सीता की निंदा करने वाले धोबी के पूर्व जन्म का वृत्तान्त
मिथिला नाम की नगरी में महाराज जनक राज्य करते थे। उनका नाम था सीरध्वज। एक बार वे यज्ञ के लिए पृथ्वी जोत रहे थे उस समय फाल से बनी गहरी रेखा द्वारा एक कुमारी कन्या का प्रादुर्भाव हुआ। रति से भी सुंदर कन्या को देख कर राजा को बड़ी प्रसन्नता हुई और उन्होंने उस कन्या का नाम सीता रख दिया।
परम सुंदरी सीता एक दिन सखियों के साथ उद्यान में खेल रहीं थीं। वहाँ उन्हें एक शुक पक्षी का जोड़ा दिखाई दिया,जो बड़ा मनोरम था। वे दोनों पक्षी एक पर्वत की चोटी पर बैठ कर इस प्रकार बोल रहे थे —-‘पृथ्वी पर श्री राम नाम से विख्यात एक बड़े सुंदर राजा होंगे। उनकी महारानी, सीता के नाम से विख्यात होंगी। श्री राम, सीता के साथ ग्यारह हजार वर्षों तक राज्य करेंगे। धन्य हैं वे जानकी देवी और धन्य हैं वे श्री राम।
तोते को ऐसी बातें करते देख सीता ने यह सोचा कि ये दोनों मेरे ही जीवन की कथा कह रहे हैं, इन्हें पकड़ कर सभी बातें पूछूँ।ऐसा विचार कर उन्होंने अपनी सखियों से कहा, ‘यह पक्षियों का जोड़ा सुंदर है तुम लोग चुपके से जाकर इसे पकड़ लाओ।’
सखियाँ उस पर्वत पर गयीं और दोनों सुंदर पक्षियों को पकड़ लायीं।
सीता उन पक्षियों से बोलीं—‘तुम दोनों बड़े सुंदर हो; देखो, डरना नहीं। बताओ, तुम कौन हो और कहाँ से आये हो? राम कौन हैं? और सीता कौन हैं? तुम्हें उनकी जानकारी कैसे हुई? सारी बातों को जल्दी जल्दी बताओ। भय न करो।
सीता के इस प्रकार पूछने पर दोनों पक्षी सब बातें बताने लगे —–‘देवि ! वाल्मीकि नाम से विख्यात एक बहुत बड़े महर्षि हैं। हम दोनों उन्हीं के आश्रम में रहते हैं। महर्षि ने रामायण नाम का एक ग्रन्थ बनाया है जो सदा मन को प्रिय जान पड़ता है। उन्होंने शिष्यों को उस रामायण का अध्ययन भी कराया है। रामायण का कलेवर बहुत बड़ा है। हम लोगों ने उसे पूरा सुना है ।
राम और जानकी कौन हैं, इस बात को हम बताते हैं तथा इसकी भी सूचना देते हैं कि जानकी के विषय में क्या क्या बातें होने वाली हैं; तुम ध्यान देकर सुनो।
‘महर्षि ऋष्यश्रंग के द्वारा कराये हुए पुत्रेष्टि-यज्ञ के प्रभाव से भगवान विष्णु राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न—ये चार शरीर धारण करके प्रकट होंगे। देवांगनाएँ भी उनकी उत्तम कथा का गान करेंगी।
श्री राम महर्षि विश्वामित्र के साथ भाई लक्ष्मण सहित हाथ में धनुष लिए मिथिला पधारेंगे। उस समय वहाँ वे शिव जी के धनुष को तोड़ेंगे और अत्यन्त मनोहर रूप वाली सीता को अपनी पत्नी के रूप में ग्रहण करेंगे। फिर उन्हीं के साथ श्री राम अपने विशाल राज्य का पालन करेंगे। ये तथा और भी बहुत सी बातें वहाँ हमारे सुनने में आयी हैं। सुंदरी ! हमने तुम्हें सब कुछ बता दिया। अब हम जाना चाहते हैं, हमें छोड़ दो।
पक्षियों की ये अत्यंत मधुर बातें सुनकर सीता ने उन्हें मन में धारण किया और पुनः उन दोनों से पूछा —-‘राम कहाँ होंगे? वे किसके पुत्र हैं और कैसे वे आकर जानकी को ग्रहण करेंगे? मनुष्यावतार में उनका श्री विग्रह कैसा होगा?
