गरुड़ पुराण में छिपे हैं मौत से जुड़े रहस्य, यहीं होता हैं नरक और स्वर्ग का हिसाब-किताब

गरुड़ पुराण में छिपे हैं मौत से जुड़े रहस्य, यहीं होता हैं नरक और स्वर्ग का हिसाब-किताब

गरुड़ पुराण में जीवन, मुत्यु और कर्मफल के बारे में बहुत कुछ सीखने और पढ़ने को मिलता है। इसी वजह से इस ज्ञान को प्राप्त करने के लिए घर के किसी सदस्य की मृत्यु के बाद उस समय हम जन्म-मृत्यु से जुड़े सभी सत्य जान सकें इसलिए इस समय गरुड़ पुराण का पाठ किया जाता है।

अठारह पुराणों में 'गरुड़ महापुराण' का अपना एक विशेष महत्व है। क्योंकि इसके देव स्वयं विष्णु माने जाते हैं, इसीलिए यह वैष्णव पुराण है। इस पुराण में मुख्य तौर पर मुत्यु से जुड़े कई रहस्यों के बारे में मालूम चलता है आइए जानते हैं-

विष्णु के 24 अवतारों का वर्णन..
'गरुड़ पुराण' में भगवान विष्णु की भक्ति का विस्तार से वर्णन मिलता है। विष्णु के चौबीस अवतारों का वर्णन मिलता है। इसके अलावा इसमें सभी देवी देवताओं और शक्तियों के बारे में उल्लेख मिलता हैं।

दो भागों में बंटा है गरुड़ पुराण..
'गरुड़ पुराण' में उन्नीस हज़ार श्लोक कहे जाते हैं, किन्तु वर्तमान समय में कुल सात हज़ार श्लोक ही उपलब्ध हैं। इस पुराण को दो भागों में रखकर देखना चाहिए। पहले भाग में विष्णु भक्ति और उपासना की विधियों का उल्लेख है तथा मृत्यु के उपरान्त प्राय: 'गरुड़ पुराण' के श्रवण का प्रावधान है। दूसरे भाग में नरक में विभिन्न नरकों में जीव के पड़ने का वृत्तान्त है।

चार तरह की आत्माएं.. जीवन और मुत्यु चक्र
पृथ्वी पर चार प्रकार की आत्माएं पाई जाती हैं। कुछ व्यक्ति ऐसे होते हैं जो अच्छाई और बुराई के भाव से परे होते हैं। ऐसी आत्माओं को पुनः जन्म लेने की आवश्यकता नहीं होती। इसी तरह कुछ ऐसे व्यक्ति होते हैं जो अच्छाई और बुराई के प्रति समतुल्य होते हैं यानी दोनों को समान भाव से देखते हैं वे भी इस जनम मृत्यु के बंधनों से मुक्त हो जाते हैं। लेकिन तीसरी तरह के लोग ऐसे होते हैं जो साधारण प्रकार के होते हैं, जिनमें अच्छाई भी होती है और बुराई भी होती है। दोनों का मिश्रण होता है उनका व्यक्तित्व ऐसे साधारण प्रकार के लोग अपनी मृत्यु होने के बाद तत्काल किसी न किसी गर्भ को उपलब्ध हो जाते हैं, किसी न किसी शरीर को प्राप्त कर लेते हैं।

सजाएं और यातनाएं
अक्सर लोगों के दिलों दिमाग में पहला सवाल आता होगा कि मुत्यु के बाद क्या होता होगा? इसे भी तीन अवस्था में विभक्त किया गया है। प्रथम अवस्था में मानव को समस्त अच्छे-बुरे कर्मों का फल इसी जीवन में प्राप्त होता है। दूसरी अवस्था में मृत्यु के उपरान्त मनुष्य विभिन्न चौरासी लाख योनियों में से किसी एक में अपने कर्मानुसार जन्म लेता है। तीसरी अवस्था में वह अपने कर्मों के अनुसार स्वर्ग या नरक में जाता है। गरुड़ पुराण के दूसरे अध्याय में प्रेतकाल या नरक में पहुंचने पर जीवन में किए गए पापों के अनुसार कैसे यम के दास सजा या यातानाएं देते है इस बारे में बताया गया है। इनमें से कुछ सजाओं के बारे में यहां बताया जा रहा है।

तामिस्रअपराध-
जो लोग दूसरों की संपत्ति पर कब्ज़ा करने का प्रयास करते हैं, जैसे कि चोरी करना या लूटना। उन्हें तामिस्र में यमराज द्वारा सजा मिलती है।
दंड-
इस नर्क में लोहे की पट्टियों और मुग्दरों से पिटाई की जाती है। यह तब तक करते हैं जब तक उस पीड़ित के खून ना निकल आये और वह बेहोश ना हो जाये।

