नवग्रह चालीसा |
नवग्रह चालीसा ग्रह पृथ्वी के प्राणियों पर एक 'ब्रह्मांडीय प्रभाव' है। हिन्दू ज्योतिष में नवग्रह इन प्रमुख प्रभावकारियों में से हैं। राशि चक्र में स्थिर सितारों की पृष्ठभूमि के संबंध में सभी नवग्रह की सापेक्ष गतिविधि होती है। इसमें ग्रह भी शामिल हैं और साथ ही साथ आकाश में अवस्थितियां, राहू और केतु भी। |
।। दोहा ।। श्री गणपति गुरुपद कमल, प्रेम सहित सिरनाय। नवग्रह चालीसा कहत, शारद हीत सहाय।। जय जय रवि शषि सोम बुध, जय गुरु भृगु शनिराज। जयति राहु अरु केतु ग्रह, करहु अनुग्रह आज।। ।। चैपाई ।। श्री सूर्य स्तुति :- प्रथमहि रवि कहं नावों माथा, करहु कृपा जनि जानि अनाथा। हे आदित्य दिवाकर भानू, मैं मति मन्द महा अज्ञानू।। अब निज जन कहं हरहु कलेषा, दिनकर द्वाद्वश रुप दिनेशा। नमो भास्कर सूर्य प्रभाकर, अर्क मित्र अघ मोघ क्षमाकर।। श्री चन्द्र स्तुति :- शषि मयंक रजनीपति स्वामी, चन्द्र कलानिधि नमो नमामि। राकापति हिमाषंु राकेषा, प्रणवत जन तन हरहु कलेषा।। सोम इन्दु विधु शान्ति सुधाकर, शीत रष्मि औषधि निषाकर। तुम्ही शोभित सुन्दर भाल महेषा, शरण शरण जन हरहु कलेषा।। श्री मंगल स्तुति :- जय जय मंगल सुखदाता, लोहित भोमादिक विख्याता। अंगारक कुज रुज ऋणहारी, करहु दया यही विनय हमारी।। हे महिसुत छितिसुत सुखराषी, लोहितांग जय जन अघनाषी। अगम अमंगल अब हर लीजै, सकल मनोरथ पूरण कीजै।। श्री बुध स्तुति :- जय शषि नन्दन बुध महाराजा, करहु सकल जन कहं शुभ काजा। दीजै बुद्धिबल सुमति सुजाना, कठिन कष्ट हरि करि कल्याना।। हे तारासुत रोहिणी नन्दन, चन्द्रसुवन दुख द्वन्द्व निकन्दन। पूजहुं आस दास कहुं स्वामी, प्रणत पाल प्रभु नमो नमामी।। श्री बृहस्पति स्तुति :- जयति जयति जय श्री गुरुदेवा, करों तुम्हारी प्रभु सेवा। देवाचार्य तुम देव गुरु ज्ञानी, इन्द्र पुरोहित विद्यादानी।। वाचस्पति बागीष उदारा, जीव बृहस्पति नाम तुम्हारा। विद्या सिन्धु अंगिरा नामा, करहंु सकल विधि पूरण कामा।। श्री शुक्र स्तुति :- शुक्र देव तल जल जाता, दास निरन्तर ध्यान लगाता। हे उषना भार्गव भृगु नन्दन, दैत्य पुरोहित दुष्ट निकन्दन।। भृगुकुल भूषण दूषण हारी, हरहु नेष्ट ग्रह करहु सुखारी। तुही द्विजवर जोषी सिरताजा, नर शरीर के तुम्हीं राजा।। श्री शनि स्तुति :- जय श्री शनिदेव रविनन्दन, जय कृष्णो सौरी जगवन्दन। पिंगल मन्द रौद्र यम नामा, वप्र आदि कोणस्थ ललामा।। वक्र दृष्टि पिप्पल तन साजा, क्षण महं करत रंक क्षण राजा। ललत स्वर्ण पद करत निहाला, हरहु विपत्ति छाया के लाला।। श्री राहु स्तुति :- जय जय राहु गगन प्रविसइया, तुम्ही चन्द्र आदित्य ग्रसइया। रवि शषि अरि स्वर्भानु धारा, षिखी आदि बहु नाम तुम्हारा।। सैहिंकेय तुम निषाचर राजा, अर्धकाय जग राखहु लाजा। यदि ग्रह समय पाय कहिं आवहु, सदा शान्ति और सुख उपजावहु।। श्री केतु स्तुति :- जय श्री केतु कठिन दुखहारी, करहु सुजन हित मंगलकारी। ध्वजयुक्त रुण्ड रुप विकराला, घोर रौद्रतन अघमन काला।। षिखी तारिका ग्रह बलवाना, महा प्रताप न तेज ठिकाना। वाहन मीन शुभकारी, दीजै शान्ति दया उर धारी।। नवग्रह शांति फल :- तीरथराज प्रयाग सुपासा, बसै राम के सुन्दर दासा। ककरा ग्रामहिं पुरे-तिवारी, दुर्वासाश्रम जन दुःख हारी।। नव-ग्रह शान्ति लिख्यो सुख हेतु, जन तन कष्ट उतारण सेतू। जो नित पाठ करै चित लावै, सब सुख भोगि परम पद पावै।। ।। दोहा ।। धन्य नवग्रह देव प्रभु, महिमा अगम अपार। चित नव मंगल मोद गृह, जगत जनन सुखद्वार।। यह चालीसा नवग्रह विरचित सुन्दरदास। पढ़त प्रेम युत बढ़त सुख, सर्वानन्द हुलास।। |