अहोई अष्टमी |
यह व्रत बड़े व्रतों में से एक हैं इसमें परिवार कल्याण की भावना छिपी होती हैं. इस व्रत को करने से पारिवारिक सुख प्राप्ति होती हैं. इसे संतान वाली स्त्री ही करती हैं. |
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अहोई अष्टमी व्रत कथा : बहुत समय पहले साहूकार था. उसके सात पुत्र एवं एक पुत्री थी. दिवाली महोत्सव समीप था. घर की साफ़ सफाई पूरी करना था, जिसके लिए रंग रोंगन करना था, जिसके लिए साहूकार की पुत्री जंगल गई मिट्टी लाने उसने कुदाली से खोद कर मिट्टी ली. खोदते समय उसकी कुदाली स्याह के बच्चे को लग गई और वो मर गया. तब ही स्याह ने साहूकार के पुरे परिवार को संतान शोक का श्राप दे दिया, जिसके बाद साहूकार के सभी पोत्रो की मृत्यु हो गई, इससे सभी मातायें विचलित थी. साहू कार की सातों बहुयें एवम पुत्री समस्या के निवारण के लिए मंदिर गई और वहाँ अपना दुःख देवी के सामने विलाप करते हुए कहने लगी. तब ही वहाँ एक महात्मा आये, जिन्होंने उन सभी को अहोई अष्टमी का व्रत करने को कहा. इन सभी ने पूरी श्रद्धा के साथ अहोई अष्टमी का व्रत किया, जिससे स्याही का क्रोध शांत हुआ और उसके खुश होते ही उसने अपना श्राप निष्फल कर दिया, इस प्रकार आठों स्त्रियों की संतान जीवित हो गई. |