स्कन्दा षष्ठी |
स्कन्दा षष्ठी यह त्यौहार दक्षिण भारत में खासतौर पर तमिल में मनाया जाता हैं .अधिकांश अन्य हिंदू त्योहारों की तरह स्कंद षष्ठी भी बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतिक हैं. स्कंद जिन्हें हम भगवान मुरूगन , सुब्रमण्य और कार्तिकेय के रूप में जानते हैं. स्कन्द पुराण में स्कन्द षष्टि का उपवास का महत्व मिलता हैं. |
![]() |
स्कन्दा षष्ठी त्यौहार इतिहास स्कन्द पुराण सभी अठारह पुराणों की भांति ही विशाल हैं जिसमे तारकासुर, सुरपद्मा, सिम्हामुखा ने देवताओं को हराया और उन्हें पृथ्वी पर लाकर खड़ा कर दिया. उन राक्षसों ने पृथ्वी पर आतंक मचा रखा था. उन्हें देवताओं और मनुष्यों को प्रताड़ित करने उत्साह मिलता था, उन्होंने सब कुछ नष्ट कर दिया, जो भी देवताओं का था, जो भी उन्हें पूजता था, उन्होंने उन्हें भी नष्ट कर दिया. उन्ही राक्षसों में से एक सुरपद्मा को वरदान प्राप्त था, कि उसे भगवान शिव का पुत्र ही मार सकता हैं. और उस समय देवी सती के अग्नि को प्राप्त हो जाने के कारण भगवान शिव नाराज थे और घोर तप में लीन थे, यही कारण था कि वे सभी राक्षसों को किसी का भय नहीं था. राक्षसों के आतंक से परेशान होकर देवता ब्रह्मा जी के पास गए और इस विपदा के लिये सहायता की मांग की. तब ब्रह्मा जी ने काम देव से कहा, कि तुम्हे भगवान शिव को योग निंद्रा से जगाना होगा. इस कार्य में बहुत संकट था, क्यूंकि भगवान शिव के क्रोध से बच पाना मुश्किल था. लेकिन संकट बहुत बड़ा था, इसलिए काम देव ने इस कार्य को किया. जिसमे वे सफल हुये, लेकिन भगवान शिव का तीसरा नेत्र खुल जाने के कारण, उनकी क्रोधाग्नि से काम देव को भस्म कर दिया. उस समय भगवान शिव का अंश छह भागों में बंट गया, जो कि गंगा नदी में गिरा. देवी गंगा ने उन छह अंशों को जंगल में रखा और उनसे छह पुत्रों का जन्म हुआ, जिन्हें कई वर्षों बाद देवी पार्वती ने एक कर भगवान मुरुगन को बनाया. पुराण के अनुसार भगवान मुरुगन स्वामी के कई रूप हैं, जिनमे एक चेहरा दो हाथ, एक चेहरा चार हाथ,छह चेहरे और बारह हाथ हैं. दूसरी तरह राक्षसों का आतंक बढ़ता जा रहा था. उन्होंने कई देवताओं को बंदी बना लिया था. उनके इसी आतंक के कारण भगवान ने इनके संहार का निर्णय लिया. कई दिनों तक यह युद्ध चलता रहा. और अंतिम दिन भगवान मुरुगन ने सुरपद्मा राक्षस का वध कर दिया, साथ ही संसार का और देवताओं का उद्धार किया. और राक्षसों के आतंक से सभी को मुक्त कराया. यह दिन था स्कंदा षष्टि जिसे बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतिक माना जाता हैं और उत्साह से मनाया जाता हैं आज भी इसे बड़ी श्रद्धा से दक्षिण भारत में मनाया जाता हैं. भगवान मुरुगन को कई नामों से जाना जाता हैं जैसे कार्तिकेय, मुरुगन स्वामी उन्ही में से एक हैं स्कन्द. इसलिए इस दिवस को सक्न्दा षष्ठी के नाम से जाना जाता हैं. |