जानें, क्या है "वास्तु" और कितनी पुरानी

जानें, क्या है "वास्तु" और कितनी पुरानी

वास्तु वस् धातु एवं तुण् प्रत्यय शब्द से निष्पत्ति होती है। जिसका अर्थ है-गृह निर्माण की ऎसी कला जो मनुष्य द्वारा निर्मित घर को विन-प्राकृतिक उत्पादों एवं उपद्रवों में बचाती है।

वास्तु वस्तुत...
पृथ्वी, जल, आकाश, वायु और अग्नि इस पांच तत्वों के समानुपातिक सम्मिश्रण का नाम है। इसके सही सम्मिश्रण से "बायो-इलैक्ट्रिक मैगनेटिक एनर्जी" की उत्पत्ति है। जिससे मनुष्य को उत्तम-स्वास्थ्य, धन एवं ऎश्वर्य की प्राप्ति होती है।


कितनी प्राचीन है वास्तु...
कई बार आम जनता से यह प्रश्न उठता है कि वास्तुकला कितनी प्राचीन है। कई आलोचक ऎसे भी आरोप लगाते हैं वास्तुशास्त्र का विशेष प्रचलन गत एक दशक से हो रहा है। ऎसी बात नहीं है। आज से पांच हजार वष् पूर्व महाभारत काल में वास्तु विज्ञान अत्यन्त विकसित अवस्था में था। जिसमें नगर निर्माण पर विस्तार से चर्चा मिलती है। इसी काल में मय नामक असुर जो कि शिल्प शास्त्र से सिद्ध हस्त था, "मय-महात्म्य" नामक विलक्षण ग्रन्थ की रचना की। जो आज भी उपलब्ध है। द्वापर युग में ही वास्तुशास्त्र प्रवर्तक विश्वकर्मा ने सुवर्णमय द्वारका नगरी का निर्माण किया था। उसी द्वारका में सुदामा श्रीकृष्ण से मिले थे। यह सुवर्णमय द्वारका भगवान श्री कृष्ण की इच्छा से ही समुद्र में लोप हो गई। जिसे आज बेट द्वारका के नाम से जाना जाता है। श्रीकृष्ण ने कहा था कि कलियुग आने वाला है, लोग सुवर्ण के लिए लडेंगे और इस द्वारका को खण्ड-खण्ड करके नष्ट कर देंगे। इसलिए उस सुवर्णमयी द्वारका को अपने प्रमाण के साथ ही लोप कर दिया। आज से करीब इक्कीस लाख पैंसठ हजार छियान्वें (21,65096) वर्ष पूर्व त्रेता युग में भगवान श्रीराम ने अनेक जगह वास्तुविज्ञान का प्रयोग किया था। इस काल में लंकेश रावण ने श्रीराम द्वारा स्थापित रामेश्वर नामक सुप्रसिद्ध ज्योतिर्लिग की वास्तु प्रतिष्ठा जताई थी। पुराणों से मिले प्रमाणों के अनुसार भगवान शंकर ने अपने मानसिक संकल्प द्वारा निर्मित सुवर्णमयी नगरी की प्रतिष्ठा भी महाविद्वान रावण से कराई थी जो बाद में उन्होंने दक्षिणा के रूप में आचार्य रावण को समर्पित कर दी है। वह सुवर्णमयी लंका कालान्तर में समुद्र में लोप हो गई है। अनेक पुराणों में वास्तुशास्त्र के सिद्धान्तों पर चर्चा है। वेदों में वास्तुशांति के अनेक मंत्र मिलते है। अत: जितने वेद प्राचीन हैं, अनादि हैं, उतना ही वास्तुशास्त्र प्राचीन है। अनादि है, अन्नत है।