सूर्य षष्टी पूजा / छठ पर्व
ये एक महापर्व है जो पूरे 4 दिनों तक चलता है। इस पर्व का मुख्य दिन कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि होती है। लेकिन इसकी शुरुआत कार्तिक शुक्ल चतुर्थी से हो जाती है। ये व्रत काफी कठिन है। जिसमें 36 घंटों तक निर्जला व्रत रखा जाता है और पानी में खड़े रहकर सूर्य को अर्घ्य देना होता है। छठ व्रत पूजा के दौरान इस कथा को पढ़ना जरूरी माना जाता है।
छठ पर्व की कथा
पौराणिक कथाओं के मुताबिक राजा प्रियंवद को कोई संतान नहीं थी। तब महर्षि कश्यप ने पुत्र प्राप्ति के लिए यज्ञ कराकर प्रियंवद की पत्नी मालिनी को यज्ञ आहुति के लिए बनाई गई खीर दी। इससे उन्हें पुत्र तो हुआ, लेकिन वह मृत पैदा हुआ। प्रियंवद पुत्र को लेकर श्मशान गए और पुत्र वियोग में प्राण त्यागने लगे। उसी वक्त भगवान की मानस पुत्री देवसेना प्रकट हुईं और उन्होंने कहा, ‘सृष्टि की मूल प्रवृत्ति के छठे अंश से उत्पन्न होने के कारण मैं षष्ठी कहलाती हूं। राजन तुम मेरी पूजा करो और इसके लिए दूसरों को भी प्रेरित करो।’ राजा ने पुत्र इच्छा से देवी षष्ठी का व्रत किया और उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। यह पूजा कार्तिक शुक्ल षष्ठी को हुई थी।