नर्मदा जयंती का महत्व और कथा
नर्मदा जयंती का पर्व पूरे देश में धूमधाम से मनाया जाता हैं. नर्मदा नदी मध्यप्रदेश और गुजरात राज्य की मुख्य नदी हैं दोनों राज्य की पूरी आबादी इसी नदी के पानी पर आश्रित रहती हैं. इसी कारण इस नदी को माँ तुल्य माना जाता हैं. कहते हैं जो पुण्य की प्राप्त गंगा नदी के पावन जल में नहाने से होता हैं वही पुण्य नर्मदा में नहाने से भी मिलता हैं. इसी नदी के पास भगवान महादेव का एक ज्योतिर्लिंग ओमकारेश्वर स्थित हैं इसी कारण इस नदी का सामाजिक के साथ-साथ धार्मिक महत्व भी हैं.
नर्मदा जयंती
हिन्दू रीति-रिवाजों में माघ माह हो अत्यंत ही शुभ माना जाता हैं इसीलिए वेदों में इसे ब्रह्मा मुहूर्त भी कहते हैं. इसी माह में तिल चौथ और मकर संक्रांति का भी पर्व आता हैं इसी कारण इस माह में दान करने की परंपरा हैं. ऐसा कहा जाता हैं इसी माघ माह की शुक्ल पक्ष की सप्तमी को भगवान शिव के पसीने से 12 वर्ष की एक कन्या ने जन्म लिया था. वह कन्या माँ नर्मदा थी. इसी कारण इस दिवस को नर्मदा जयंती यानी नर्मदा का जन्म पर्व के रूप में मनाया जाता हैं.
नर्मदा जयंती महोत्सव
नर्मदा नदी के अवतरण तिथि को नर्मदा जयंती महोत्सव के रूप में धूमधाम से मानते हैं. मध्यप्रदेश राज्य के अमरकंटक (नर्मदा का उद्गम स्थल) में इस त्यौहार की भव्यता देखते ही बनती हैं. लोग महीनों पूर्व से ही इस त्यौहार की तैयारियों में जुट जाते हैं. हर वर्ष प्रदेश के मुख्यमंत्री इस पर्व में शामिल होकर इसकी शुरुआत करते हैं.
नर्मदा जयंती महोत्सव पर नर्मदा के किनारे वाले मुख्य शहरों जैसे महेश्वर, उज्जैन आदि जगहों पर धार्मिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता हैं. नदी के किनारों को सजाया जाता हैं, महायज्ञ किये जाते हैं और शाम के समय प्रसादी के रूप में भंडारे किये जाते हैं. यह त्यौहार पूरे एक सप्ताह तक इसी प्रकार मनाया जाता हैं. नर्मदा जयंती महोत्सव को देखने के लिए देश से नहीं बल्कि विदेशों से भी काफी सैलानी आते हैं. भारत में अन्य नदियाँ भी हैं लेकिन किसी भी नदी का इस तरह सात दिनों तक महोत्सव नहीं मनाया जाता हैं.
नर्मदा नदी से जुडी कहानियाँ
हिन्दू धर्मं की सप्त पावन नदियों में से नर्मदा एक हैं. इसके महत्व से जुडी कई कहानियाँ हमारे पुराणों में मौजूद हैं. जिसमे में मुख्य कुछ इस प्रकार हैं.
कथा 1 : अंधकासुर के वध से जुडी हुई
वामन पुराण की एक कथा के अनुसार अंधकासुर भगवान शिव और पार्वती का पुत्र था. एक दैत्य हिरण्याक्ष ने भगवान शिव की घोर तपस्या करके उन्ही की तरह बलवान पुत्र पाने का वरदान माँगा. भगवान शिव ने एक क्षण भी गवाए अपना पुत्र 'अन्धक' हिरण्याक्ष को दे दिया. अंधकासुर भगवान शिव का परम भक्त था उसने भगवान शिव की भक्ति कर उनसे से 2000 हाथ, 2000 पांव, 2000 आंखें, 1000 सिरों वाला विकराल स्वरुप प्राप्त किया. लेकिन जैसे ही जैसे हिरण्याक्ष की ताकत बढते चली गई उसके अत्याचार बढते चले गए. भगवान विष्णु ने वराह अवतार लेकर हिरण्याक्ष का वध कर दिया. पिता की मृत्यु की खबर सुनते ही अंधकासुर के मन में बदले की भावना जल उठी. वह विष्णु और महादेव को अपना शत्रु मानने लग गया.
अंधकासुर ने अपने बल और पराक्रम से देवलोक पर अपना अधिपत्य जमा लिया. ऐसा कहा जाता हैं राहू और केतु के बाद अंधकासुर एकलौता ऐसा दैत्य था जिसने अमृत का पान किया था. देवलोक पर आधिपत्य करने के बाद अंधकासुर ने कैलाश की और अपना रुख किया. कैलाश में अंधकासुर और महादेव के बीच घोर युद्ध होता हैं. जिसमे शिवजी अंधकासुर का वध करते हैं.
