जब मृत्यु की भी हुई मृत्यु
गोदावरी के पावन तट पे “श्वेत” नामक एक ब्राह्मण रहते थे । जो शिव जी के अनन्य भक्त थे,सदा शिव भक्ती में लीन रहते थे। उनकी आयु पूरी हो चुकी थी । यमदूत उन्हें समय से लेने आये , लेकिन यमदूत श्वेत के घर में प्रवेश नही कर पाये।
तब स्वयं ” मृत्यु देव”आये और श्वेत के घर में प्रवेश कर गये। श्वेत की रक्षा भैरव बाबा कर रहे थे। भैरव बाबा ने मृत्यु देव से वापस जाने के लिए कहा लेकिन मृत्यु देव ने भैरव बाबा की बात नही मानी और श्वेत पर फंदा डाल दिया। भक्त पर मृत्यु देव का यह आक्रमण देखकर भैरव बाबा को सहन न हुआ । भैरव बाबा ने मृत्यु पर डंडे से प्रहार कर दिया । मृत्यु देव वहीं ठंडे हो गये मर गये ।
मृत्यु की मृत्यु सुनकर यमराज आ गये उन्होंने श्वेत पर यमदंड से प्रहार कर किया। वहाँ पर कार्तिकेय जी पहले से ही मौजूद थे, जो श्वेत की ऱक्षा कर रहे थे। उन्होंने यमराज को मार गिराया और साथ में यम दूतों का संघार कर दिया । मृत्यु की सजा देने वाले यमराज की भी मृत्यु हो गयी।
यह देखकर सूर्य देव विचिलित हो गये क्यों की यमदेव सूर्य देव के पुत्र हैं। पुत्र को मरा हुआ देखकर सूर्य देव ने भगवान शिव की आराधना की। भोलेनाथ प्रगट हुए, शिव जी ने नंदी के द्वारा गौतमी गंगा (गोदावरी) का जल मँगवाया और मरे हुए लोगों पे छिडकवाया तत्क्षण सबके सब स्वस्थ होकर उठ खडे हुए(जीवित हो गये) । इसी लिए शिव जी को विश्वनाथ कहा जाता है।