अन्याय करने वाले दुर्योधन ने इस एक पाप की वजह से बहाए थे आसूं

अन्याय करने वाले दुर्योधन ने इस एक पाप की वजह से बहाए थे आसूं

महाभारत का युद्ध जिसे इतिहास में सबसे बड़े रक्तरंजित युद्धों में से एक माना जाता है। महाभारत की कहानी के अनुसार कौरव भाईयों विशेष रूप से दुर्योधन ने बचपन से पांडवों के विरूद्ध षडयंत्र रचा था, जिसकी चरम सीमा उस दिन थी जब भरी सभा में द्रौपदी के वस्त्रहरण करके उसे अपमानित किया गया था। महाभारत का युद्ध होने से कई वर्षों पूर्व ही श्रीकृष्ण को ज्ञात हो गया था कि पाप की समाप्ति के बाद ही धर्म की स्थापना हो सकेगी, इसलिए महाभारत का युद्ध अनिवार्य है, इसके बाद नए युग की शुरूआत होगी। कौरवों में दुर्योधन के बारे में कहा जाता है कि जब 100 कुटील और दुष्ट मनुष्यों की मृत्यु हुई होगी, तो महापापी दुर्योधन का जन्म हुआ होगा लेकिन महाभारत में एक प्रसंग ऐसा भी है जब दुर्योधन अपने खेमे के एक व्यक्ति द्वारा किए गए एक पाप को सुनकर रोने लगा था और धर्म का ज्ञान दिया था।

अपने पिता की हत्या का बदला लेना चाहता था अश्वथात्मा
रणभूमि पर जब युधिष्ठिर ने श्रीकृष्ण के कहे अनुसार अश्वथात्मा नामक हाथी की मृत्यु की बात स्वीकार की, तो गुरू द्रोणाचार्या को लगा कि उनके पुत्र का वध हो चुका है। गुरू द्रोण को अस्त्रहीन करने की ये योजना थी, जिसके बाद ही द्रोण को हराया जा सकता था। द्रोण ने अपने पुत्र की मृत्यु की खबर सुनकर अस्त्र छोड़ दिए, जिसके बाद अर्जुन ने द्रोण को एक ही वार में मृत्यु के घाट उतार दिया। अश्वथात्मा ने जब ये प्रपंच देखा तो वो क्रोध से पागल हो गया. उसने पाडंवों को मारने की योजना बनाई। साथ ही द्रोण की मृत्यु के बाद दुर्योधन को गदा प्रहार करके भीम ने घायल कर दिया था। दुर्योधन जीवन-मृत्यु से लड़ता हुआ घाट पर पड़ा कराह रहा था।

महाभारत के अंतिम दिन से एक रात पहले की घटना
युद्धविराम होने के बाद अश्वथात्मा रात में चुपके से पांडवों के तंबू की ओर गया। उसने देखा कि बिस्तर में 5 लोग सो रहे हैं। अंधेरा होने के कारण उसे पता नहीं चल पाया कि वो पांडव नहीं बल्कि उनके पांच पुत्र है, जो कम आयु होने के कारण युद्ध का हिस्सा नहीं है। उसने पांडवों के भ्रम में पांचों पुत्रों को मौत के घाट उतार दिया, लेकिन जाते हुए उसे ज्ञात हो गया कि उसने अज्ञानतावश पांडव नहीं बल्कि उसके पुत्रों की हत्या कर दी है लेकिन फिर भी उसके मन में किसी तरह का अपराधबोध नहीं था। वो चेहरे पर विजय भाव लिए अपने मित्र दुर्योधन के पास ये शुभ समाचार देने के लिए भागा।

भाईयों के पुत्रों की हत्या की खबर सुनकर रो पड़ा दुर्योधन
जब अश्वथात्मा ने पांडव पुत्रों के वध की बात अपने मित्र दुर्योधन को बताई, तो इस घिनौने अपराध को सुनकर वो हैरान रह गया। उसकी आंखों से आसूं बहने लगे और उसने अश्वथात्मा से क्रोधित होकर कहा ‘तुम्हें ज्ञात भी है ये तुमने कितना बड़ा पाप कर दिया है? संसार में बालक का वध करने से नीचता भरा कर्म कोई नहीं है, फिर ये बालक तो किसी भी प्रकार से युद्ध का हिस्सा नहीं थे। तुमने कायरतापूर्ण कर्म किया है, तुम योद्धा नहीं हो. अब तुम्हें विनाश से कोई नहीं बचा सकता। अब ना तुम्हें मृत्यु मिलेगी या जीवन.’ इतना कहकर दुर्योधन अपने और अश्वथात्मा के दृष्ट कर्मों को याद करते हुए विलाप करने लगा। कुरूक्षेत्र की रणभूमि पर ऐसा पहली बार हुआ था जब पापी मनुष्य दुर्योधन ने धर्म और न्याय की बात की थी…