11 दिसम्बर 2020, अगहन कृष्ण 10/11 उत्पन्ना एकादशी व्रत कथा |
मार्गशीर्ष मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को उत्पन्ना एकादशी कहा जाता है। मान्यता है कि इसी दिन भगवान विष्णु के शरीर से एक देवी का जन्म हुआ था जिसने दैत्यराज मुर को मारकर भगवान विष्णु की रक्षा की थी। भगवान विष्णु ने एकादशी को उत्पन्न होने के कारण इसे एकादशी देवी का नाम दिया। ऐसी भी मान्यता है कि इसी तिथि से एकादशी व्रत की शुरुआत हुई थी। आइए जानते हैं उत्पन्ना एकादशी की कथा और व्रत विधि। |
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ये हैं एकादशी व्रत-उपवास के नियम... उत्पन्ना एकादशी व्रत माहात्म्य - ऊपर लिखी विधि के अनुसार जो मनुष्य एकादशी का व्रत करते हैं, उनको शंखोद्धार तीर्थ एवं दर्शन करने से जो पुण्य प्राप्त होता है, वह एकादशी व्रत के पुण्य के सोलहवें भाग के बराबर भी नहीं है। हे अर्जुन! व्यतीपात योग में, संक्रान्ति में तथा सूर्य और चन्द्र ग्रहण में दान देने से और कुरुक्षेत्र में स्नान करने से जो पुण्य प्राप्त होता है, वही पुण्य मनुष्य को एकादशी का व्रत करने से प्राप्त होता है। जो फल वेदपाठी ब्राह्मणों को एक हजार गोदान करने से प्राप्त होता है, उससे दस गुना अधिक पुण्य एकादशी का व्रत करने से मिलता है। दस श्रेष्ठ ब्राह्मणों को भोजन कराने से जो पुण्य प्राप्त होता है, वह एकादशी के पुण्य के दसवें भाग के बराबर होता है। निर्जल व्रत करने का आधा फल एक बार भोजन करने के बराबर होता है, अतः एकादशी का व्रत करने पर ही यज्ञ, दान, तप, आदि मिलते हैं अन्यथा नहीं, अतः एकादशी का व्रत अवश्य ही करना चाहिए। इस एकादशी के व्रत में शंख से जल नहीं पीना चाहिए। मांसाहार तथा अन्य निरामिष आहार का एकादशी के व्रत में सर्वथा निषेध है। एकादशी व्रत का फल हजार यज्ञों से भी ज्यादा है।” |