उनके प्रश्न सुनकर शुकी मन ही मन जान गयी कि ये ही सीता हैं। उन्हें पहचान कर वह सामने आ उनके चरणों पर गिर पड़ी और बोली —- श्री रामचन्द्र का मुख कमल की कली के समान सुंदर होगा। नेत्र बड़े बड़े तथा खिले हुए, नासिका ऊँची, पतली और मनोहारिणी होगी। भुजाएँ घुटनों तक, गला शंख के समान होगा। वक्षःस्थल उत्तम व चौड़ा होगा। उसमें श्रीवत्स का चिन्ह होगा। श्री राम ऐसा ही मनोहर रूप धारण करने वाले हैं। मैं उनका क्या वर्णन कर सकती हूँ। जिसके सौ मुख हैं, वह भी उनके गुणों का बखान नहीं कर सकता। फिर हमारे जैसे पक्षी की क्या बिसात है ।वे जानकी देवी धन्य हैं जो शीघ्र रघुनाथ जी के साथ हजारों वर्षों तक प्रसन्नतापूर्वक विहार करेंगी। परंतु सुंदरी ! तुम कौन हो?
पक्षियों की बातें सुनकर सीता अपने जन्म की चर्चा करती हुई बोलीं—-‘जिसे तुम लोग जानकी कह रहे हो, वह जनक की पुत्री मैं ही हू। श्री राम जब यहाँ आकर मुझे स्वीकार करेंगे, तभी मैं तुम दोनों को छोड़ूँगी। तुम इच्छानुसार खेलते हुए मेरे घर में सुख से रहो।
यह सुनकर शुकी ने जानकी से कहा —-‘साध्वी ! हम वन के पक्षी हैं। हमें तुम्हारे घर में सुख नहीं मिलेगा। मैं गर्भिणी हूँ, अपने स्थान पर जाकर बच्चे पैदा करूँगी। उसके बाद फिर यहाँ आ जाऊँगी।
उसके ऐसा कहने पर भी सीता ने उसे नहीं छोड़ा। तब उसके पति ने कहा —-‘सीता ! मेरी भार्या को छोड़ दो। यह गर्भिणी है। जब यह बच्चों को जन्म दे लेगी, तब इसे लेकर फिर तुम्हारे पास आ जाऊँगा। तोते के ऐसा कहने पर जानकी ने कहा — महामते ! तुम आराम से जा सकते हो, मगर यह मेरा प्रिय करने वाली है। मैं इसे अपने पास बड़े सुख से रखूँगी ।
जब सीता ने उस शुकी को छोड़ने से मना कर दिया, तब वह पक्षी अत्यंत दुखी हो गया। उसने करुणायुक्त वाणी में कहा —-‘योगी लोग जो बात कहते हैं वह सत्य ही है—-किसी से कुछ न कहे, मौन होकर रहे, नहीं तो उन्मत्त प्राणी अपने वचनरूपी दोष के कारण ही बन्धन में पड़ता है। यदि हम इस पर्वत के ऊपर बैठकर वार्तालाप न करते होते तो हमारे लिए यह बन्धन कैसे प्राप्त होता। इसलिए मौन ही रहना चाहिए ।’ इतना कहकर पक्षी पुनः बोला—– ‘सुन्दरी ! मैं अपनी इस भार्या के विना जीवित नहीं रह सकता, इसलिए इसे छोड़ दो। सीता ! तुम बहुत अच्छी हो, मेरी प्रार्थना मान लो।’ इस तरह उसने बहुत समझाया, किन्तु सीता ने उसकी पत्नी को नहीं छोड़ा, तब उसकी भार्या ने क्रोध और दुख से व्याकुल होकर जानकी को शाप दिया ——- ‘अरी ! जिस प्रकार तू मुझे इस समय अपने पति से अलग कर रही है, वैसे ही तुझे स्वयं भी गर्भिणी की अवस्था में श्री राम से अलग होना पड़ेगा।’
यों कहकर पति वियोग के कारण उसके प्राण निकल गये। उसने श्री रामचंद्र जी का स्मरण तथा पुनः पुनः राम नाम का उच्चारण करते हुए प्राण त्याग किया था, इसलिए उसे ले जाने के लिए एक सुंदर विमान आया और वह पक्षिणी उस पर बैठकर भगवान के धाम को चली गई।
भार्या की मृत्यु हो जाने पर पक्षी शोक से आतुर होकर बोला —— ‘मैं मनुष्यों से भरी श्री राम की नगरी अयोध्या में जन्म लूँगा तथा मेरे ही वाक्य से इसे पति के वियोग का भारी दुख उठाना पड़ेगा।’
यह कहकर वह चला गया। क्रोध और सीता जी का अपमान करने के कारण उसका धोबी की योनि में जन्म हुआ।
उस धोबी के कथन से ही सीता जी निन्दित हुईं और उन्हें पति से वियुक्त होना पड़ा।धोबी के रूप में उत्पन्न हुए उस तोते का शाप ही सीता का पति से विछोह कराने में कारण हुआ और वे वन में गयीं।