अशोकाष्टमी व्रत

अशोकाष्टमी व्रत

अशोकाष्टमी का त्यौहार चैत्र शुक्ल अष्टमी को मनाया जाता हैं. इस दिन अशोक वृक्ष के पूजन का विधान बताया गया हैं. इसके सम्बन्ध में एक अति प्राचीन कथा हैं कि रावण की नगरी लंका में अशोक वाटिका के नीचे निवास करने वाली चिरवियोगिता सीता को इसी दिन हनुमान द्वारा अनूठी तथा संदेश प्राप्त हुआ था.

इसलिए इस दिन अशोक वृक्ष के नीचे भगवती जानकी तथा हनुमान जी की प्रतिमा स्थापित कर विधिवत पूजन करना चाहिए. हनुमान द्वारा सीता की खोज कथा रामचरित मानस से सुननी चाहिए. ऐसा करने से स्त्रियों का सौभाग्य अचल होता हैं इस दिन अशोक वृक्ष की कलिकाओं का रस निकालकर पान करना चाहिए, इससे शरीर के रोग विकास का समूल नाश हो जाता हैं.

अशोकाष्टमी की व्रत कथा
एक बार ब्रह्माजी ने कहा चैत्र माह में पुनर्वसु नक्षत्र से युक्त अशोकाष्टमी का व्रत होता है। इस दिन अशोकमंजरी की आठ कलियों का पान जो जन भी करते हैं वे कभी दुःख को प्राप्त नहीं होते है। अशोकाष्टमी के महत्व से जुड़ी कथा कहानी रामायण में भी मिलती है जिसके अनुसार रावण की लंका में सीताजी अशोक के वृक्ष के नीचे बैठी थी और वही उन्हें हनुमानजी मिले थे और भगवान श्रीराम की मुद्रिका और उनका संदेश उन्हें यही प्राप्त हुआ था।