अंधकासुर के वध होने के बाद देवताओं को भी अपने द्वारा किये गए पापों का ज्ञात होता हैं. सभी देवता, भगवान विष्णु और ब्रह्मा, भगवान शिव के पास आते हैं जो कि मेकल पर्वत (अमरकंटक) पर समाधिस्थ थे. शिव अंधकासुर राक्षस का वध कर शांत-सहज समाधि में बैठे थे. अनेकों स्तुतियाँ, वंदना और प्रार्थना करने के बाद भगवान शिव अपनी आँखे खोलते हैं. सभी देवता निवेदन करते हैं 'हे भगवन, अनेकों प्रकार के विलास, भोगो और असंख्य दैत्यों के वध से हमारी आत्मा पापी हो चुकी हैं, इसका निवारण कैसे किया जाए. कैसे हमें पुण्य की प्राप्ति होगी'. जिसके बाद भगवान शिव के सिर से पसीने की एक बूंद धरती पर गिरती हैं. कुछ ही क्षणों में वह बूंद तेजोमय कन्या के रूप में परिवर्तित हो जाती हैं. उस कन्या का नाम नर्मदा (नर्म का अर्थ है- सुख और दा का अर्थ है- देने वाली) रखा गया और अनेकों वरदानों से कृतार्थ किया.
भगवान शिव ने नर्मदा को माघ मास की शुक्ल सप्तमी से नदी के रूप में बहने और लोगों के पापों को हरने का आदेश दिया. नर्मदा के अवतरण की इसी तिथि को नर्मदा जयंती मनाई जाती हैं. शिव से आदेश मिलने के बाद नर्मदा प्रार्थना करते हुए कहती हैं कि 'भगवन! मैं कैसे लोगों के पाप दूर का सकती हैं' तब भगवान विष्णु नर्मदा को आशीर्वाद देते हैं.
“नर्मदे त्वें माहभागा सर्व पापहरि भव, त्वदत्सु याः शिलाः सर्वा शिव कल्पा भवन्तु ताः”
अर्थात नर्मदा तुम्हारे अंदर संसार के सभी पापों को हरने की क्षमता होगी. तुम्हारे जल से शिव का अभिषेक किया जायेगा. भगवान शिव ओमकारेश्वर के रूप में सदैव तुम्हारे तट पर विराजमान रहेंगें और उनकी कृपा तुम पर बन रहेगी. जिस प्रकार स्वर्ग से अवतरित होकर गंगा प्रसिद्द हुई थी उसी प्रकार तुम भी जानी जाओगी.
कथा 2 : राजा हिरण्य तेजा की कहानी
स्कंदपुराण के रेवाखंड के अनुसार राजा हिरण्य तेजा अपने पितरो का तर्पण करने के लिए धरती के सभी तीर्थों पर गए लेकिन तब भी पितरों को मोक्ष की प्राप्ति नहीं हो पा रही थी. तब उन्होंने अपने पितरों के पूछा कि आपको कहाँ संतुष्टि मिल पायेगी? पितरो ने बताया हमें माँ नर्मदा के पवित्र जल में तर्पण से मोक्ष मिलेगा.
पितरो के कहे अनुसार नर्मदा के उद्गम के लिए राजा हिरण्य तेजा 14 वर्ष तक भगवान शिव का घोर तप करते हैं. भगवान शिव राजा के तप से प्रसन्न होते हैं हिरण्य तेजा वरदान स्वरुप माँ नर्मदा को धरती पर आने की याचना करते हैं. भगवान शिव ने तथास्तु कहा और अपनी बेटी नर्मदा को ख़ुशी-ख़ुशी मगरमच्छ के आसन पर सवार कर और विंध्यचल पर्वत पर भेजा. राजा ने अपने पितरो का नर्मदा नदी के किनारे तर्पण कर पितरों को मोक्ष प्रदान किया.
कथा 3 : ब्रम्हा जी की कहानी
ऐसा कहा जाता हैं कि संसार की रचना के दौरान ब्रम्हा जी की आँखों से दो बूंद धरती पर आ गिरी. उन्ही दो बूंदों से दो नदियों रेवा और सोन का जन्म हुआ. रेवा नर्मदा का ही एक नाम है. स्कन्दपुराण में भी नर्मदा को रेवा कहा गया हैं. स्कन्दपुराण के छ: खंडो में से एक रेवाखंड भी हैं.
नर्मदा का धार्मिक महत्व
धार्मिक महत्व भी हैं. ब्रह्माण्ड पुराण में इसे सिद्ध क्षेत्र कहा गया. इसके जल को पाप निवारनी माना गया है. जिसके जल में स्नान करने से जन्मो-जन्मो के पाप मुखत हो जाते हैं. नर्मदा के तट पर लोग अपने पितरों का पिंड दान करते हैं. नर्मदा नदी के किनारे पर ही भगवान शिव के द्वादश ज्योतिर्लिगों में से एक ओमकारेश्वर स्थित हैं. दूर-दूर से सैलानी यहाँ बाबा भोलेनाथ और माँ नर्मदा के दर्शन के लिए आते हैं.