श्री सांई बाबा चालीसा |
शिरडी वाले साईं बाबा को हिन्दू और मुस्लिम दोनों संप्रदाय के लोग पूजते हैं। साईं बाबा ने जीवन भर मानव कल्याण के कार्य किए। भारत के बेहद पूजनीय और प्रसिद्ध संत और फकीरों में साईं बाबा का विशेष स्थान है। कहते हैं जिसका कोई नहीं उसका सांई है। किसी भी धार्मिक दायरे से दूर बाबा हर इंसान के दूख-दर्द को दूर करते हैं। जो भी सांई राम की शरण में जाता है वो उनके दर से खाली नहीं आता। बाबा को मन से याद करो तो वो सारे संकट दूर कर देते हैं।
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॥ चौपाई ॥ पहले साई के चरणों में, अपना शीश नमाऊं मैं। कैसे शिरडी साई आए, सारा हाल सुनाऊं मैं॥ कौन है माता, पिता कौन है, ये न किसी ने भी जाना। कहां जन्म साई ने धारा, प्रश्न पहेली रहा बना॥ कोई कहे अयोध्या के, ये रामचंद्र भगवान हैं। कोई कहता साई बाबा, पवन पुत्र हनुमान हैं॥ कोई कहता मंगल मूर्ति, श्री गजानंद हैं साई। कोई कहता गोकुल मोहन, देवकी नन्दन हैं साई॥ शंकर समझे भक्त कई तो, बाबा को भजते रहते। कोई कह अवतार दत्त का, पूजा साई की करते॥ कुछ भी मानो उनको तुम, पर साई हैं सच्चे भगवान। ब़ड़े दयालु दीनबंधु, कितनों को दिया जीवन दान॥ कई वर्ष पहले की घटना, तुम्हें सुनाऊंगा मैं बात। किसी भाग्यशाली की, शिरडी में आई थी बारात॥ आया साथ उसी के था, बालक एक बहुत सुन्दर। आया, आकर वहीं बस गया, पावन शिरडी किया नगर॥ कई दिनों तक भटकता, भिक्षा माँग उसने दर-दर। और दिखाई ऐसी लीला, जग में जो हो गई अमर॥ जैसे-जैसे अमर उमर ब़ढ़ी, ब़ढ़ती ही वैसे गई शान। घर-घर होने लगा नगर में, साई बाबा का गुणगान॥ दिग् दिगंत में लगा गूंजने, फिर तो साई जी का नाम। दीन-दुखी की रक्षा करना, यही रहा बाबा का काम॥ बाबा के चरणों में जाकर, जो कहता मैं हूं निर्धन। दया उसी पर होती उनकी, खुल जाते दुःख के बंधन॥ कभी किसी ने मांगी भिक्षा, दो बाबा मुझको संतान। एवं अस्तु तब कहकर साई, देते थे उसको वरदान॥ स्वयं दुःखी बाबा हो जाते, दीन-दुःखी जन का लख हाल। अन्तःकरण श्री साई का, सागर जैसा रहा विशाल॥ भक्त एक मद्रासी आया, घर का बहुत ब़ड़ा धनवान। माल खजाना बेहद उसका, केवल नहीं रही संतान॥ लगा मनाने साईनाथ को, बाबा मुझ पर दया करो। झंझा से झंकृत नैया को, तुम्हीं मेरी पार करो॥ कुलदीपक के बिना अंधेरा, छाया हुआ घर में मेरे। इसलिए आया हूँ बाबा, होकर शरणागत तेरे॥ कुलदीपक के अभाव में, व्यर्थ है दौलत की माया। आज भिखारी बनकर बाबा, शरण तुम्हारी मैं आया॥ दे-दो मुझको पुत्र-दान, मैं ऋणी रहूंगा जीवन भर। और किसी की आशा न मुझको, सिर्फ भरोसा है तुम पर॥ विनय बहुत की उसने, चरणों में धर के शीश। तब प्रसन्न होकर बाबा ने, दिया भक्त को यह आशीश॥ अल्ला भला करेगा तेरा, पुत्र जन्म हो तेरे घर। कृपा रहेगी तुझ पर उसकी, और तेरे उस बालक पर॥ अब तक नहीं किसी ने पाया, साई की कृपा का पार। पुत्र रत्न दे मद्रासी को, धन्य किया उसका संसार॥ तन-मन से जो भजे उसी का, जग में होता है उद्धार। सांच को आंच नहीं हैं कोई, सदा झूठ की होती हार॥ मैं हूं सदा सहारे उसके, सदा रहूँगा उसका दास। साई जैसा प्रभु मिला है, इतनी ही कम है क्या आस॥ मेरा भी दिन था एक ऐसा, मिलती नहीं मुझे रोटी। तन पर कप़ड़ा दूर रहा था, शेष रही नन्हीं सी लंगोटी॥ |