अन्धामित्रम
अपराध-
जो पति पत्नी अपने रिश्ते को ईमानदारी से नहीं निभाते हैं और एक दूसरे को धोखा देते हैं उन्हें अन्धामित्रम की सजा दी जाती है।
दंड:
अन्धामित्रम में तामिस्र की तरह ही पीड़ा दी जाती है लेकिन इसमें पीड़ित को रस्सी से इतना कस कर बांधते हैं जब तक वह बेहोश न हो जाए।

राउरवम
अपराध-
जो लोग दूसरों की संपत्ति या संसाधनों का आनंद लेते हैं
दंड-
राउरवम में खतरनाक सांपों से ऐसे व्यक्ति को सजा दी जाती है जहाँ पर रुरु नाम के नागिन तब तक सजा देती है जब तक उसका समय नहीं समाप्त हो जाता है

महाररूरवं
अपराध-
किसी अन्य की संपत्ति को नष्ट करना, किसी की संपत्ति पर अवैध कब्जा करना, दूसरों के अधिकार छीना और संपत्ति पर अवैद कब्ज़जा करके उस उसकी संपत्ति और परिवार को ख़त्म करना।
दंड-
ज़हरीले सांपों से कटवाया जाता है।

कुंभीपाकम
अपराध-
मज़ा लेने के लिए जानवरों की हत्या।
दंड -
यह नर्क में गर्म तेल बर्तनों में ऐसी व्यक्तियाँ को उबाला जाता है।

असितपात्र
अपराध-
अपने कर्तव्यों का परित्याग करना, भगवान के आदेश को ना मानना और धर्म प्रथाओं उल्लंघन करना।
दंड -
आसिपत्र से बानी चाबुक से मरना, चाकू तब तक मरना जब तक वह व्यक्ति बेहोश ना हो जाये।

सुकरममुखम
अपराध -
कर्तव्यों का त्याग करना, कुशासन द्वारा अपने लोगों को सताना, निर्दोष लोगों को सजा देना और गैरकानूनी गतिविधियां करना।
दंड-
ऐसी व्यक्ति को दबा कर कुचल देना, और जानवर के तेज दांत के नीचे पीस देना की सजा देते हैं।

अंधकूपम
अपराध-
संसाधन होने के बावजूद ज़रूरतमंदों की सहायता न करना और अच्छे लोगों पर अत्याचार करना।
दंड -
जंगली जानवरों के बीच में छोड़ देना, ऐसी कुएं में फेक देना जिसमें शेर, बाघ, बाज, सांप और बिच्छू जैसे विषैले जानवर हों।

अग्निकुण्डम
अपराध-
बलपूर्वक अन्य संपत्ति को चोरी करना, सोने और जवाहरात की चोरी करना, और अनुचित फायदा उठाना।
दंड-
ऐसी व्यक्तियों के हाथों और पैरों को बांध कर आग के ऊपर भूना जाता है।

कृमिभोजनम
अपराध-
मेहमानों को अपमानित करना और अपने फायदे के लिए दूसरों का इस्तेमाल करना। दंड- ऐसे व्यक्तियों को कीड़े और सांपों के बीच में छोड़ दिया जाता है। गुराण पुरुण में ऐसे 28 अपराधों और सजाओं के बारे में बताया गया है। यमलोक में इस तरह दुष्ट आत्माओं को यातनाएं मिलती है।

क्या घर में नहीं रखना चाहिए ?
कुछ लोगों में यह भ्रान्त धारणा बनी है कि इस गरुडपुराण को घर में नहीं रखना चाहिये। केवल श्राद्ध आदि प्रेतकार्यों में ही इसकी कथा सुनते हैं। यह धारणा अत्यन्त भ्रामक और अन्धविश्वास युक्त है, कारण इस ग्रन्थ की महिमा में ही यह बात लिखी है कि ‘जो मनुष्य इस गरुडपुराण-सारोद्धार को सुनता है, चाहे जैसे भी इसका पाठ करता है, वह यमराज की भयंकर यातनाओं को तोड़कर निष्पाप होकर स्वर्ग प्राप्त करता है।

गरुण पुराण की समस्त कथाओं और उपदेशों का सार यह है कि हमें आसक्ति का त्यागकर वैराग्य की ओर प्रवृत्त होना चाहिये तथा सांसारिक बंधनों से मुक्त होने के लिये एकमात्र परमात्मा की शरण में जाना चाहिये।