16 संख्या में क्यों रखा जाता है सोमवार व्रत, जानें इसके पीछे के कारण
"कहते हैं कि एक बार सावन के महीने में बहुत सारे ऋषि क्षिप्रा नदी के किनारे एकत्र होकर वहां पर उज्जैन के महाकाल की पूजा के निमित्त एक यज्ञ करने लगे। कुछ ही देर बाद वहां पर वैश्य कन्या भी पहुंची और अपने विचारों से ऋषियों के धर्म भ्रष्ट करने लगी।",
हिन्दू धर्म शास्त्रों में सोमवार का दिन बेहद खास माना गया है। इसके पीछे कारण ये है कि यह दिन भगवान शिव को समर्पित है। सोमवार का व्रत भगवान भोलनाथ को प्रसन्न कर उनकी कृपा प्राप्त करने के लिए किया जाता है। सामान्य तौर पर कुछ लोग किसी एक सोमवार का व्रत रखते हैं लेकिन कुछ लोग ऐसे भी हैं जो सोलह सोमवार का व्रत रखते हैं।
इसके पीछे उनका उद्देश्य यही निहित होता है कि व्रत के फलस्वरूप भोलेशंकर की विशेष कृपा प्राप्त हो। क्या आप जानते हैं कि सोमवार का व्रत 16 संख्या में क्यों रखा जाता है? यदि नहीं, तो आगे इसे जानते हैं। कहा जाता है कि कोई भी व्रत शुरू करने से पहले उसके मास, पक्ष, तिथि और विधि का ज्ञान होना चाहिए। इन सब बातों के जानने के बाद ही व्रत रखना शुभ माना गया है। इसी तरह 16 सोमावर का व्रत शुरू करने से पहले श्रद्धालु को इन सब बातों का विशेष ध्यान रखने की सलाह दी जाती है।
पौराणिक मान्यताओं से अनुसार 16 सोमवार का व्रत रखने के पीछे एक कथा का वर्णन मिलता है। इस कथा के अनुसार उज्जैन शहर में एक सुगंधा नाम की वैश्य कन्या रहती थी। इस कन्या को पूर्व जन्म में एक वरदान प्राप्त था। जिससे उसके सारे शरीर से बहुत ज्यादा सुगंध आती थी। ये सुगंध बहुत दूर-दूर तक फैली रहती थी। इसके साथ ही वह नृत्य और गायन विद्या में बहुत अधिक निपुण थी। उसकी ख्याति बहुत दूर-दूर तक फैली हुई थी। सभी नृत्यांगनाओं को वो पीछे छोड़ चुकी थी। वह कन्या अपने इन गुणों से कई राजाओं को, युवा पुरुषों को, ब्राह्मणों को और कई व्यापारियों को अपने वश में कर लिया था। इसके कारण उसके भीतर अहंकार आ गया था। कहते हैं कि एक बार सावन के महीने में बहुत सारे ऋषि क्षिप्रा नदी के किनारे एकत्र होकर वहां पर उज्जैन के महाकाल की पूजा के निमित्त एक यज्ञ करने लगे। कुछ ही देर बाद वहां पर वैश्य कन्या भी पहुंची और अपने विचारों से ऋषियों के धर्म भ्रष्ट करने लगी। परंतु ऋषियों के तप बल के कारण उसके शरीर के सारे सुगंध खत्म हो गई। जिसके बाद वह बहुत अधिक हैरान होकर अपने शरीर को देखेने लगी। यह सब देखकर उसे बहुत हैरानी हुई कि इतना तपोबल कि जिससे मेरे शरीर की सारी सुगंध नष्ट हो गई? इतना सोचकर उसकी बुद्धि बदल गई। साथ ही उसका मन भक्ति की रह पर बढ़ने लगा। उसने अपने किए पापों के प्रायश्चित के लिए ऋषियों से इसका उपाय पूछा। तभी ऋषियों ने कहा कि तुम सोलह शृंगार करके सबको अपने वश में करती हो। इसलिए इस पाप से बचने के लिए तुम सोलह सोमवार का व्रत करो और काशी में निवश कर भगवान शिव की पूजा करो। वह वैश्य कन्या सोलह सोमवार का व्रत कर अपने प्रायश्चित से मुक्ति पाई और शिव धाम को पहुंच गई। इसलिए सोलह सोमवार के व्रत को 16 संख्या में पूरा किया जाता है।",