श्री राम चन्द्र जी का चालीसा |
भगवान राम (रामचन्द्र) का अवतार अयोध्या के राजा दशरथ और कौशिल्या के यहां हुआ था। यह राजा दशरथ और कौशिल्या के सबसे बडे पुत्र थे। हिन्दू धर्मानुसार भगवान राम विष्णु के दशावतारों में से सातवें अवतार हैं। राम (रामचन्द्र), प्राचीन भारत में अवतरित, भगवान हैं। राम का जीवनकाल एवं पराक्रम, महर्षि वाल्मीकि द्वारा रचित, संस्कृत महाकाव्य रामायण के रूप में लिखा गया है। उन पर तुलसीदास ने भी भक्ति काव्य श्री रामचरितमानस रचा था। खास तौर पर उत्तर भारत में राम बहुत अधिक पूजनीय हैं। रामचन्द्र हिन्दुओं के आदर्श पुरुष हैं। |
।। दोहा ।। गणपति चरण सरोज गहि। चरणोदक धरि भाल, लिखौं विमल रामावली। सुमिरि अंजनीलाल, राम चरित वर्णन करौं। रामहिं हृदय मनाई, मदन कदन रत राखि सिर। मन कहँ ताप मिटाई।। ।। चौपाई ।। राम रमापति रघुपति जै जै। महा लोकपति जगपति जै जै, राजित जनक दुलारी जै जै। महिनन्दिनी प्रभु प्यारी जै जै, रातिहुं दिवस राम धुन जाहीं। मगन रहत मन तन दुख नाहीं, राम सनेह जासु उर होई। महा भाग्यशाली नर सोई।। राक्षस दल संहारी जै जै। महा पतित तनु तारी जै जै, राम नाम जो निशदिन गावत। मन वांछित फल निश्चय पावत, रामयुधसर जेहिं कर साजत। मन मनोज लखि कोटिहुं लाजत, राखहु लाज हमारी जै जै। महिमा अगम तुम्हारी जै जै।। राजीव नयन मुनिन मन मोहै। मुकुट मनोहर सिर पर सोहै, राजित मृदुल गात शुचि आनन। मकराकृत कुण्डल दुहुँ कानन, रामचन्द्र सर्वोत्तम जै जै। मर्यादा पुरुषोत्तम जै जै, राम नाम गुण अगन अनन्ता। मनन करत शारद श्रुति सन्ता।। राति दिवस ध्यावहु मन रामा। मन रंजन भंजन भव दामा, राज भवन संग में नहीं जैहें। मन के ही मन में रहि जैहें, रामहिं नाम अन्त सुख दैहें। मन गढ़न्त गप काम न ऐहें, राम कहानी रामहिं सुनिहें। महिमा राम तबै मन गुनिहें।। रामहि महँ जो नित चित राखिहें। मधुकर सरिस मधुर रस चाखिहें, राग रंग कहुँ कीर्तन ठानिहें। मम्ता त्यागि एक रस जानिहें, राम कृपा तिन्हीं पर होईहें। मन वांछित फल अभिमत पैहें, राक्षस दमन कियो जो क्षण में। महा बह्नि बनि विचर्यो वन में।। रावणादि हति गति दै दिन्हों। महिरावणहिं सियहित वध कीन्हों, राम बाण सुत सुरसरिधारा। महापातकिहुँ गति दै डारा, राम रमित जग अमित अनन्ता। महिमा कहि न सकहिं श्रुति सन्ता, राम नाम जोई देत भुलाई। महा निशा सोइ लेत बुलाई।। राम बिना उर होत अंधेरा। मन सोही दुख सहत घनेरा, रामहि आदि अनादि कहावत। महाव्रती शंकर गुण गावत, राम नाम लोहि ब्रह्म अपारा। महिकर भार शेष सिर धारा, राखि राम हिय शम्भु सुजाना। महा घोर विष किन्ह्यो पाना।। रामहि महि लखि लेख महेशु। महा पूज्य करि दियो गणेशु, राम रमित रस घटित भक्त्ति घट। मन के भजतहिं खुलत प्रेम पट, राजित राम जिनहिं उर अन्तर। महावीर सम भक्त्त निरन्तर, रामहि लेवत एक सहारा। महासिन्धु कपि कीन्हेसि पारा।। राम नाम रसना रस शोभा। मर्दन काम क्रोध मद लोभा, राम चरित भजि भयो सुज्ञाता। महादेव मुक्त्ति के दाता, रामहि जपत मिटत भव शूला। राममंत्र यह मंगलमूला, राम नाम जपि जो न सुधारा। मन पिशाच सो निपट गंवारा।। राम की महिमा कहँ लग गाऊँ। मति मलिन मन पार न पाऊँ, रामावली उस लिखि चालीसा। मति अनुसार ध्यान गौरीसा, रामहि सुन्दर रचि रस पागा। मठ दुर्वासा निकट प्रयागा, रामभक्त्त यहि जो नित ध्यावहिं। मनवांछित फल निश्चय पावहिं।। ।।दोहा ।। राम नाम नित भजहु मन। रातिहुँ दिन चित लाई, मम्ता मत्सर मलिनता। मनस्ताप मिटि जाई, राम का तिथि बुध रोहिणी। रामावली किया भास, मान सहस्त्र भजु दृग समेत। मगसर सुन्दरदास ।। |