धरती पर कैसे आईं मां गंगा, जानिए यह पौराणिक कथा
मान्यताओं के अनुसार भागीरथ ने अपने पूर्वजों के मोक्ष की प्राप्ति के लिए लंबी और कठिन तपस्या की थी। जिससे वह गंगा को धरती पर लाने में कामयाब रहे। लेकिन मां गंगा का वेग काफी अधिक होने के कारण उनका स्वर्ग से सीधे धरती पर आना मुश्किल था। जिससे धरती पर प्रलय तक आ सकता था।",
गंगा मां को सबसे पवित्र नदियों में से एक माना जाता है। कहते हैं कि गंगा में डुबकी लगाने से मनुष्य के सभी पाप धुल जाते हैं। गंगा के पवित्र जल का प्रयोग हिंदू धर्म में पूजा-पाठ के कार्यों में विशेष रूप से किया जाता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि कैसे गंगा मां इस धरती पर आईं इसके पीछे एक पौराणिक कथा है। मान्यताओं के अनुसार भागीरथ ने अपने पूर्वजों के मोक्ष की प्राप्ति के लिए लंबी और कठिन तपस्या की थी। जिससे वह गंगा को धरती पर लाने में कामयाब रहे। लेकिन मां गंगा का वेग काफी अधिक होने के कारण उनका स्वर्ग से सीधे धरती पर आना मुश्किल था। जिससे धरती पर प्रलय तक आ सकता था। अत: उनके वेग को कम करने के लिए भागीरथ ने शिवजी की तपस्या की। भागीरथ की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने मां गंगा को अपनी जटाओं में धारण किया और गंगा कैलाश होती हुई धरती पर आ गईं। उस दौरान प्रजापति श्री ब्रह्मा जी ने भागीरथ के इस कार्य से प्रसन्न होकर कहा कि गंगा को धरती पर लाकर आप बड़े धर्म के भागीदार बन गए हैं।
गंगा में स्नान करना सदैव कल्याणकारी रहा है और भविष्य में भी इसकी बूंद-बूंद से मानवों का कल्याण होगा। मान्यता है कि ज्येष्ठ मास की दशमी को ही गंगा धरती पर आईं थी। इसलिए इस दिन को गंगा दशहरा के रुप में मनाने की परंपरा शुरू हुई। पूजा करने वालों को इस दिन सूर्य उदय होने से पहले उठकर गंगा नदी में जाकर स्नान करना चाहिए। अगर आप गंगा नदी में स्नान नहीं कर पाएं तो आस-पास की किसी भी पवित्र नदी में स्नान कर मां गंगा का ध्यान कर लेना चाहिए। पूजा के दौरान लगातार ‘ऊँ नम: शिवाय नारायण्यै दशहराय गंगाय नम:’ मंत्र का जाप करते रहना चाहिए। गंगा दशहरा में 10 की संख्या का काफी महत्व होता है। ऐसे में आप पूजा में 10 दीपों, 10 प्रकार के फूलों, दस प्रकार के नैवेद्य, दस प्रकार के फल आदि का इस्तेमाल कर सकते हैं।",