कुंभकर्ण से जुडी कुछ अनसुनी रोचक बातें
रामायण के एक प्रमुख पात्र और लंकापति रावण के भाई कुंभकर्ण के बारे में। बता रहे है आपको कुंभकर्ण से जुड़ी कुछ रोचक और अनसुनी बातें।
जब कुंभकर्ण को ब्रह्मा जी ने दिया था 6 महीने सोने का वरदान
रावण,विभीषण और कुंभकर्ण तीनों भाई ब्रह्मा जी को प्रसन्न करने के लिए कठोर तपस्या कर रहे थे। तीनो भाईओं की कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी उनके सामने प्रकट हुए। और रावण और विभीषण को उनकी इच्छा अनुसार उन्हें वरदान देकर कुंभकर्ण के पास पहुंचे। पहले तो ब्रह्म जी कुंभकर्ण को वरदान देने से पहले बहुत चिंतित थे। इस संबंध में श्री राम चरित्र मानस में लिखा गया है:-
तेहि बिलोकि मन बिसमय भयऊ।
इस दोहे का अर्थ है कि रावण और विभीषण को मनचाहा वरदान देने के बाद ब्रह्माजी कुंभकर्ण के पास गए। लेकिन कुंभकर्ण को देख कर ब्रह्मा जी के मन में बहुत ही आश्चर्य हुआ। उस समय ब्रह्मदेव की चिंता का कारण यह था कि यदि कुंभकर्ण हर रोज भरपेट भोजन करेगा तो जल्दी ही पूरी सृष्टि नष्ट हो जाएगी। इसी कारण से ब्रह्मदेव ने कुंभकर्ण के वरदान मांगने से पहले ही देवी सरस्वती के द्वारा कुंभकर्ण की बुद्धि को भ्रमित करा दी थी। जिससे कि कुंभकर्ण जो चाहता था वह ना मांग सके। मां सरस्वती आकर कुंभकर्ण के जिह्वा पर बैठ गई। और इसी मतिभ्रम के कारण कुंभकर्ण में छह माह तक सोते रहने का वरदान ब्रह्मदेव से मांग लिया था।
कुंभकर्ण अत्यंत बलवान था
कुंभकर्ण के विषय में श्री राम चरित्र मानस मे लिखा गया है कि:-
जेहि कहुँ नहिं प्रतिभट जग जाता।।
करइ पान सोवइ षट मासा।
जागत होइ तिहुँ पुर त्रासा।।
रामचरित्र मानस के इस दोहे के अनुसार लंकापति रावण का भाई कुंभकर्ण अत्यंत बलवान था। और इस से टक्कर लेने वाला कोई भी योद्धा पूरे जगत में नहीं था। ब्रह्मा जी के वरदान के कारण वह मदिरा पीकर 6 महीने तक सोता रहता था। लेकिन जब कुंभकर्ण जागता था तो तीनों लोकों में हाहाकार मच जाता था।
जब कुंभकर्ण को हुआ था दुख
बात उस समय की है जब लंकापति रावण द्वारा माता सीता के हरण के बाद प्रभु श्रीराम अपने वानर सेना सहित लंका पहुंच गए थे। प्रभु श्रीराम और लंकापति रावण दोनों के सेनाओं के बीच घमासान युद्ध होने लगा था। उस समय तक कुंभकर्ण लंका में सो रहा था। जब प्रभु श्रीराम के युद्ध के उपरांत रावण के कई महारथी वीर यौद्धा मारे जा चुके थे। तब रावण ने कुंभकर्ण को जगाने का आदेश अपने सैनिकों को दिया। कितने प्रकार के प्रयत्नों के बाद जब कुंभकर्ण अपनी नींद से जागा,तो उसे मालूम हुआ कि उसके बड़े भाई रावण ने सीता का हरण कर लिया है। जब उसे यह बात पता चली तो कुंभकर्ण को बहुत ही दुख हुआ था।
जगदंबा हरि आनि अब सठ चाहत कल्यान।
कुंभकर्ण दुखी होकर अपने भाई रावण से बोला अरे मूर्ख तू ने जगत जननी सीता का हरण किया है। और अब तू अपना कल्याण चाहता है।
इसके बाद कुंभकर्ण अपने बड़े भाई रावण को कई प्रकार से समझाने का प्रयास किया कि वह श्री राम प्रभु से क्षमा याचना कर ले और उनकी पत्नी सीता को सकुशल उन्हें लौटा दे। ताकि भविष्य में राक्षस कुल का नाश होने से बच जाये। कुंभकरण के इतना समझाने के बाद भी लंकापति रावण नहीं माना।
देवर्षि नारद ने दिया था कुंभकर्ण को तत्वज्ञान
रामायण महाकाव्य से पता चलता है कि कुंभकर्ण को पाप- पुण्य और धर्म-अधर्म से कोई लेना-देना नहीं था। वह तो हर 6 महीने तक सोता रहता था और एक दिन के लिए ही जागता था। और जब वह जागता था तो उसका पूरा एक दिन भोजन करने में और सभी का कुशल मंगल जानने में ही व्यतीत हो जाता था। लंकापति रावण के अधार्मिक कार्यों में कुंभकरण का कोई भी सहयोग नहीं होता था। इसी वजह से स्वयं देवर्षि नारद ने जा कर कुंभकर्ण को तत्वज्ञान का महान उपदेश दिया था।
रावण का मान रखने के लिए युद्ध के लिए तैयार हो गया था कुंभकर्ण
जब कुंभकर्ण के समझाने पर भी रावण प्रभु श्री राम से युद्ध नहीं करने की बात को नहीं माना। तो कुंभकरण ने अपने बड़े भाई रावण का मान रखते हुए युद्ध के लिए तैयार हो गया। कुंभकरण जानता था कि श्रीराम साक्षात भगवान श्री हरि विष्णु के अवतार हैं। और उन्हें युद्ध में पराजित कर पाना असंभव है। यह सब जानते हुए भी कुंभकर्ण अपने बड़े भाई रावण का मान रखते हुए वह प्रभु श्री राम से युद्ध करने युद्ध भूमि में चला गया। श्री रामचरित्र मानस के अनुसार कुंभकरण प्रभु श्री राम के द्वारा मुक्ति पाने के भाव मन में रखकर श्रीराम के समक्ष उन से युद्ध करने गया था। उसके मन में श्री राम के प्रति अनन्य भक्ति थी। भगवान के बाण लगते हीं कुंभकरण में अपना शरीर त्याग दिया। उसकी मृत्यु हो गई। और उसका जीवन भी सफल हो गया।