कार्यस्थल की शुभता हेतु वास्तु सूत्र
वास्तु शास्त्र के शास्त्रसम्मत सूत्रों के अनुरूप केवल घर को निर्मित करना ही पर्याप्त नहीं है, बल्कि आजीविका के लिए आधारभूत कार्यालय, या दुकान इत्यादि भी शुभ लक्षणों से युक्त होने चाहिए और उसके अन्दर उपकरणों को यथास्थान कैसे सजाना है, या किस दिशा की ओर मुँह करके आसीन होना है, इत्यादि बातों की जानकारी भी आवश्यक है.
- कार्यस्थल का ब्रह्म स्थान (केन्द्र स्थान) हमेशा खाली रखना चाहिए. ब्रह्म स्थान में कोई खंबा, स्तंभ, कील आदि नहीं लगाना चाहिए.
- कार्यस्थल पर यदि प्रतीक्षा स्थल बनाना हो, तो सदैव वायव्य कोणे में ही बनाना चाहिए.
- अपनी पीठ के पीछे कोई खुली खिडकी अथवा दरवाजा नहीं होना चाहिए.
- विद्युत का सामान, मोटर, स्विच, जैनरेटर, ट्रासंफार्मर, धुंए की चिमनी इत्यादि को अग्नि कोण अथवा दक्षिण दिशा में रखना चाहिए.
- कम्पयूटर हमेशा अग्नि कोण अथवा पूर्व दिशा में रखें.
- बिक्री का सामान या जो सामान बिक नहीं रहा हो तो उसे वायव्य कोण अर्थात उत्तर-पश्चिम दिशा में रखें तो शीघ्र बिकेगा.
- सजावट इत्यादि हेतु कभी भी कांटेदार पौधे, जैसे कैक्टस इत्यादि नहीं लगाने चाहिए.
- यदि किसी को चलते हुए व्यवसाय में अचानक से अनावश्यक विघ्न बाधाएं, हानि, परेशानी का सामना करना पड रहा हो तो उसके लिए कार्यस्थल के मुख्य द्वार की अन्दर की ओर अशोक वृ्क्ष के 9 पत्ते कच्चे सूत में बाँधकर बंदनवार के जैसे बाँध दें. पत्ते सूखने पर उसे बदलते रहें तो नुक्सान थम जाएगा और व्यवसाय पूर्ववत चलने लगेगा.