श्राद्ध पक्ष विशेष क्या ध्यान रखे और किस तिथि को किसका श्राद्ध करे
हमारे पौराणिक ग्रन्थ गरुड़ पुराण और कठोपनिषद में पारलौकिक जीवन के बारे में विस्तार से बताया गया है। इन ग्रंथों में कहा गया है कि पितृपक्ष के 15 दिनों में पितृलोक में गए पितर यानी परिवार के वो सदस्य जो देह त्यागकर दुनिया से चले गए हैं अपने सूक्ष्म शरीर के साथ पृथ्वी पर अाते हैं और अपने परिजनों के बीच रहते हैं। पुराण के अनुसार इन दिनों जिन परिवारों में पितरों की पूजा नहीं होती है और उनके नाम से अन्न, जल और पिण्ड नहीं दिया जाता है। उन परिवारों के पितर नाराज हो जाते हैं। इससे कई तरह की परेशानियां आती हैं। पूर्णिमा से अमावस्या के ये 16 दिन पितरों को कहे जाते हैं। इन 16 दिनों में पितरों को याद किया जाता है और उनका तर्पण किया जाता है।
पितृ दोष से मुक्ति पाने का सबसे सही समय होता है पितृपक्ष। इस दौरान किए गए श्राद्ध कर्म और दान-तर्पण से पितृों को तृप्ति मिलती है। वे खुश होकर अपने वंशजों को सुखी और संपन्न जीवन का आशीर्वाद देते हैं। पितृपक्ष में श्राद्ध कर्म करने की परंपरा हमारी सांस्कृतिक विरासत है।
पितरों को खुश रहने के लिए श्राद्ध के दिनों में विशेष कार्य करना चाहिए वही इस दौरान कुछ बातों का ध्यान रखना भी जरूरी है -
1. श्राद्ध करने के लिए ब्रह्मवैवर्त पुराण जैसे शास्त्रों में बताया गया है कि दिवंगत पितरों के परिवार में या तो ज्येष्ठ पुत्र या कनिष्ठ पुत्र और अगर पुत्र न हो तो नाती, भतीजा, भांजा या शिष्य ही तिलांजलि और पिंडदान देने के पात्र होते हैं।
2. पितरों के निमित्त सारी क्रियाएं गले में दाये कंधे मे जनेउ डाल कर और दक्षिण की ओर मुख करके की जाती है।
3. कई ऐसे पितर भी होते है जिनके पुत्र संतान नहीं होती है या फिर जो संतान हीन होते हैं। ऐसे पितरों के प्रति आदर पूर्वक अगर उनके भाई भतीजे, भांजे या अन्य चाचा ताउ के परिवार के पुरूष सदस्य पितृपक्ष में श्रद्धापूर्वक व्रत रखकर पिंडदान, अन्नदान और वस्त्रदान करके ब्राह्मणों से विधिपूर्वक श्राद्ध कराते है तो पितर की आत्मा को मोक्ष मिलता है।
4. श्राद्ध के दिन लहसुन, प्याज रहित सात्विक भोजन ही घर की रसोई में बनना चाहिए। जिसमें उड़द की दाल, बडे, चावल, दूध, घी से बने पकवान, खीर, मौसमी सब्जी जैसे तोरई, लौकी, सीतफल, भिण्डी कच्चे केले की सब्जी ही भोजन में मान्य है। आलू, मूली, बैंगन, अरबी तथा जमीन के नीचे पैदा होने वाली सब्जियां पितरों को नहीं चढ़ती है।
5. श्राद्ध का समय हमेशा जब सूर्य की छाया पैरो पर पड़ने लग जाए यानी दोपहर के बाद ही शास्त्र सम्मत है। सुबह-सुबह अथवा 12 बजे से पहले किया गया श्राद्ध पितरों तक नहीं पहुंचता है।
श्राद्द करने के अपने नियम होते हैं। जिस तिथि में परिजन की मृत्य़ु होती है उसी तिथि में उनका श्राद्ध किया जाता है। पूर्णिमा से अमावस्या तक 15 दिन श्राद्ध किया जाता है।
* जिन लोगों की मृत्यु के दिन की सही जानकारी न हो उनका श्राद्ध अमावस्या तिथि को करना चाहिए। वहीं अकाल मृत्य़ु होने पर भी अमावस्या के दिन श्राद्ध किया जाता है।
* जिसने आत्महत्या की हो, या जिनकी हत्या हुई हो ऐसे लोगों का श्राद्ध चतुर्थी तिथि के किया जाता है।
* पति जीवित हो और पत्नी की मृत्यु हो गई हो, तो नवमी तिथि को श्राद्ध किया जाता है।
* वहीं एकादशी में उन लोगों का श्राद्ध किया जाता है जिन लोगों ने संन्यास लिया हो।