हरतालिका तीज
हरतालिका तीज का व्रत हिन्दू धर्म में सबसे बड़ा व्रत माना जाता हैं . यह तीज का त्यौहार भादो की शुक्ल तीज को मनाया जाता हैं . खासतौर पर महिलाओं द्वारा यह त्यौहार मनाया जाता हैं . कम उम्र की लड़कियों के लिए भी यह हरतालिका का व्रत क्ष्रेष्ठ समझा गया हैं . हरतालिका तीज में भगवान शिव, माता गौरी एवम गणेश जी की पूजा का महत्व हैं . यह व्रत निराहार एवं निर्जला किया जाता हैं . रत जगा कर नाच गाने के साथ इस व्रत को किया जाता हैं .
व्रत कथा :
यह व्रत अच्छे पति की कामना से एवं पति की लम्बी उम्र के लिए किया जाता हैं .
शिव जी ने माता पार्वती को विस्तार से इस व्रत का महत्व समझाया – माता गौरा ने सती के बाद हिमालय के घर पार्वती के रूप में जन्म लिया . बचपन से ही पार्वती भगवान शिव को वर के रूप में चाहती थी . जिसके लिए पार्वती जी ने कठोर ताप किया उन्होंने कड़कती ठण्ड में पानी में खड़े रहकर, गर्मी में यज्ञ के सामने बैठकर यज्ञ किया . बारिश में जल में रहकर कठोर तपस्या की . बारह वर्षो तक निराहार पत्तो को खाकर पार्वती जी ने व्रत किया . उनकी इस निष्ठा से प्रभावित होकर भगवान् विष्णु ने हिमालय से पार्वती जी का हाथ विवाह हेतु माँगा . जिससे हिमालय बहुत प्रसन्न हुए . और पार्वती को विवाह की बात बताई . जिससे पार्वती दुखी हो गई . और अपनी व्यथा सखी से कही और जीवन त्याग देने की बात कहने लगी . जिस पर सखी ने कहा यह वक्त ऐसी सोच का नहीं हैं और सखी पार्वती को हर कर वन में ले गई . जहाँ पार्वती ने छिपकर तपस्या की . जहाँ पार्वती को शिव ने आशीवाद दिया और पति रूप में मिलने का वर दिया .
हिमालय ने बहुत खोजा पर पार्वती ना मिली . बहुत वक्त बाद जब पार्वती मिली तब हिमालय ने इस दुःख एवं तपस्या का कारण पूछा तब पार्वती ने अपने दिल की बात पिता से कही . इसके बाद पुत्री हठ के करण पिता हिमालय ने पार्वती का विवाह शिव जी से तय किया .