृष्ण के साथ देवी रुक्मिणी की पूजा विशेष रूप से की जाती है. ऐसा करने से धन-धान्य की प्राप्ति होती है और घर में किसी चीज की कमी नहीं रहती.



रुक्मिणी अष्टमी का महत्व -
धार्मिक ग्रंथों के मुताबिक, द्वापर युग में पौष मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि पर भगवान श्रीकृष्ण की पत्नी देवी रुक्मिणी का जन्म हुआ था. ग्रंथों में रुक्मिणी को देवी लक्ष्मी का अवतार बताया गया है. मान्यता है कि इस दिन सुबह स्नान आदि करने के बाद व्रत का संकल्प लिया जाता है. ऐसे करने वालों पर देवी लक्ष्मी की विशेष कृपा रहती है.

रुक्मिणी अष्टमी पर ऐसे करें पूजा -
  • रुक्मिणी अष्टमी के दिन व्रत एवं पूजा करने के इच्छुक जातकों को चाहिए कि वो स्नान करके व्रत का संकल्प लें. इसके बाद भगवान श्रीकृष्ण और देवी रुक्मिणी की प्रतिमा एक साफ स्थान पर स्थापित करें.
  • किसी चौकी आदि पर सुवर्ण निर्मित श्रीकृष्ण रुक्मणी एवं प्रद्युम्न की प्रतिमा स्थापित करें. गन्ध पुष्प अक्षत धूप दीप आदि से विधिवत पूजन करें.
  • इसके बाद कुमकुम से तिलक लगाएं. अबीर, हल्दी, इत्र और फूल आदि से पूजा करें.
  • भगवान श्रीकृष्ण को पीला और देवी रुक्मिणी को लाल वस्त्र अर्पित करें.
  • दक्षिणावर्ती शंख में स्वच्छ जल लेकर दोनों प्रतिमाओं का अभिषेक करें. मन ही मन श्रीकृष्ण के मंत्रों का जाप करते रहें.
  • भगवान श्रीकृष्ण और देवी रुक्मिणी को खीर का भोग लगाएं. उसमें तुलसी दल जरूर डालें.
  • गाय के शुद्ध घी का दीपक जलाएं और कपूर से आरती करें.
  • शाम को फिर एक बार इसी विधि से पूजा करें और फलाहार करें.
  • इस दिन आठ सुवासिनी या सुहागन स्त्रियों को भोजन एवं दक्षिणा देकर आशीष प्राप्त करें.
  • इस दिन रात में जागरण कर श्रीकृष्ण के मंत्रों का जाप करें. अगले दिन ब्राह्मणों को भोजन कराएं और व्रत संपूर्ण करें.