मंगला गौरी पूजा
हिन्दू मान्यतानुसार, हर पूजा का अपना ही महत्व है. और हर पूजा किसी न किसी उद्देश्य से की जाती है. मंगला गौरी सावन माह के प्रत्येक मंगलवार को किया जाता है. यह व्रत सौभाग्यवती स्त्रियों के लिए अखण्ड सौभाग्य का वरदान होता है.
श्रावण मास के प्रत्येक मंगलवार को किए जाने वाले इस व्रत का आरंभ श्रावण मास के प्रथम मंगलवर के दिन से किया जाता है और सावन माह के प्रत्येक मंगलवार के दिन इस व्रत को करने से विवाहित स्त्रियों को सुख सौभाग्य की प्राप्ति होती है.
देवी गौरी का यह व्रत मंगलागौरी के नाम से विख्यात है जिस प्रकार माता पार्वती ने भगवान शिव को पाने हेतु कठोर तप किया उसी प्रकार स्त्रियां इस व्रत को करके अपने पति की लम्बी आयु का आशीर्वाद प्राप्त करती हैं.
मंगला गौरी पूजा व्रत की कथा
बहुत पुरानी बात थी, एक समय मे कुरु नामक देश मे, श्रुतिकीर्ति बहुत प्रसिद्ध सर्वगुण संपन्न, अतिविद्द्वान राजा हुआ करता था जोकि, अनेको कलाओं मे तथा विशेष रूप से धनुष विध्या मे निपूर्ण था. सम्पूर्ण सुखो के बाद भी राजा बहुत दुखी और परेशान था क्योंकि, उसके कोई पुत्र नही था. वह संतान सुख से वर्जित था. जिसके चलते राजा ने कई जप-तप, ध्यान, और अनुष्ठान कर देवी की भक्ति-भाव से तपस्या करी.
देवी प्रसन्न हुई, और कहा- हे राजन! मांगो क्या मांगना चाहते हो. तब राजा ने कहा माँ, मे सर्वसुखो व धन-धान्य से समर्ध हूँ. यदि कुछ नही है तो, वह संतान-सुख जिससे मैं वंचित हूँ. मुझे वंश चलाने के लिये वरदान के रूप मे, एक पुत्र चाहिए. देवी माँ ने कहा राजन, यह बहुत ही दुर्लभ वरदान है, पर तुम्हारे तप से प्रसन्न हो कर, मैं यह वरदान तो देती हूँ, परन्तु तुम्हारा पुत्र सोलह वर्ष तक ही जीवित रहेगा. यह बात सुन कर राजा और उनकी पत्नी बहुत चिंतित हुये. सभी बातोँ को जानते हुए भी राजा-रानी ने यह वरदान माँगा.
देवी माँ के आशिर्वाद से रानी ने एक पुत्र को जन्म दिया. राजा ने उस बालक का नामकरण संस्कार कर, उसका नाम चिरायु रखा. साल बीतते गये, राजा को अपने पुत्र की अकाल म्रत्यु की चिंता सताने लगी.
तब किसी विद्वान के कहानुसार, राजन ने सोलह वर्ष से पूर्व ही, अपने पुत्र का विवाह ऐसी कन्या से कराया जो, मंगला गौरी के व्रत करती थी, जिससे उस कन्या को भी व्रत के फल स्वरूप, सर्वगुण सम्पन्न वर की प्राप्ति हुई. तथा उस कन्या को
सौभाग्यशाली व सदा सुहागन का वरदान प्राप्त था. जिससे विवाह के उपरान्त, उसके पुत्र की अकाल मत्यु का दोष स्वत: ही समाप्त हो गया, और राजा का वह पुत्र अपने नाम के अनुसार, चिरायु हुआ.
इस तरह जो भी, स्त्री या कुवारी कन्या पुरे भक्ति-भाव से, यह फलदायी मंगला गौरी व्रत करती है, उसकी सब ईच्छा पूर्ण होकर सर्वसुखो की प्राप्ति होती है.