भानु सूर्य सप्तमी |
भानु सप्तमी को सूर्य सप्तमी, पुत्र सप्तमी, सूर्यरथ सप्तमी, रथ सप्तमी और आरोग्य सप्तमी भी कहा जाता है. इस दिन भगवान सूर्य ने अपना प्रकाश पृथ्वी पर भेजा था, जिसके बाद धरती से अँधेरा हट गया और वो प्रकाशवान हो गई थी. इसलिए इसे सूर्य जयंती के नाम से भी जानते है. |
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भानु सप्तमी एवम अचला भानु सप्तमी महत्व : जब सप्तमी रविवार के दिन आती हैं, उसे भानु सप्तमी कहा जाता हैं. इस दिन भगवान सूर्य देव पहली बार सात घोड़ो के रथ पर सवार हो कर प्रकट हुए थे. रविवार का दिन भगवान सूर्य देव का माना जाता हैं. उस दिन सूर्य देव की उपासना का महत्व होता हैं. इस दिन को व्यवस्वथ्मा सप्तमी एवम सूर्य सप्तमी भी कहा जाता हैं. माघ के महीने में जब भानु सप्तमी होती हैं, उसे अचला भानु सप्तमी कहा जाता हैं. सूर्य देव उर्जा के सबसे बड़े स्त्रोत माने जाते हैं, इनकी पूजा अर्चना से सौभाग्य मिलता हैं. रविवार के दिन सूर्य को अर्ध्य देने का महत्व अधिक होता हैं. मानव जाति के अस्तित्व के लिए सूर्य का बहुत बड़ा योगदान हैं. सूर्य को सभी ग्रहों का राजा माना जाता हैं. यह सभी गृहों के मध्य में स्थित हैं. ब्राह्मण में सूर्य के चारो तरफ ही सभी गृह चक्कर काटते हैं. विभिन्न गृहों में सूर्य की स्थिती में परिवर्तन से दशाओं में भी परिवर्तन आता हैं. ज्योतिष शास्त्र के अनुसार सूर्य का प्रभाव गृहों पर अधिक होता हैं. इस दिन सूर्य की किरणे जब सूर्य यंत्र पर पड़ती हैं. तब महाभिषेक किया जाता हैं. भानु सप्तमी के दिन, लोग सूर्य देव को खुश करने के लिए आदित्य हृदयं और अन्य सूर्य स्त्रोत पढ़ते एवम सुनते हैं, जिसके कारण रोगी मनुष्य स्वस्थ होता हैं एवम स्वस्थ निरोग रहता हैं. सभी सप्तमी में भानु सप्तमी का विशेष स्थान होता हैं. यह विशेषतौर पर दक्षिणी एवम पश्चिमी भारत में मनाई जाती हैं. |